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कर्मवीरों का तप-मनोज दुबेदेवतुल्य वनवासी के घर में देव-भोजनझाबुआ जिले में मानो एक नया बदलाव आया है। पहले एक गांव, फिर दूसरा, तीसरा और एक-एक करके आज 131 गांव एक अनूठे क्रांति-अभियान से जुड़ गए हैं। इस जनपद के ग्रामों में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रेरणा से जब वनवासी कल्याण परिषद् के कार्यकर्ताओं ने “शिव-गंगा अभियान” प्रारम्भ किया तो मानो गांव के गांव भगीरथ बनने के लिए उमड़ पड़े। शिव गंगा अभियान के अन्तर्गत ग्रामों में जल संरक्षण के प्रयास प्रारम्भ हुए। हर गांव से 10-10 कर्मवीर योजना के अन्तर्गत चयनित किए गए। इन कर्मवीरों को मेघ नगर में आवासीय प्रशिक्षण दिया गया। गत मकर संक्रांति के दिन चयनित ग्रामों में आशुतोष भगवान शंकर के लिंग की स्थापना के साथ शिव-गंगा अभियान प्रारम्भ हुआ।गोपालपुर में वनवासियों से संवाद करते हुए स्वामीअवधेशानंद गिरि जी महाराजझाबुआ मध्य प्रदेश के उस इलाके में आता है, जहां मात्र 35 इंच वर्षा होती है। परिणामत: सम्पूर्ण इलाका हमेशा पानी की कमी से जूझता है। 6,782 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में फैले झाबुआ जनपद में लगभग 1665 ग्राम पंचायतें हैं। हर पंचायत में न्यूनतम 2 और अधिकतम 3 ग्राम हैं। वनवासी कल्याण परिषद् ने 100 अभियंताओं की स्वैच्छिक सेवाओं के द्वारा सम्पूर्ण जिले का व्यापक सर्वेक्षण कर ऐसे स्थान निर्धारित किए, जहां जल संरक्षण सहजता से हो सके और ऐसे स्थानों पर तालाबों, “चैक-डेम”, “स्टाप-डेम” के निर्माण की गतिविधि शुरू की। पहले चरण में 131 ग्रामों में काम शुरू हुआ, लेकिन परिषद् का इरादा ग्रामीणों के सहयोग से लगभग 2,485 ग्रामों तक इस योजना के क्रियान्वयन का है। योजना के दूसरे-चरण में परिषद् ने खेती, खाद्य प्रसंस्करण और कृषि आधारित लघु और मध्यम दर्जे के उद्योग लगाने की योजना बनाई है। तीसरे चरण में पशुपालन को बढ़ावा दिया जाएगा।एक तालाब के निर्माण में हाथ बंटाते हुए स्वामी जीगत ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, यानी 20 जून को जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी स्वयं इस अनोखे शिवगंगा अभियान को देखने के लिए झाबुआ के वनवासी ग्रामों में पधारे। वनवासियों द्वारा इस अभियान में की जा रही जी-तोड़ मेहनत को देखकर स्वामी जी अभिभूत हो उठे। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने एक गांव में देखा कि 123 मीटर लंबे और साढ़े पांच मीटर चौड़े तालाब के गहरीकरण का काम ग्रामवासियों ने मिलकर मात्र 15 दिनों में सम्पन्न कर दिया। स्वामी जी के साथ चल रहे अभियंताओं ने जानकारी दी कि यही काम अगर सरकार करती तो समय लगता छह महीने और लागत आती 18 लाख रुपए। स्वामी जी बोल पड़े, “यह काम तो अनमोल है अनमोल”।