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संस्थापक एवं मार्गदर्शक-
स्व. दत्तोपंत ठेंगडी
भारतीय मजदूर संघ
राष्ट्रवादी मजदूर आंदोलन के 50 वर्ष
84 लाख मजदूर,
1 करोड़ 68 लाख हाथ
पचास वर्ष पूर्व 23 जुलाई, 1955 को जब भोपाल में भारतीय मजदूर संघ की स्थापना हुई थी, तब इसके संस्थापक स्व. दत्तोपंत ठेंगडी को छोड़कर शायद ही किसी ने कल्पना की होगी कि यह मजदूर संगठन एक दिन संसार के मानचित्र पर मजदूर क्षेत्र में फैले “माक्र्स के साम्राज्य” को चुनौती देते हुए एक नई सृष्टि का निर्माण करेगा। आज यह दुनिया के लोकतांत्रिक देशों में गैरसरकारी श्रमिक संगठनों के बीच सबसे बड़ा संगठन बनकर उभरा है। इस महान संगठन के समर्थ साधक व प्रणेता स्व. दत्तोपंत ठेंगडी इस बार भारतीय मजदूर संघ के स्वर्ण जयंती अधिवेशन में मार्गदर्शन के लिए भले ही भौतिक रूप से उपस्थित न हों, लेकिन भारतीय मजदूर संघ के कार्यकर्ताओं की सांस-सांस में वह रच-बस गए हैं। यह पहला अवसर है जबकि उनके बिना मजदूर संघ का कोई विशाल अधिवेशन सम्पन्न होगा। यद्यपि उनकी अनुपस्थिति सभी के लिए असीम वेदना देने वाली है, लेकिन जो मार्ग वे दिखा गए हैं वह अब मजदूर संघ का पाथेय बन चुका है।
नई दिल्ली में 3 अप्रैल से 5 अप्रैल, 2005 तक भारतीय मजदूर संघ के स्वर्ण जयंती वर्ष के अवसर पर 14वें राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया जा रहा है। ऐसे में सन् 1967 का स्मरण हो आता है जब नई दिल्ली में ही भारतीय मजदूर संघ का पहला अधिवेशन आयोजित किया गया था। उस समय देश में इसकी सदस्य संख्या 2,46,902 और सम्बद्ध श्रमिक संगठनों की संख्या 541 थी। इसके 38 वर्ष बाद हजारों कार्यकर्ताओं के अथक परिश्रम, संघर्ष और कितने ही आन्दोलनों के पश्चात् भारतीय मजदूर संघ सरकारी आंकड़ों के आधार पर 32 राज्यों के 44 औद्योगिक इकाइयों में 4,287 पंजीकृत यूनियनों और 83,18,348 सदस्य श्रमिकों के साथ देश में चोटी का मजदूर संगठन बन गया है। इसके कई वर्ष पूर्व प्रारम्भ हुए इंटक, हिन्द मजदूर सभा, एटक, सीटू आदि श्रमिक संगठनों में इंटक को छोड़कर शेष बहुत पीछे छूट गये हैं। भारतीय मजदूर संघ की इस सफलता के पीछे कार्यकर्ताओं के अपरिमित परिश्रम की लम्बी संघर्ष गाथा है। मजदूर क्षेत्र में “परिवार भाव” को प्रतिष्ठा देने वाला, राष्ट्रीय दृष्टिकोण के आधार पर समस्याओं के समाधान का रास्ता खोजने वाला भारतीय मजदूर संघ अपनी अनोखी-कार्यप्रणाली के आधार पर ही आज न केवल इस उच्च स्थान पर पहुंचा है वरन् उसने इसे बनाए रखा है। मजदूरों की मांगों के लिए संघर्षपूर्ण आन्दोलनों में, चीन व पाकिस्तान के साथ युद्ध के समय राष्ट्रीय दायित्व के परिपालन, विभिन्न श्रम आयोगों व केन्द्र व राज्य सरकारों के समक्ष दृढ़ता से मजदूर हितों का पोषण, आपातकाल विरोधी आन्दोलन अथवा भारतीय अर्थनीति पर विश्व व्यापार संगठन के आक्रमण जैसे कितने ही विषयों और मुद्दों पर भारतीय मजदूर संघ ने राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य को ध्यान में रखकर श्रमिकों की आवाज बुलन्द की