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विधायकी की डकार भी नहींदीनानाथ मिश्रदीनानाथ मिश्रबिहार विधानसभा का तो सुहाग ही उजड़ गया। अभी-अभी कोई दो महीने पहले “कुमार शासक” से बिहार विधानसभा का धूम-धाम से विवाह हुआ था। पर विधायकों की शपथ तक नहीं हुई। इन महीनों का वेतन तो दूर की बात है। बेचारे जी-जान, धन-तन-मन लगाकर लड़े थे। कुछ मरे थे, कुछ घायल हुए। हर सीट पर दसियों की तकदीर फूट गयी। साम-दाम-दंड-भेद के मार्फत हर सीट पर एक जीता और विधानसभा बनी। विवाह ही गलत नक्षत्र में हुआ था। सत्ता का कोई समीकरण बन नहीं पाया और जब बनने लगा और एक विधायक की कमी का रास्ता भी निकलता नजर आया, तो आनन-फानन में राज्यपाल दौड़े दिल्ली, राष्ट्रपति और शिवराज पाटिल से मिलने। ऐसी भी क्या जल्दबाजी थी? थी जल्दबाजी। समीकरण जो पहले नहीं बन पा रहा था वह जमशेदपुर में और एक जेल में बन गया।विधायक नहीं चाहते थे कि उनकी विधानसभा को इस रूप में याद किया जाए, जिसमें शपथ ग्रहण तक का समारोह नहीं हुआ हो। इससे पहले ऐसे बांझ चुनाव कभी नहीं हुए सो लोक जनशक्ति पार्टी के विधायक पाला बदल कर नीतिश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने को तैयार हो गए। बस इतना सुनना था कि लालू प्रसाद यादव सन्नाटा खा गए। अपने पर आ गए। कांग्रेस आलाकमान ने भी देखा कि नीतिश के मुख्यमंत्री बनने के आसार पैदा हो गए, इससे अच्छा तो विधानसभा भंग करना है। सो मनमोहन सिंह की सोयी हुई कैबिनेट को रात 12 बजे के बाद उठाया गया। कैबिनेट की बैठक हुई। आनन-फानन में कैबिनेट ने विधानसभा भंग करने का फैसला किया। थी जल्दबाजी। वरना इतने रात गए बैठक न होती। पाप करने वाले अक्सर रात के समय को पसन्द करते हैं। फिर राष्ट्रपति भी विदेश यात्रा पर जाने वाले थे। विधानसभा भंग न होती तो 24 नहीं तो 48 घंटों में तो विधायक विधानसभा का सुहाग बचा ही लेते।यह जो हम नया फिल्मी मंत्र सुनते हैं- “सब कुछ हो सकता है”- यह कांग्रेस का ही मंत्र है। बिहार से पहले भी गोवा में “सब कुछ हो सकता है” की आजमाइश की जा चुकी है। संवैधानिक हो या असंवैधानिक, “सब कुछ हो सकता है”। संवैधानिक है या असंवैधानिक है, इसका फैसला सर्वोच्च न्यायालय करेगा तो वर्षों लगेंगे। तब तक सब कुछ हो चुका होगा। सब जानते हैं, एक बार विधायक हो लिए तो जीवन भर विधायकी की डकार लेते रहते हैं। पर ये बेचारे विधायकी की डकार भी नहीं ले सकेंगे।NEWS
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