एक नवनिर्मित तालाब का पूजनमार्ग में एक जगह स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी को सड़क से नीचे कुछ दूर वनवासी काम करते दिखाई पड़े। वे पैदल ही सड़क से करीब 25 फुट नीचे उतरकर वनवासियों के बीच पहुंचे। वे वनवासी 45 मी. लम्बे और 10 मीटर गहरे तालाब को खोदने में जुटे थे। स्वामी जी ने जब यह सब देखा तो उनके उत्साह का पारावार न रहा। मंत्रोच्चार करके वे भी उतर पड़े तालाब के बीचोंबीच और वनवासियों के साथ श्रमदान में जुट गए। स्वामी जी को इस अवस्था में देखकर “भारत माता की जय” के नारे गूंजने लगे। स्वामी जी के साथ यात्रा में चल रहे इस शिव गंगा अभियान के प्रशिक्षण प्रमुख राजाराम कटारा ने स्वामी जी का परिचय वनवासियों से कराया। स्वामी जी ने वनवासियों से कहा, “आपका पसीना इस देश का कायापलट कर देगा।” स्वामी जी बावड़ी बड़ी, सालकियां, काकरादरा, गोपालपुरा, भाजी डोगरा आदि ग्रामों में भी गए।वनवासी ग्राम में वनवासी कौशल देखते हुए स्वामीअवेधशानंद जी, चित्र में दाईं ओर पीछे खड़े हैं श्री गुणवंत कोठारीकाकरादरा गांव में मून सिंह नाम के वनवासी ने अपने घर में स्वामी जी के लिए भोजन की व्यवस्था की थी। स्वामी जी ने भोजन किया। आगे सालकियां गांव में, जहां शिवगंगा अभियान के अन्तर्गत शिवलिंग स्थापित हुआ है, कर्मचंदन नामक ग्रामीण ने स्वामी जी को बताया कि “गांव में मतांतरण करने वाले ईसाइयों ने हमें इस काम के लिए बहुत रोका, बाधाएं डालीं, लेकिन हम लोग अडिग थे कि तालाब भी खोदेंगे और शिवलिंग भी स्थापित होगा, सो काम हमने पूरा किया।”शिवगंगा अभियान जिनके निर्देशन में चलाया जा रहा है यानी वनवासी कल्याण आश्रम के सह संगठन मंत्री श्री गुणवंत कोठारी ने स्वामी जी को अभियान की जानकारी दी। गोपालपुर और भाजी डोगरा गांव का दौरा कर स्वामी अवधेशानंद जी की शिव गंगा अभियान दर्शन यात्रा पूर्ण होती है। गोपालपुर गांव में वनवासियों ने स्वामी जी का भव्य स्वागत किया। यहां साढ़े पांच मीटर चौड़ा और 123 मीटर लम्बा एक “स्टाप डेम” वनवासियों ने 15 दिनों में बनाया है। झाबुआ के दत्त मंदिर के पंडित वेणीमाधव शुक्ल के मंत्रोच्चार के साथ स्वामी जी ने इस बांध का शुभारम्भ पूजन पूर्ण किया।वर्ष 59, अंक 1, ज्येष्ठ कृष्ण 14, 2062 वि. (युगाब्द 5107) 5 जून, 2005नेताजीरहस्यगाथा-2नकारी गई सच्चाईमैं हवाई मार्ग से एक लम्बी यात्रा पर निकलने से ठीक पहले तुम्हें लिख रहा हूं और कौन जाने, कोई दुर्घटना ही न मुझे आ घेरे….।इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के जानथिवी को नेताजी सुभाष बोस का संदेशगोवा, झारखण्ड…. और अब बिहारसंतों की सरकारआधी रात की बैठक के बाद बिहार विधानसभा भंग करने के केन्द्र सरकार के फैसले पर विशेषज्ञों की खास टिप्पणीवरिष्ठ अधिवक्ता प्राणनाथ लेखी-इस संवैधानिक संहार से बचा जा सकता था, अगर….वरिष्ठ विश्लेषक ए. सूर्यप्रकाश-लालू यादव कांग्रेस को ले डूबेंगेराज्यपाल बूटा सिंह जार्ज फर्नांडीज ने कहा- झूठा सिंह बूटा सिंह खरीद-फरोख्त का सबूत देंसंप्रग सरकार का अजब फैसला अन्तरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलन में भारतीय मजदूर संघ नहीं, इंटक भाग लेगा भारतीय मजदूर संघ आंदोलन की राह परनेपाल राजा और राजनीतिक दल फिर आमने-सामने काठमाण्डू प्रतिनिधितमिल साहित्य में मुस्लिम महिला की दस्तक75 के हुए प्यारेलाल जी मित्रों ने मनाया अमृत महोत्सव हरिमोहन मोदीरा.