है। जहां भारत में संघ ने विश्वकर्मा जयन्ती को अघोषित श्रमदिवस के रूप में मान्यता दिलाने में सफलता प्राप्त की है वहीं उसने अन्तरराष्ट्रीय श्रम सम्मेलनों में श्रमिक संघों का स्वरूप गैरराजनीतिक रखने का प्रस्ताव भी पारित कराया। मजदूर संघ द्वारा सन् 2001 में भारत सरकार से किया गया आह्वान “विश्व व्यापार संगठन मोड़ो-तोड़ो-छोड़ो” विश्वव्यापी चर्चा का विषय बना। सामाजिक दायित्व की पूर्ति करते हुए भारतीय मजदूर संघ ने “सर्वपंथ समादर मंच” का गठन तो किया ही है, वैश्वीकरण के अन्तरराष्ट्रीय मकड़जाल के विरुद्ध इसका संघर्ष आज भी जारी है।
भारतीय मजदूर संघ की प्रगति
अधिवेशन
वर्ष
स्थान
सदस्य संख्या
पहला
1967
दिल्ली
2,46,902
दूसरा
1970
कानपुर
4,56,100
तीसरा
1972
मुम्बई
5,67,465
चौथा
1975
अमृतसर
8,39,432
पांचवा
1978
जयपुर
10,83,488
छठा
1981
कोलकाता
18,05,910
सातवां
1984
हैदराबाद
20,53,721
आठवां
1987
बंगलौर
32,86,559
नवां
1991
वडोदरा
38,89,376
दसवां
1994
धनबाद
45,42,600
ग्यारहवां
1996
भोपाल
47,18,831
बारहवां
1999
नागपुर
64,31,691
तेरहवां
2002
तिरुअनन्तपुरम
83,18,348
चौदहवां
2005
दिल्ली
84,40,281
भारतीय मजदूर संघ का
स्वर्ण जयन्ती समारोह
केन्द्रीय श्रममंत्री करेंगे उद्घाटन
भारतीय मजदूर संघ के स्वर्ण जयन्ती वर्ष के 15वें राष्ट्रीय अधिवेशन का उद्घाटन केन्द्रीय श्रम मंत्री श्री के. राजेश्वर राव करेंगे। अधिवेशन के लिए नई दिल्ली के रामलीला मैदान में टैन्टों व पण्डालों से बनाए जा रहे अस्थायी नगर, जिसे दत्तोपंत ठेंगडी नगर नाम दिया गया है, में देशभर से लगभग 4,500 प्रतिनिधियों के शामिल होने की संभावना है। 3 अप्रैल की प्रात: 10 बजे केन्द्रीय श्रममंत्री इस त्रिदिवसीय अधिवेशन का उद्घाटन करेंगे। कार्यक्रम की अध्यक्षता भा.म.संघ के अध्यक्ष श्री हसुभाई दवे करेंगे तथा मुख्य वक्ता होंगे संगठन के महामंत्री श्री उदयराव पटवर्धन।
भारतीय मजदूर संघ – विश्व का सबसे बड़ा गैरसरकारी मजदूर संगठन
(केन्द्रीय श्रम संगठनों द्वारा 31 दिसम्बर, 2002 तक दिया गया सदस्य संख्या का ब्यौरा) केन्द्रीय श्रम संगठन राज्य औद्योगिक इकाइयां श्रमिक इकाइयां 2002 की सदस्यता का दावा 1980 में सत्यापित सदस्यता 1989 में सत्यापित सदस्यता
भारतीय मजदूर संघ 32 44 4287 83,18,348 12,11,345 31,17,324
इंटक 32 44 4818 78,68,192 22,36,128 27,06,451
हिन्द मजदूर सभा 23 – 1378 53,50,441 7,62,882 14,77,472
एटक 28 38 2272 46,12,457 3,44,746 9,23,517
सीटू 24 – 4028 34,31,518 3,31,031 17,98,809
लक्ष्य और उद्देश्य
भारतीय मजदूर संघ के संक्षेप में लक्ष्य और उद्देश्य इस प्रकार हैं-
(क) भारतीय मान्यताओं पर आधारित समाज की पुनस्स्थापना, जिसमें निम्नलिखित विषय हैं :-
श्रम शक्ति तथा स्रोतों का पूरा सदुपयोग ताकि सभी को रोजगार मिले और अधिकतम उत्पादन किया जा सके।
मुनाफाखोरी के भाव को सेवाभाव में बदलना, जिससे आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की जा सके और परिणामस्वरूप संपत्ति का बंटवारा इस प्रकार हो कि जिसका लाभ सभी नागरिकों तथा पूरे राष्ट्र को मिले।
