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प्रिय बन्धुओ,सप्रेम जय श्रीराम।आपने थुम्बा का नाम शायद सुना हो। अन्तरिक्ष में राकेट प्रक्षेपण का यह गौरवशाली भारतीय केन्द्र है, जहां वैज्ञानिकों का प्रतिदिन बारह से अठारह घंटे तक कार्य करना सामान्य बात है। वहीं एक विशेष प्रकल्प पर लगभग 70 वैज्ञानिक काम कर रहे थे। काम का दबाव इतना था कि अक्सर तनाव और बोझिलपन भी आ जाता था। लेकिन जब वे अपने मुख्य अधिकारी को देखते तो चुप रह जाते और शिकायत नहीं कर पाते थे। एक दिन एक वैज्ञानिक ने हिम्मत की और अपने अधिकारी से कहा, “सर मैंने बच्चों से वायदा किया है कि आज शाम को उन्हें शहर में एक प्रदर्शनी दिखाने ले जाऊंगा। इसलिए मैं शाम 5.30 बजे दफ्तर से जाना चाहूंगा।” अधिकारी ने कहा, “ठीक है आज आप जल्दी घर जा सकते हैं।” वह वैज्ञानिक खुश होकर वापस काम पर लौट गए। शाम को अचानक उसकी निगाह घड़ी पर गई तो उनके पसीने छूट गए। बाप रे! 8.30 बज गए। काम में इतने मगन रहे कि ध्यान ही नहीं रहा कि 5.30 बजे उन्हें घर लौटना था। जल्दी-जल्दी कागज संभालकर वह घर पहुंचे तो देखा कि बच्चे वहां नहीं थे और पत्नी कमरे में बैठकर पत्रिका पढ़ रही थी। मामला विस्फोटक देख वह चुपचाप अपने कमरे में जाने लगे तो पत्नी ने मधुरता से पूछा, “आप अभी चाय लेंगे या काफी? या भूख लगी हो तो मैं सीधे खाना परोसूं?” वैज्ञानिक सकते में पड़ गए। संकोच से कहा, “तुम काफी लोगी तो मैं भी ले लूंगा, लेकिन बच्चे कहां हैं?” पत्नी ने जवाब दिया, “अरे तुम्हें नहीं मालूम, सवा 5 बजे तुम्हारे मैनेजर आए थे और वे बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने ले गए।”हुआ यह कि जब मैनेजर ने 5 बजे वैज्ञानिक को तल्लीनता से काम में जुटा पाया तो उन्हें लगा कि इन्हें काम से हटाना ठीक नहीं है और वे स्वयं उस वैज्ञानिक के बच्चों को प्रदर्शनी दिखाने चले गए।अधिकारी के ऐसे ही व्यवहार का जादुई असर था कि थुम्बा में हर कोई पूरे समर्पण के साथ काम में जुटा रहता था।आप जानना चाहेंगे उस मैनेजर का क्या नाम था? वे थे प्रो. अब्दुल कलाम।शेष अगली बारआपका अपनात.वि.NEWS
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