स्व. संघ के कार्यों से आया है हमारे समाज में बदलाव अब नहीं कोई भेद प्रकाश सोनकर, विधायक एवं अध्यक्ष, म.प्र. खटीक संघखटीक समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामगोपाल सूर्यवंशी ने भी कहा श्री गुरुजी द्वारा दिखाए मार्ग पर चलेंगेतौबा ये मोबाइल!गुयाना में रामनवमी की धूम, हिन्दू समाज का विशाल संगम गुयाना से ब्राह्मभिक्षुबार-बार आएंगे छत्तीसगढ़सलमान और रामायणअद्र्धसैनिक बलों में जम्मू-कश्मीर के युवकों की भर्तीजम्मू – कश्मीर विचार मंच की बैठक में उठा कश्मीरी पंडितों की घाटी -वापसी का मुद्दाक्या सपना ही रहेगी घाटी वापसी? प्रतिनिधिराष्ट्रपति को चिंता है कश्मीरी पंडितों की गृहमंत्रालय को समस्याओं पर ध्यान देने को कहा आदित्यराज कौलउत्तराचल गोलमाल का खेल राम प्रताप मिश्रपंजाब चुनाव ने दिलाई आम आदमी की याद राकेश सैन”बैक फ्राम डेड” के युवा लेखक अनुज धर कहते हैं यह लम्बी लड़ाई हैवार्ताधारित झारखण्ड के मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा का कहना है विकास करेंगे, सबको साथ लेकर चलेंगे जितेन्द्र तिवारीसंगठन और सरकार के बीच सेतु बनूंगा मैं यदुनाथ पाण्डे, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष, झारखण्डपटना में नारद जयंती उत्सव झूठे सेकुलरवाद से लड़ना होगा चंदन मित्रा, सम्पादक, पायनियरजेल की बैंड पार्टीमनमोहन सरकार ने किए बस वादे फिर ठगे गए मुसलमान शाहिद रहीमपाठकीय क्या बोलते रहना ही नियति?सम्पादकीय अब इस देश को गुस्सा क्यों नहीं आता?अपनी बातचर्चा-सत्र चतुर कम्युनिस्ट, भयभीत कांग्रेस चंदन मित्रा, संपादक, द पायनियरटी.वी.आर. शेनाय प्रधानमंत्री की साख पर बट्टाश्रद्धाजलि सुनील दत्त – एक सज्जन राजनेता प्रतिनिधिकही-अनकही विधायकी की डकार भी नहीं दीनानाथ मिश्रपाचजन्य पचास वर्ष पहले लाठी-गोली से जनमत नहीं दबेगाएडगर केसी : “अनेक महल”-7 गृहस्थ जीवन के संबंध हो.वे. शेषाद्रिस्त्री किसी की बेटी, किसी की बहन 13 साल की शिवानी और हवा से बातेंबनी – ठनी मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटी मंगलम्, शुभ मंगलम्महावीर केसरी-4इस सप्ताह आपका भविष्यगवाक्ष क्या सचमुच जुम्मन मियां की प्रतीक्षा करती है नदी? शिव ओम अम्बरहिन्दू-भूमि आजीवक परम्परा के आचार्य सुरेश सोनीगहरे पानी पैठ नागालैण्ड में अजब व्यापारमंथन बंग-भंग से स्वदेशी तक-3 बंग माता, भारत माता, काली माता और वन्देमातरम् देवेन्द्र स्वरूपलाहौर दिनांक-3 दु:ख, दर्द और मन्नतें सांझी हैं तरुण विजयNEWSअंक-सन्दर्भ, 8 मई, 2005पञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005आश्विन शुक्ल 14 रवि 5 जून,, अमावस्या(सोमवती अमावस्या,वट सावित्री व्रत) सोम 6 “”ज्येष्ठ शुक्ल 1 मंगल 7 ,,,, ,, 2 बुध 8 ,,,, ,, 3 गुरु 9 “”,, ,, 3 शुक्र 10 “”,, ,, 4 शनि 11 “”क्या बोलते रहना ही नियति?