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बस एक चाहजीवन भर उनकी सेवा करूंश्रीमती अनीता सहरावत अपनीसास के साथमैं अपने घर में बहुत लाड़ प्यार से पली थी। सबसे छोटी होने के कारण लोग मुझे अक्सर घरेलू काम-काज से दूर रखते थे। लेकिन शादी के बाद जब मैं अपनी ससुराल पहंुची तो घर की बड़ी बहू होने के कारण अचानक मुझ पर काम का दबाव बढ़ गया। खेतों में काम करना, पशुओं की देखभाल आदि का कोई अनुभव मुझे नहीं था। गांव में माताजी-पिताजी ने मुझे जिन कामों से दूर रखा था अब वहीं काम मेरे सर पर आ गए। लेकिन खेती-बाड़ी के परिवार से सम्बंधित होने के कारण मैं इतना तो जानती ही थी कि ये सब काम कैसे किये जाते हैं। ससुराल में मेरी कल्पना के विपरीत मेरी सास ने इस परिस्थिति में मेरे काम में हाथ बंटाया। मेरा जो सहयोग और शिक्षण उन्होंने उस समय किया, वह आज भी मुझे भूलता नहीं। पहले तो मैं उनसे सकुची-सकुची, सहमी-सहमी रहती थी लेकिन धीरे-धीरे सब भय दूर होते गए। ये सब उनके प्यार का ही असर था।मेरी सास, मेरी मां, मेरी बहू, मेरी बेटीजब भी सास बहू की चर्चा होती है तो लगता है इन सम्बंधों में सिर्फ 36 का आंकड़ा है। सास द्वारा बहू को सताने, उसे दहेज के लिए जला डालने के प्रसंग एक टीस पैदा करते हैं। लेकिन सास-बहू सम्बंधों का एक यही पहलू नहीं है। हमारे बीच में ही ऐसी सासें भी हैं, जिन्होंने अपनी बहू को मां से भी बढ़कर स्नेह दिया, उसे आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। और फिर पराये घर से आयी बेटी ने भी उनके लाड़-दुलार को आंचल में समेट सास को अपनी मां से बढ़कर मान दिया। क्या आपकी सास ऐसी ही ममतामयी हैं? क्या आपकी बहू सचमुच आपकी आंख का तारा है? पारिवारिक जीवन मूल्यों के ऐसे अनूठे उदाहरण प्रस्तुत करने वाले प्रसंग हमें 250 शब्दों में लिख भेजिए। अपना नाम और पता स्पष्ट शब्दों में लिखें। साथ में चित्र भी भेजें। प्रकाशनार्थ चुने गए श्रेष्ठ प्रसंग के लिए 200 रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा।उनका एक रूप और, जो आज भी मेरे मन में उनके प्रति एक श्रद्धा पैदा कर देता है, वह उस समय देखने को मिला जब मुझे दूसरी बार बेटी हुई। मेरी एक बेटी पहले से ही थी, इसलिए घर के लोग इस बार बेटे की आस लगाए थे। मुझे घर वालों के चेहरों पर चिन्ता की लकीरें दिखीं और सबसे बड़ी चिन्ता मुझे सासू मां की थी कि उनका व्यवहार अब कैसा रहेगा। लेकिन जब यह कहते हुए मेरी सास ने अपनी पोती को गोद में उठा लिया, “अरे कन्या तो लक्ष्मी का रूप होती है, भाग्यशाली के घर में आती है” तो इतना सुनते ही मेरी आंखों से खुशी के आंसू टपक पड़े।”स्त्री” स्तम्भ के लिए सामग्री, टिप्पणियां इस पते पर भेजें-“स्त्री” स्तम्भद्वारा,सम्पादक, पाञ्चजन्य, संस्कृति भवन,देशबन्धु गुप्ता मार्ग, झण्डेवाला, नई दिल्ली-55तब मुझे अहसास हुआ कि सास भी मां का ही रूप होती है। आज मेरी शादी को 23 वर्ष हो चुके हैं। मेरी सासू जी और मेरे बीच प्रेम का अटूट बन्धन ऐसा बना कि आज भी मेरा मन उनकी सेवा से भरता नहीं।अनीता सहरावतबक्करवाला, दिल्ली-41NEWS
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