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पाठकीय

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Apr 9, 2005, 12:00 am IST
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दिंनाक: 09 Apr 2005 00:00:00

अंक-सन्दर्भ, 7 अगस्त, 2005क्या बेवजह है शक?पञ्चांगसंवत् 2062 वि. वार ई. सन् 2005 भाद्रपद शुक्ल 1 रवि 4 सितम्बर, 05 ,, ,, 2 सोम 5 ,, ,, ,, 3 मंगल 6 ,, ,, ,, 4 बुध 7 ,, ,, ,, 5 गुरु 8 ,, ,, ,, 6 शुक्र 9 ,, ,, ,, 7 शनि 10 ,, आवरण कथा के अन्तर्गत श्री तरुण विजय का लेख “दुनिया में शक के दायरे में मुस्लिम” पढ़ा। दरअसल मूल समस्या मानसिकता की है। यहां एक वर्ग में एक ऐसी चालाक मानसिकता काम करती है, जो संख्या की कमी की स्थिति में लोकतंत्र चाहती है और बहुलता में मजहब-तंत्र। यह उस मध्ययुगीन विचारधारा को भी नहीं छोड़ना चाहती, जिसके माध्यम से पूरी दुनिया को हरे परचम के नीचे लाने की योजना है। प्रेम, शान्ति और भाईचारे का उपदेश देने वाले इस्लामी विद्वानों का, उन प्रशिक्षण शिविरों और मदरसों पर दखल क्यों नहीं है, जहां जिहादी तैयार होते हैं? वास्तव में इस्लाम के सच्चे मूल्यों एवं आदर्शों को स्थापित करना है तो मुस्लिम समाज को खुलकर आतंकवादियों का विरोध करना होगा और उस जमीन को बंजर बनाना होगा, जहां से ऐसे तत्वों की फसल उगती है अन्यथा शक, सन्देह और अपमान झेलना ही पड़ेगा।-डा. हेमन्त शर्मामहू (म.प्र.)आवरण कथा में लेखक का कहना है कि इमराना के खिलाफ फतवा देने वाले, आतंकवाद के खिलाफ फतवा क्यों नहीं देते? वास्तव में फतवा केवल सवाल का जवाब ही होता है। इमराना मामले में जब किसी ने इमराना का नाम लिए बिना यह सवाल पूछा था कि यदि कोई ससुर अपनी बहू के साथ यौन सम्बन्ध बनाए तो क्या होगा? इसका जवाब देवबन्द की तरफ से दिया गया था। आतंकवाद के खिलाफ यदि आप कोई फतवा चाहते हैं तो इसका तरीका यह है कि पहले उससे जुड़ा कोई सवाल भेजें।-हारुन रशीद, 14,भगत वाटिका, सिविल लाइन्स, जयपुर (राजस्थान)इमराना प्रकरण पर तुरन्त फतवा जारी करने वालों ने आज तक उन कट्टरपंथियों की निन्दा क्यों नहीं की, जो आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त हैं? जबकि पूरी दुनिया में हर घटना के बाद पता चलता है कि इसके पीछे फलां आतंकवादी संगठन का हाथ था और ये संगठन इस्लाम की ही दुहाई देकर तोड़-फोड़ करते हैं और निर्दोष लोगों को मारते हैं। जो समाज सलमान रुश्दी के लिए मौत का फतवा देता है, वह ओसामा बिन लादेन की भत्र्सना करने से भी बचता है। इस हालत में शक के सिवा और क्या पैदा होगा?-दिलीप शर्मा, 114/2205,एम.एच.वी. कालोनी,कांदीवली पूर्व, मुम्बई (महाराष्ट्र)मजहबी नेता और देवबंद के मदरसे इमराना, इशरत जहां, शाहबानो जैसे मामलों पर अपनी राय तुरन्त दे देते हैं, लेकिन अयोध्या, अक्षरधाम, रघुनाथ मंदिर और संसद पर हुए हमलों पर एक शब्द भी नहीं बोलते कि यह वारदात गैर इस्लामी है और इस्लाम इसकी इजाजत नहीं देता। आपने सही लिखा है कि कश्मीर को जो सुविधा भारत सरकार ने दे रखी है उससे दूसरे राज्यों को जलन हो सकती है। आज तक कश्मीर का मुख्यमंत्री कोई हिन्दू नहीं हुआ, फिर भी कश्मीरी मुसलमानों ने अपने पूर्वजों को कश्मीर से निकाल दिया। कश्मीर की वर्तमान स्थिति के लिए कौन जिम्मेदार है?-इंजीनियर सुशील चन्द्ररूद्रपुर (उ.प्र.)