दिशादर्शन के अन्तर्गत श्री भानु प्रताप शुक्ल का लेख “संघ पर आरोप लगाने वालों की असलियत” अच्छा लगा। संघ कोई राजनीतिक संस्था नहीं है, अपितु समस्त बिखरे समुदाय को एकत्र करके इस देश को परमवैभव तक पहुंचाने के लक्ष्य पर चल रहा एक मंच है। विषम परिस्थितियों में भी संघ ज्वाला की तरह धधक कर ही अपने इस लक्ष्य की ओर निरन्तर अग्रसर होता रहा है। श्री गुरुजी ने कहा था कि डा. साहब ने ऐसा संघ बनाया है, जिसके अभेद्य किले पर प्रहार करने वालों की भुजाएं अपने आप ही टूट जाएंगी। संघ पर साम्प्रदायिकता का आरोप लगाना सरासर गलत है। विभाजन के पश्चात् जब भी मानवीय या प्राकृतिक आपदाएं आईं स्वयंसेवकों ने जान की बाजी लगाकर लोगों को राहत पहुंचायी है। राहत के समय स्वयंसेवक यह नहीं देखते हैं कि पीड़ित व्यक्ति किस जाति या मजहब का है।-दिलीप शर्मा114/2205, एम.एच.बी. कालोनी,समता नगर, कांदीवली (पू.), मुम्बई (महाराष्ट्र)सशक्त मीडिया चाहिए”हिन्दुओं के घटने से बढ़ते खतरे” रपट पढ़ी। लगता है हिन्दुस्थान पाकिस्तान बनने की दिशा में बढ़ रहा है। अपने उचित अधिकारों के लिए भी हिन्दुओं ने न तो बोलना सीखा है और न ही गर्जना। लड़ना तो दूर, हिन्दू यदि जिहादियों के विरुद्ध थोड़ी-सी आवाज भी निकालता है तो सेकुलर मानवाधिकारी हाय-तौबा मचाना शुरू कर देते हैं, बात का बतंगड़ बन जाता है, मीडिया में भूचाल आ जाता है, अदालतों में मुकदमे दायर होने लगते हैं और बेचारा अहिंसक शान्त स्वभावी हिन्दू सहम जाता है। सोचता है, मैंने बहुत बड़ा कसूर तो नहीं कर दिया है। जिहादियों की करतूतों को जायज करार देने के लिए “कौम नष्ट” (कम्युनिस्ट), कांग्रेसी और मानवाधिकारी तैयार बैठे हैं। यही लोग अदालतों में उनके मुकदमे लड़ते हैं। इसलिए खतरा पहले से अधिक बढ़ गया है। क्या हिन्दुओं के पास विद्वानों या कलमवीरों की कमी है? हिन्दुओं की आवाज को पूरे विश्व में फैलाने के लिए आज सक्षम और सशक्त मीडिया की बहुत जरूरत है।-शास्त्री साधुराम पंजाबी (संग्राम शास्त्री)मौजपुर, अलवर (राजस्थान)जनसंख्या की दृष्टि से यदि हिन्दुओं का यही हाल रहा तो आने वाले समय में हम निश्चित रूप से अल्पसंख्यक हो जाएंगे। हिन्दुओं के अल्पसंख्यक होने का अर्थ है खतरों को निमंत्रण देना। तथाकथित सेकुलर सब कुछ जानते हुए भी अनजान बन कर चुप हैं। इस सम्बंध में राष्ट्रवादियों को ही सोचना होगा। पिछले दिनों जनसंख्या मामले पर बुद्धिजीवियों ने मंथन भी किया है, यह सराहनीय कदम है।-विशाल कुमार जैन, 184, कटरा मशरू,दरीबा कलां, चांदनी चौक (दिल्ली)पाञ्चजन्य में हिन्दुओं की जनसंख्या के बारे में जो कुछ लिखा जा रहा है, वह तो ठीक है। किन्तु एक कमी खलती है और वह कमी है ऐसे लेखों का अभाव, जो हिन्दुओं को इस संदर्भ में सही मार्ग दिखाएं।-कालू भाई परमारअविरल खेड़ा, बनासकांठा (गुजरात)मजारों पर भी जाओमठ-मंदिर को घेरने, की है गन्दी चालबजा रहे हैं चिदम्बरम, कुछ ज्यादा ही गाल।