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जब बिहार चुनावों के नजीते निकले तो बड़े-बड़े सेकुलरवादियों की अंगुलियां दांतों में दब गईं। लालू राज का देखते-देखते पतन हुआ और बिहार में यूं लगा मानो एक नया सवेरा उदित हुआ। नए सवेरे के सूत्रधार बने नीतीश और सुशील कुमार मोदी। 24 नबम्वर को पटना के गांधी मैदान में उमड़े जनसैलाब के आशीष से शुरुआत हुई। जिस गंदगी और दलदल में बिहार फंस चुका है उससे उबरने में कुछ समय तो लगेगा पर नाउम्मीदी का कोई कारण नहीं है। प्रस्तुत है बिहार विधानसभा चुनाव परिणामों के विभिन्न आयामों में पगा संयोजन। -सं.नीतीश कुमारजंगलराज के विरुद्ध सतत संघर्षरतसुशासन देंगे साथ-साथ – मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदीपटना से महज 50-55 किलोमीटर दूर बख्तियारपुर में जन्मे नीतीश कुमार को राजनीतिक पंडित बिहार की राजनीति का चाणक्य मानते रहे हैं। 24 नवम्बर की दोपहर बिहार के 33वें मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश द्वारा शपथ लेने के साथ ही प्रदेश की राजनीति में एक नई दिशा के संकेत मिलने लगे हैं। इससे पहले वे मार्च, 2000 में सात दिन के लिए मुख्यमंत्री बने थे, लेकिन तब राजग के अल्पमत में होने के कारण उन्हें यह पद छोड़ना पड़ा था।इंजीनियरिंग की उपाधि प्राप्त, नपा-तुला बोलने वाले 54 वर्षीय नीतीश ने राजनीतिक सफर के अनेक उतार-चढ़ाव देखे हैं। पिछड़े वर्ग और दलित मुसलमानों के लिए आरक्षण पर उनके स्पष्ट दृष्टिकोण के बावजूद आधुनिक राजनीति के इस रचनाकार ने अपनी पार्टी के गर्म मिजाज नेताओं और भाजपा के बीच तालमेल स्थापित करने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ी।राम मनोहर लोहिया के समाजवादी ढांचे में ढले नीतीश बिहार कालेज आफ इंजीनियरिंग के छात्र के रूप में छात्र राजनीति में दाखिल हुए और जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में 1974 में हुए छात्र आंदोलन के प्रमुख नेता के रूप में उभरे। इस आंदोलन के परिणामस्वरूप इंदिरा सरकार अपदस्थ हुई और 1977 में केन्द्र में गैरकांग्रेसी सरकार बनी।जनता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में नीतीश ने अपने गृह जिले नालंदा के हरनौत विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ा पर देशभर में बह रही कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद वह हार गए। 1980 में एक बार फिर भाग्य ने उनका साथ नहीं दिया, जब जनता पार्टी सरकार गिरने के बाद कांग्रेस की अभूतपूर्व वापसी हुई। हालांकि उनके समकालीन लालू यादव और रामविलास पासवान 1977 में लोकसभा चुनाव जीतकर सांसद बन चुके थे।स्पष्ट विचारों और राजनीति की गहरी समझ रखने वाले नीतीश कुमार एक प्रभावी वक्ता के रूप में सामने आए और हरियाणा के वरिष्ठ नेता देवीलाल से उनकी निकटता के कारण उन्हें 1989 में बाढ़ से कांग्रेस के दमदार नेता रामलखन सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने का मौका मिला और आखिरकार नीतीश ने जीत दर्ज की। इसके बाद उन्होंने मुड़कर नहीं देखा और बाढ़ से लगातार सांसद बनते रहे। इस समय वे नालंदा का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। 2004 में हालांकि नीतीश बाढ़ में राजद के विजय कृष्ण से चुनाव हार गए थे, लेकिन जद (यू) अध्यक्ष जार्ज फर्नांडीस द्वारा खाली की गई नालंदा सीट से जीतकर संसद पहुंचे।एक कुशल प्रशासक के रूप में पहचान बनाने वाले नीतीश 1990 में वी.पी. सिंह सरकार में कृषि मंत्री बने। 1990 में लालू यादव को मुख्यमंत्री पद तक पहुंचाने में विशेष भूमिका निभाने के बावजूद नीतीश कुमार और लालू यादव के बीच रिश्तों में खटास आ गई। इसका कारण राजद अध्यक्ष की निरंकुश कार्यशैली थी। आखिर 1994 में नीतीश ने जार्ज फर्नांडीस और 12 अन्य सांसदों के साथ अपना रास्ता अलग करते हुए समता पार्टी बनाई और लालू-राबड़ी राज के खिलाफ सतत राजनीतिक संघर्ष छेड़ दिया। 1998 में जब राजग केन्द्रीय सत्ता में आई तब नीतीश को रेल मंत्रालय सौंपा गया, साथ ही भूतल परिवहन विभाग का अतिरिक्त दायित्व भी मिला। अगस्त, 1999 में प. बंगाल में सिलीगुड़ी के निकट गइसल रेल दुर्घटना में सैकड़ों यात्रियों की जान चली गई थी। इसकी नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए नीतीश ने रेलमंत्री पद से त्यागपत्र दे दिया। नवम्बर 1999 से मार्च, 2000 और पुन: मई, 2000 से मार्च 2001 के बीच उन्हें कृषि मंत्री के रूप में केन्द्रीय मंत्रिमंडल में स्थान मिला। मार्च, 2001 से मई, 2004 के दौरान रेल मंत्रालय फिर नीतीश कुमार के अधीन आया।NEWS
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