स्वायत्तशासी औद्योगिक समूहों को इस प्रकार विकसित करना, जिससे वे राष्ट्र के अभिन्न अंग बनकर उद्योगों के श्रमिकीकरण का रास्ता साफ कर सकें।
प्रत्येक हाथ को न्यूनतम मजदूरी के साथ काम उपलब्ध कराना, इसके लिए समूचे राष्ट्र में अधिक से अधिक उद्योगों की स्थापना करना।
(ख) उपरोक्त उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु श्रमिकों के सामथ्र्य में वृद्धि करना और उन्हें इतना बलशाली बनाना कि वे अपने हितों का संरक्षण और संवर्धन शेष समाज के अनुरूप स्वयं कर सकें।
(ग) श्रमिक के मन में सेवाभाव तथा उद्योग के प्रति जवाबदेही, जिम्मेदारी की भावना जगाना।
(ड़) अभ्यास वर्ग, अध्ययन शिविर, बौद्धिक वर्ग, सम्मेलनों आदि द्वारा श्रमिकों का शिक्षण-प्रशिक्षण करना और इस कार्य में केन्द्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड, श्रम अनुसंधान केन्द्र, राष्ट्रीय श्रम संस्थान व विश्वविद्यालयों की सहायता पाप्त करना।
(च) साप्ताहिक, पाक्षिक या मासिक पत्र, पत्रिकाओं, पत्रकों, पुस्तकों और श्रम व श्रमिक संबंधी अन्य अनेक प्रकार के साहित्य को स्वयं प्रकाशित करना अथवा प्रकाशन में सहायक होना और इस प्रकार के साहित्य की खरीद-बिक्री करना।
(छ) श्रम अनुसंधान केन्द्रों की स्थापना करना।
(ज) वह सभी कदम उठाना जिनसे श्रमिकों की सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और स्वास्थ्य संबंधी स्थितियों में बेहतरी हो। अच्छे स्वास्थ्य की दृष्टि से यह संगठन किसी प्रकार के नशे अथवा धूम्रपान के विरुद्ध है।
(झ) जनसाधारण के लिए सामान्यत: किन्तु श्रमिक और उसके परिवार के कल्याण व मनोरंजन के लिए विशेषतया कोआपरेटिव सोसायटी, परिवार कल्याण केन्द्र तथा मनोरंजनालयों की स्थापना करना।
नई आर्थिक नीति एवं भा.म.संघ
नई आर्थिक व औद्योगिक नीति का विरोध करने वाला भारतीय मजदूर संघ पहला श्रम संघ है जिसने द्वितीय आर्थिक स्वतंत्रता संग्राम का नारा दिया है। साथ ही साथ मजदूर संघ ने कुछ रचनात्मक विकल्प भी सुझाए हैं। विश्व बैंक व अन्तरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा हमारे देश पर थोपी जा रही शर्तों का इसने जोरदार विरोध किया है, क्योंकि इन शर्तों के कारण हमारी सार्वभौमिकता ही खतरे में पड़ सकती है। अत: आर्थिक क्षेत्र में स्वदेशी प्रारूप प्रस्तुत करने की चुनौती को भारतीय मजदूर संघ ने स्वीकार किया है और इसके लिए सर्वप्रथम स्वदेशी उत्पाद प्रयोग में लाए जाने की मुहिम छेड़ी है। इसमें मजदूर संघ ने घाटे में चल रहे उन सभी सार्वजनिक प्रतिष्ठानों को लाभकारी उद्योग में बदलने के लिए श्रमिकों से पूरा सहयोग करने का आग्रह किया है ताकि उद्योग मजबूती से चलाए जा सकें।
सार्थक नारे
मजदूर क्षेत्र में प्रचलित अवैज्ञानिक तथा घृणा पर आधारित विघटनकारी नारों के स्थान पर भारतीय मजदूर संघ ने सार्थक और सृजनात्मक नारे दिए हैं, जैसे “दुनिया भर के मजदूरो-एक हो” के स्थान पर नारा दिया “मजदूरो, दुनिया को एक करो”। इसी प्रकार मजदूर संघ के द्वारा दिये इन कुछ नारों ने मजदूरों की सोच बदल दी-