कुछ ज्यादा ही गाल, मजारों पर भी जाओउनके धन्धों पर पहले तुम रोक लगाओ।कह “प्रशांत” कुर्सी से नीचे आ जाओगेयदि हिन्दू समाज को ऐसे उकसाओगे।।-प्रशांतसूक्ष्मिकारिश्वतरिश्वत लेने केआरोप में जिन्हेंसलाखों के अन्दरडाला गया…रिश्वत लेने के बाद ही उन्हें,बाहर निकाला गया!-मुकेश त्रिपाठीखेरमाई के सामने, लखेरा, कटनी (म.प्र.)बंद मुट्ठी, खुली मुट्ठीमंथन स्तम्भ के अन्तर्गत श्री देवेन्द्र स्वरूप ने अपने आलेख “खंडित भारत में भी पांच पाकिस्तान” में जिस तरह मुस्लिम बुद्धिजीवियों एवं सेकुलरों की मिलीभगत से भारत को और खण्ड-खण्ड करने की साजिश का पर्दाफाश किया है, उससे राष्ट्रवादियों की आंखें अवश्य खुल जानी चाहिए। आज जिसे देखो वही मुस्लिम वोट बैंक को रिझाने में लगा है। उत्तर प्रदेश के रामपुर में उर्दू-फारसी विश्वविद्यालय की स्थापना का सवाल हो अथवा गाजियाबाद में अवैधानिक रूप से हज हाउस के निर्माण की बात, उद्देश्य मुस्लिम वोट बैंक को आकर्षित करना ही है। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए लालू यादव सभी मर्यादाओं का उल्लंघन कर रहे हैं तो रामविलास पासवान बिहार में मुस्लिम मुख्यमंत्री की रट लगा रहे हैं। पन्द्रह प्रतिशत मुसलमानों के वोटों का इतना अधिक महत्व और 85 प्रतिशत हिन्दू कुछ भी नहीं! यह 15 प्रतिशत बंद मुट्ठी की तरह हैं, जिधर चले गए उधर की ही बल्ले-बल्ले और 85 प्रतिशत खुली मुट्ठी हैं जिनके विषय में सब जानते हैं।-रमेश चन्द्र गुप्तनेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)कांग्रेसी कलह”कांग्रेस के भीतर घात-प्रतिघात” शीर्षक के अन्तर्गत विभिन्न राज्यों में जारी कांग्रेसी उठापटक की कहानी पढ़ी। केरल के सन्दर्भ में “क” का अद्भुत संयोग- “क से केरल, करुणाकरन और कांग्रेसी कलह”- अच्छा लगा। आखिर करुणाकरन को कांग्रेस छोड़नी ही पड़ी। उन्होंने सात दशक तक उसे सींचा था। बंगाल में तो वास्तव में कांग्रेस वाम मोर्चे की “बी टीम” है। उत्तराञ्चल में भी कांग्रेसी अन्तर्कलह चरम पर है। दिल्ली की रपट भी पठनीय है। जम्मू-कश्मीर में तो आज तक कोई हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बना है, हिन्दू वहां अल्पसंख्यक हैं। यह पंथनिरपेक्षता के अलम्बरदारों के लिए शर्मनाक है पर उनके लिए तो अल्पसंख्यक का मतलब केवल मुस्लिम होता है।-रामचन्द बाबानीस्टेशन मार्ग, नसीराबाद (राजस्थान)दो घटनाएंबात 1985 की है। उन दिनों मैं दक्षिण भारतीय भाषा सीखने के लिए मैसूर में था। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान अ.भा. प्रचारक प्रमुख श्री हो.वे. शेषाद्रि भी उन दिनों मैसूर में ही थे। एक दिन सामान्य श्रेणी के डिब्बे से उन्हें बंगलौर जाना था। कुछ कार्यकर्ता उन्हें स्टेशन तक छोड़ने आए। उनमें मैं भी शामिल था। मुझसे कहा गया कि श्री शेषाद्रि जब तक बाहर कार्यकर्ताओं से बात कर रहे हैं, तब तक आप एक सीट पर बैठे रहें ताकि उन्हें दिक्कत न हो। सीट पर बैठ कर मैं सोच रहा था कि श्री शेषाद्रि एक अखिल भारतीय अधिकारी हैं, फिर भी कितने सरल हैं। उनके पास केवल कपड़े का एक थैला और लकड़ी की तख्ती पर लगे कुछ पन्ने थे। उस समय मेरे पास बिहार में ही एक तहसील का दायित्व था। वर्ष में एक नई डायरी होनी चाहिए, यह आकर्षण रहता था। लेकिन उस दिन के बाद वह आकर्षण समाप्त हो गया।