आवरण कथा, चर्चा-सत्र, थामस एल. फ्रीडमेन का लेख “यह सभ्यतामूलक समस्या है” और ख्वाजा हसन सानी नियाजी एवं कारी मोहम्मद मियां मजहरी के विचार पढ़े। सबने किसी एक व्यक्ति पर नहीं, बल्कि कट्टरवाद और जिहाद पर आक्रमण किया है। आक्रमण की धार तेज करने के लिए ईसाई थामस एवं दो मौलवियों की भी सहायता ली गई है।-मोहम्मद हनीफ खान643, मदारपुरा, मंदसौर (म.प्र.)1 कोई भी पंथ हिंसा नहीं सिखाता है। परन्तु कुछ कट्टरपंथी अपने कारनामों को मजहब का रंग देकर इस्लाम की बदनामी कर रहे हैं। इसी कारण पूरी दुनिया के मुसलमान शक के दायरे में आ रहे हैं।-वेद प्रकाश विभीषणस्वामी विवेकानन्द मार्ग, जी. टांड़, गया (बिहार)विष बेलचर्चा सत्र में प्रकाशित लेख “मजहबी आतंक का माफिया” भीतर तक मथ गया। यह दुर्भाग्य की बात है कि जिस बंगलादेश के उदय में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, उसी बंगलादेश में भारत के विरुद्ध विष बेल पनप रही है। आवरण कथा भी अच्छी लगी। यह बिल्कुल सही कहा गया है कि आज पूरी दुनिया में मुस्लिम शक के घेरे में हैं।-रामचन्द बाबानीस्टेशन मार्ग, नसीराबाद (राजस्थान)टूटेंगे परिवारपहले टूटा देश अब, टूटेंगे परिवारऐसा घातक नियम यह, लाई है सरकार।लाई है सरकार, भाई औ बहिन लड़ेंगेपैतृक सम्पत्ति को लेकर लट्ठ बजेंगे।कह “प्रशांत” महिला मालिक है पति के घर कीसदा-सदा से ये ही है सम्पत्ति उसकी।।-प्रशांत सूक्ष्मिकानलमंत्री जी द्वारालगवाया गयासार्वजनिक नल।उन्हीं की तरहकरतब दिखाता हैकभी नहीं आता है।-मुकेश त्रिपाठीखेरमाई के सामने, लखेरा, कटनी (म.प्र.) सोमनाथ का संदेशडा. लज्जा देवी मोहन के आलेख “द्वारका और सोमनाथ-हिन्दू हृदय के श्रद्धा केन्द्र” ने मन की भावनाओं को एक बार फिर से जाग्रत कर दिया। मैंने 1997 में इन दोनों स्थानों का भ्रमण किया था। उस समय सोमनाथ के मन्दिर को देखकर मैंने अपनी कल्पना में सन् 1023 में बर्बर महमूद गजनी के तीस हजार सैनिकों का हमला देखा था, जिसमें हजारों हिन्दुओं को गाजर-मूली की तरह काट डाला गया था। मंदिर की अपार धन-सम्पत्ति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि मंदिर में लगी एक जंजीर 22 मन सोने से निर्मित थी। दु:ख एवं दुर्भाग्य का विषय तो यह है कि न तो हिन्दुओं ने उस समय मिलकर महमूद का सामना किया था और न ही आज राष्ट्र की अस्मिता, जो फिर मंझधार में है, को बचाने का कोई प्रयत्न कर रहे हैं।-आर.सी. गुप्तानेहरू नगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)स्वयंसेवकत्व का प्रदर्शन”श्रमजीवी एक्सप्रेस में विस्फोट-पीड़ितों की मदद को पहुंचे स्वयंसेवक”, यह समाचार व चित्र प्रकाशित कर, उन हिन्दुत्व विरोधियों को करारा झटका दिया गया है जिन्हें संघ विचार परिवार साम्प्रदायिक ही दिखाई देता है जिन्हें उसके द्वारा किए सेवाकार्य नहीं दिखते। स्वयंसेवकों की सेवा भावना सराहनीय है। बलवीर सिंह करुण की कविता “कितने पर्दे और उठाऊं” बहुत ही सुन्दर, सारगर्भित और सामयिक लगी। ऐतिहासिक उपन्यास “चित्रकूट का चातक” की समीक्षा अच्छी रही। आन्ध्र प्रदेश में अचानक चर्च और मस्जिदों की बाढ़ क्यों? आंकड़े प्रकाशित कर सत्य से साक्षात्कार कराया गया है।