“भारत माता की जय”
“देश के हित में करेंगे काम,
काम के लेंगे पूरे दाम।”
“मजदूर संघ की क्या पहचान,
त्याग-तपस्या और बलिदान”
“देश की रक्षा पहला काम,
सबको काम बांधो दाम”
“असली वेतन सबको दो,
मूल्यों पर नियंत्रण हो”
“श्रमिकों का राष्ट्रीयकरण हो,
राष्ट्र का उद्योगीकरण हो”।
सहयोगी संस्थाएं
भारतीय श्रम शोध मंडल
भारतीय श्रम शोध मंडल 26 मई, 1980 को बना। औद्योगिक क्षेत्र में तथ्यों की जानकारी प्राप्त करने, उनका परीक्षण तथा अध्ययन करते हुए नई जानकारियां प्राप्त करना और संगठन को इस क्षेत्र की गतिविधियों की नवीनतम जानकारियां उपलब्ध करवाना इस मण्डल का उद्देश्य है।
सर्वपंथ समादर मंच
भारतीय मजदूर संघ का दृढ़ विश्वास है कि जाति, पंथ, नस्ल को आधार बनाकर श्रमिक के साथ कोई भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इस भावना को मूर्तरूप देने के लिए भामस ने 1994 में “सर्वपंथ समादर मंच” की स्थापना की।
विश्वकर्मा श्रमिक शिक्षा संस्था
26 अप्रैल, 1982 को शिमला में विश्वकर्मा श्रमिक शिक्षण केन्द्र की स्थापना की गई। इसका मुख्यालय नागपुर में है। केन्द्रीय श्रमिक शिक्षा बोर्ड के सहयोग से इस शिक्षण केन्द्र द्वारा अभ्यास वर्ग तथा कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता है।
पर्यावरण मंच
सन् 1995 में पर्यावरण मंच की स्थापना की गई ताकि मजदूर संघ, जिसकी गतिविधि मुख्यतया वेतन, बोनस तक सीमित थी, उसे पर्यावरण से भी जोड़ा जाए।
श्रम आन्दोलन को नया मोड़
भारतीय मजदूर संघ ने कुछ ऐसे नए विचार दिए हैं जिनसे श्रम आन्दोलन को नए आयाम प्राप्त हुए हैं। दलगत राजनीति से निरपेक्ष श्रम संगठन भारतीय मजदूर संघ के विचारों को भारत ही नहीं अपितु देश के बाहर भी स्वीकृति मिल रही है। वल्र्ड फेडरेशन ऑफ ट्रेड यूनियन के बारहवें मास्को सम्मेलन में इस आशय का दस्तावेज मंजूर किया गया। भारतीय मजदूर संघ के उद्योगों के श्रमिकीकरण के विचार पर भी राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा चल रही है। इसमें श्रमिक सामूहिक तौर पर औद्योगिक इकाइयों का प्रबंध तथा स्वामित्व संभालेंगे। इस प्रकार का परीक्षण सफलतापूर्वक न्यू सैंट्रल जूट मिल बंगाल में किया गया है।
भारतीय मजदूर संघ के राष्ट्रीय महामंत्री उदय राव पटवर्धन से विशेष बातचीत
काम भी, देश का सम्मान भी
भारत के सबसे बड़े श्रमिक संगठन भारतीय मजदूर संघ के महामंत्री श्री उदय राव पटवर्धन 1971 से श्रमिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। भारतीय जीवन बीमा निगम में कर्मचारी, पुणे निवासी श्री पटवर्धन ने बी.एससी.,एम.ए., एल.एल.बी. तक की शिक्षा ग्रहण की है। सन् 2002 में राष्ट्रीय महामंत्री बनने से पूर्व वे पश्चिम क्षेत्र के महामंत्री थे। भारतीय मजदूर संघ के स्वर्ण जयन्ती वर्ष पर जितेन्द्र तिवारी ने संगठन की अब तक की यात्रा और भावी कार्यक्रमों पर उनसे बातचीत की। यहां प्रस्तत हैं उस बातचीत के मुख्य अंश-
भारतीय मजदूर संघ की स्थापना से लेकर अब तक की यात्रा के महत्वपूर्ण पड़ाव कौन से हैं?