एक दूसरी घटना 20 अप्रैल, 2005 की है। नालन्दा विभाग कार्यालय के उद्घाटन कार्यक्रम के लिए हम और श्री रामन्ना पटना संघ कार्यालय से जाने ही वाले थे, तभी समाचार आया कि उ.प्र. के पूर्व राज्यपाल आचार्य विष्णु कान्त शास्त्री का रेलगाड़ी में निधन हो गया है और उनकी पार्थिव देह प्लेटफार्म सं. 5 पर रखा हुआ है। हम तुरन्त स्टेशन पहुंचे। वहां देखा एक महामानव हम सबसे सदा के लिए विदा होकर चिरनिद्रा में लेटा है। मन में प्रश्न उठा कि क्या यह एक भूतपूर्व राज्यपाल थे? कौन कहेगा? सामान्य यात्री की तरह उनके पास भी जूट का बैग, कपड़े का एक थैला और साधारण-सी चप्पल थी।इस घटना से कुछ ही दिन पूर्व की बात है, वे पटना संघ कार्यालय में ठहरे थे। रात्रि भोजन के बाद उन्होंने सबसे बातचीत की थी, हंसी-मजाक भी हुआ था। रसोइए से लेकर वाहन चालक तक की चिन्ता उन्होंने की थी। स्वयं उन्होंने एक रोटी और थोड़ी-सी सब्जी खाई थी। किन्तु अन्य लोगों को उन्होंने बड़े प्रेम से कहा था- कम खाने से काम नहीं चलेगा। खूब खाओ, शरीर को बलिष्ठ बनाओ तभी संघ कार्य होगा। साथ ही उन्होंने यह भी कहा था कि मुझे अब अधिक खाने की आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इस शरीर को अब छोड़ना ही है। तुम सब जम कर खाओ। शायद उन्हें अपने जाने का कुछ आभास हो गया था।एकजुटता का सन्देश”श्री गुरुजी समग्र” के लोकार्पण के अवसर पर सरसंघचालक श्री कुप्.सी. सुदर्शन द्वारा छुआछूत के बारे में व्यक्त विचारों की सराहना की जानी चाहिए। उन्होंने कार्यक्रम के मंच पर दिल्ली खटीक समाज के अध्यक्ष श्री रामगोपाल सूर्यवंशी को बैठाकर हिन्दू समाज को एकजुट रहने और रा.स्व.संघ के माध्यम से दलित वर्ग में फैली कुंठा को पाटने का प्रयास किया है। यह उन राजनेताओं को मुंहतोड़ जवाब देने जैसा है, जो जाति-पाति के नाम पर समाज को बांट कर अपनी राजनीति करते हैं। वर्तमान में हिन्दू समाज की एकजुटता ही उसे षडंत्रकारी ताकतों से बचा सकती है।-रोशनलाल कनवाड़ियाडी 812, मादीपुर कालोनी (नई दिल्ली)सही क्या है?पाञ्चजन्य 3 अप्रैल, 2005 के अंक में वि.सं. 2061 और युगाब्द 5106 लिखा गया था। 10 अप्रैल के अंक से वि.सं. 2062 और युगाब्द 5107 छपा था। 17 अप्रैल में भी यही रहा। किन्तु 24 अप्रैल वाले अंक से युगाब्द 5106 छप रहा है। कृपया सही युगाब्द बताएं।-अम्बा सहाय सिंह ग्रा.-नगला पूर्वी,पो.- बदायूं, जिला-बदायूं (उ.प्र.)इस साल वर्ष प्रतिपदा 9 अप्रैल को थी। इस कारण 10 अप्रैल वाले अंक से वि.सं. और युगाब्द बदल गए थे। किन्तु बाद के कुछ अंकों में भूलवश युगाब्द 5106 छपा है। इसे 5107 ही माना जाए। इस भूल के लिए खेद है। -सं.पुरस्कृत पत्रजरा यह भी सोचें!