-सुरेन्द्र शर्मा, 70,सदर बाजार, नसीराबाद (राजस्थान)ये लोगगुड़गांव काण्ड की तथ्यात्मक रपट पढ़ी। इस काण्ड के पीछे की मानसिकता ने दो वर्ष पूर्व राजस्थान में भी जातीय व साम्प्रदायिक वैमनस्य फैलाने की असफल कुचेष्टा की थी। हाल ही में गंगानगर क्षेत्र में पानी व बिजली के मुद्दे पर किसानों को आन्दोलन करने हेतु उकसाया था। जहां लोग शान्ति से रहते हैं, वहां ये कम्युनिस्ट आग लगा देते हैं। यही लोग तथाकथित अव्यवस्था के नाम पर आन्दोलन करके समाज में कटुता का वातावरण निर्माण करते हैं। जहां इनका जनाधार नहीं होता है, वहां इनको इसी बहाने आन्दोलन का मौका मिल जाता है। इनके समाज विरोधी मंसूबों को कामयाब नहीं होने देना चाहिए। अन्यथा ये पूरे राष्ट्र को खण्डित करके समाज को और ज्यादा बांट देंगे।-नैनाराम सेपटावासोमेसर, जिला-पाली (राजस्थान)केन्द्र सरकार की ठीक नाक के नीचे गुड़गांव में हुई पुलिसिया कार्रवाई ने बर्बरता की सभी सीमाएं लांघ दीं। अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य को स्थापित करने के लिए पुलिस-प्रशासन की व्यवस्था इस प्रकार की कर रखी थी कि ताकि वह जनता पर मनमाना जुल्म ढहा सके। लेकिन स्वतंत्रता प्राप्ति के 5 दशक पश्चात् भी लगता है कि अपने देश में जनरल डायर के प्रतिनिधि अभी भी मौजूद हैं। अंग्रेस शासक भी पहले जनता को पिटवाते थे और फिर जांच आयोग गठित करते थे। आज भी वही हो रहा है।-रामबाबू शर्माडी-690 रीको, आबूरोड (राजस्थान)उनकी दृष्टि में मंगल पांडे…केतन मेहता की फिल्म “मंगल पांडे : द राइजिंग” के परिप्रेक्ष्य में एक कुलीन इतिहासकार की टिप्पणी हैरतअंगेज है। रुद्रकांक्षु मुखर्जी नामक इन अध्येता का कहना है कि 1857 की क्रांति मंगल पांडे ने भांग के नशे में की थी, लिहाजा उन्हें स्वातंत्र्य संग्राम का पहला शहीद नहीं माना जा सकता। मुखर्जी महोदय से पूछा जाना चाहिए कि भंग का रंग जमाते हुए मंगल पांडे ने कोई अनैतिक कार्य क्यों नहीं किया? उसे वतनपरस्ती ही क्यों याद आई? ऐसे आसुरी वक्तव्य का मंतव्य समझना होगा। दरअसल इतिहास की कोई भी पदचाप, जिससे राष्ट्रीयता के स्वर निकलते हों, हमारी सेकुलर बौद्धिक जमात को रुआंसा कर देती है। अपराध जगत के दखल के बावजूद बालीवुड गाहे-बगाहे अपने राष्ट्रनायकों को याद कर लेता है। जबकि सरदार, सावरकर, बोस जैसी फिल्मों को दर्शकों की बेरुखी ही मिली, फिर भी बालीवुड ने देशभक्ति दिखाई। यह अलग बात है कि भीड़ मंगल पांडे में भी “सुपरस्टार” को देख रही है, राष्ट्रनायक को नहीं। वह दो वर्ष के अथक परिश्रम से उगाई गई नायक की मूंछों पर फिदा है। फिर सितारे से ज्यादा चमकीला उसका उपनाम है। अगर असली जिंदगी में यज्ञोपवीत धारण करने वाले किसी अभिनेता ने मंगल पांडे की भूमिका निभाई होती तो संभवत: अंग्रेजी अखबार उसे पहले ही दिन कूड़ेदान में फेंक देते। बहरहाल, इस अभिजात्य मंडली की बदहवासी का सबब दूसरा है। उसे भय है कि मंगल पांडे कहीं देशवासियों में राष्ट्रप्रेम की अलख न जगा दे।-राहुल ब्राजमोहन22 ब/31, सेक्टर-ए, साईंनाथ कालोनीतिलक नगर, इन्दौर (म.प्र.)संस्कृति-वाहकगत 15 अगस्त को देव, देश और धर्म को केन्द्रबिन्दु मानकर सुदर्शन टी.वी. चैनल शुरू हुआ, यह प्रसन्नता की बात है। आज अन्य चैनल अपने सामाजिक दायित्वों को भूलकर अपसंस्कृति को बढ़ावा दे रहे हैं। आशा है इस हालत में भी सदुर्शन टी.वी. देशभक्ति एवं संस्कृति से जुड़ी बातों को आम लोगों तक पहुंचाने में सफल रहेगा।-चन्द्रकांत यादवचांदीतारा, साहूपुरी, चंदौली (उ.प्र.)NEWS

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