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अपनी बात

by
May 6, 2005, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 06 May 2005 00:00:00

अपनी बातप्रिय बन्धुओ,सप्रेम जय श्रीराम।हमारे पाठक नीरज कुमार जी ने काफी अधिक समय लगाकर 7 पृष्ठ लम्बा पत्र लिखा। (हालांकि अंत में अपना शहर और पता लिखना भूल गए।) इसमें उन्होंने पिछले 12 वर्षों से पाञ्चजन्य के साथ पाठकीय यात्रा का वर्णन किया है। कुछ अच्छे सुझाव भी दिए हैं। वे चाहते हैं कि पाञ्चजन्य खूब डटा रहे। हिन्दुत्व की संघर्ष यात्रा को विचार पाथेय देता रहे। मूल्य भी 5 रुपए हो जाए। भले ही रंगीन न रहे, लेकिन गंभीरता बनी रहे। घर-घर में पाञ्चजन्य कैसे पहुंचे, इस बारे में उन्होंने कहा है कि हम उन्हें सूचित करें, और अपने समान विचार के सभी संगठनों में पाञ्चजन्य का भरपूर प्रसार हो। यानी नीरज जी की इच्छा और हमारी इच्छा एक-सी है- “कुछ ऐसा कर जाएं कि दल बादल से छा जाएं।”पर एक कटु सत्य भी है। जरा बताएं, कितने समविचारी हिन्दुत्वनिष्ठ अच्छी सामग्री पढ़ने में और वह भी खरीदकर पढ़ने में रुचि रखते हैं? एक ही तरह का खाना और एक ही तरह की सामग्री अगर लोकप्रियता का आधार होती तो परिस्थितियां बहुत भिन्न होतीं। सब यही सोचते हैं कि हिन्दुत्वनिष्ठ पत्रिकाएं बढ़ें, पर खरीदें पड़ोसी। हम कभी-कभार पढ़ लिया करेंगे।बहरहाल, नीरज जी के सुझावों पर हम जरूर विचार करेंगे तथा उस दिशा में कुछ करेंगे भी।शिवालिक पहाड़ियों में चकराता के निकट विकास नगर है और वहां है साधना केन्द्र आश्रम। इस आश्रम के अनुयायी उदासीन सम्प्रदाय के पथिक हैं, यानी गुरुनानक देव जी के बेटे बाबा श्रीचंद जी द्वारा प्रवर्तित दिव्य अलौकिक पंथ। इस आश्रम के प्रणेता श्रोत्रिय ब्राह्मनिष्ठ श्रीचंद जी ने “भगवत् प्राप्ति” पुस्तक लिखी है। इससे एक ही बात समझ में आई कि भगवत् प्राप्ति के लिए हिमालय में पलायन करने की आवश्यकता नहीं है वरन् श्रेष्ठ अनासक्त भाव से जीवन जीने से उद्देश्य प्राप्ति हो जाएगी। वे कहते हैं-“यदि आपके पास आपके भरण-पोषण योग्य साधन नहीं है, यदि आपमें परमात्मा के प्रति अत्यन्त प्रगाढ़ श्रद्धा और पूर्ण विश्वास नहीं है अथवा यदि आपके पास पर्याप्त आत्मबल एवं आत्मविश्वास नहीं है तो आप वैराग्य के नाम का सहारा लेकर कर्मों के परित्याग का विचार मन में न लाइये। ऐसी श्रद्धाविहीन मानसिक दशा के रहते हुए साधु की वेशभूषा लेकर आप सही दिशा में और सही भावना से अपनी आध्यात्मिक साधना न कर पायेंगे। यह आपको पराश्रित बना देगा और वासस्थान की समस्या के अतिरिक्त आपको अपने शरीर को जीवन धारण करने योग्य बनाये रखने के लिए केवल दो रोटियों के लिए द्वार-द्वार दौड़ना भी पड़ेगा।”सत्य ही कहा है उन्होंने।आपका अपनात.वि.NEWS

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