हम जिस समाज में रह रहे हैं क्या उस समाज, वहां की व्यवस्था, उसकी सुन्दरता के प्रति हमारा कुछ भी दायित्व नहीं है? इन्दौर की जनसंख्या 25 लाख से भी अधिक है। जनसंख्या के अनुपात से यहां वाहनों की संख्या कुछ अधिक ही है। विगत दिनों यहां के एक भीड़ भाड़ वाले बाजार में एक विशाल विवाह समारोह (सामूहिक विवाह) का आयोजन रखा गया। तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने उसकी खूब सराहना की। पूरे मार्ग को दोनों ओर से बंद कर; मुख्य मार्ग पर ही दरियां बिछाकर बैठक व्यवस्था की गई थी। इस कारण यातायात इतना अस्त-व्यस्त था कि लोग परेशान हो गए थे। पर वे कुछ कहने की हिम्मत नहीं कर सकते थे।बड़ी मुश्किल से बचते-बचाते मैं एक खुले स्थान पर आया। कुछ ही देर बाद एक पुलिसकर्मी दिखाई दिया। मैंने हिम्मत करके जनता की परेशानी उसके सामने रखी। उसने दो टूक शब्दों में कहा- “भाई साहब आपको कुछ काम नहीं है क्या? अभी कुछ करेंगे तो जरा सी बात पर ये लोग दंगा भड़का देंगे। जाइए अपना काम कीजिए और मुझे अपनी डूटी करने दें।” यानी पूरा प्रशासन मूक-दर्शक बना देख रहा था।दूसरे दिन फिर उसी स्थान पर किसी काम से जाना हुआ। वहां का दृश्य मन में क्षोभ उत्पन्न करने वाला था। कितने ही चूल्हों की बची-खुची राख सड़क के आस-पास पड़ी थी। रात के भोज की याद ताजा कराती हड्डियां सड़क के चारों ओर बिखरी पड़ी थीं। इनसे स्पष्ट हो रहा था कि यहां मांस पकाया गया था। कुछ लोग वहीं चौराहे पर स्थित मंदिर के दर्शन हेतु हाथ में अगरबत्ती, दीपक लेकर जा रहे थे। किसी तरह बच-बचाकर निकलने के बाद भी एक वृद्धा का पैर एक हड्डी से छू गया। राम-राम करती वह बिना पूजा किए घर लौट गई।भारत एक पंथनिरपेक्ष देश है। यहां सभी को अपने धर्म-पंथ का पालन करने की छूट है। किन्तु इस छूट का अर्थ यह नहीं कि हम दूसरे के धर्म की चिंता ही न करें। सवाल यहां केवल धर्म का ही नहीं है। जरा सोचें, जिस घर में हम रहते हैं, क्या उसे भी इसी तरह गंदा रखते हैं? या इसी प्रकार काम हो जाने के बाद उसकी उपेक्षा करते हैं?ऐसे में उस बीमार व्यक्ति के बारे में सोचें जो उपचार हेतु किसी अस्पताल में जा रहा हो, कोई बच्चा विद्यालय जा रहा हो या कोई दफ्तर जा रहा हो और सड़क जाम के कारण वह समय पर दफ्तर नहीं पहुंचे तो अधिकारी की फटकार मिलती हो। उन पर क्या गुजरता होगा? ऐसी स्थिति में हम किसी मुख्य मार्ग को घेर कर कोई कार्यक्रम करें, क्या उचित है? और कार्यक्रम के बाद की लापरवाही क्या क्षम्य है? जब विवाह में इतना खर्च किया जाता है तो क्या थोड़ा और खर्च कर किसी धर्मशाला या विवाह स्थल पर कार्यक्रम कर लाखों लोगों को परेशानी से नहीं बचा सकते? इस तरह के कार्यक्रम के बाद नगर निगम के सफाईकर्मियों को कितनी कठिनाई होती है, इसका अंदाजा तो स्वयं सफाई करके ही लगाया जा सकता है।-रामभाऊ सोलटनर्मदा प्रोजेक्ट स्टेार, आजाद नगर, इन्दौर-452001 (म.प्र.)हर सप्ताह एक चुटीले, हृदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा। -सं.NEWS
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