जब भारतीय मजदूर संघ की स्थापना हुई तब हमारे पास न कोई तंत्र था, न कार्यकर्ताओं की सूची और न ही साधन। एक प्रकार से ठेंगडी जी ने शून्य से इस यात्रा को प्रारंभ किया। 12 वर्ष तो इसी खोज में लग गए कि मजदूर क्षेत्र के कुछ लोग इस विचारधारा को अपनाएं, उसे अपने जीवन में उतारें। कार्यकर्ताओं का निर्माण इस यात्रा का पहला पड़ाव था। 1967 में जब नई दिल्ली में भारतीय मजदूर संघ का पहला राष्ट्रीय अधिवेशन हुआ तब तक हमारा कार्य उस लक्ष्य को प्राप्त कर चुका था जो राष्ट्रीय स्तर पर किसी श्रम संगठन को मान्यता पाने के लिए आवश्यक था। अपने पहले ही अधिवेशन में हमने मान्यता देने की मांग की। उसी के साथ तत्कालीन राष्ट्रपति जी को हमने एक ज्ञापन सौंपकर बताया कि देश का मजदूर क्या चाहता है, देश की श्रम नीति कैसी होनी चाहिए। वह ज्ञापन भारतीय मजदूर संघ के 12 वर्ष के शोध एवं चिंतन का निचोड़ था।
यात्रा का दूसरा चरण वह था जब आपातकाल के दौरान हम श्रमिकों के अधिकारों के लिए लड़े। हमने लाभांश (बोनस) की मांग को लेकर देशव्यापी आंदोलन किया, लगभग 64 हजार श्रमिक कार्यकर्ताओं ने गिरफ्तारी दी, जेल गए। इसके साथ ही मजदूर संघ लोकतंत्र की पुनस्स्थापना के लिए संघर्ष करता रहा। भारतीय मजदूर संघ ने पहली बार यह स्थापित किया कि श्रमिक राष्ट्र एवं समाज के प्रति कर्तव्यों के बारे में जागरूक हैं। आपातकाल को हटाकर लोकतंत्र की स्थापना के अभियान में इस संगठन की प्रभावी भूमिका थी। उसके पश्चात 1977 से 1989 के तीसरे चरण में हमारी सदस्य संख्या बढ़ती गई और 1989 में श्रम मंत्रालय द्वारा सदस्यता के सत्यापन के बाद हमें देश के पहले क्रमांक के श्रमिक संगठन के रूप में मान्यता मिली।
जिन श्रमिकों के बारे में समझा जाता था कि उनका काम केवल अपनी मांगों के लिए हड़ताल करना है, उन्हें राष्ट्रवादी धारा से जोड़ने, राष्ट्रवादी सोच प्रदान करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
सबसे बड़ी चुनौती तो विचारधारा का टकराव है। श्रमिक क्षेत्र में प्रचलित वामपंथी विचारधारा समाज में भेद करके देखती है, उसे अलग-अलग हिस्सों में बांटना चाहती है। उसका आंदोलन सिर्फ मालिक और मजदूर के बीच संघर्ष तक सीमित नहीं है बल्कि समाज में जितनी भी व्यवस्थाएं हैं, वे उसके विरोध में हैं। यदि मजदूर और शेष समाज के बीच आप शत्रुता का भाव ही बनाए रखेंगे तो उसमें समाज के प्रति समर्पण और राष्ट्र के प्रति त्याग की भावना कहां से आएगी? उनकी विचारधारा कहती है कि जो कमाएगा वह खाएगा, यदि एक परिवार के संदर्भ में हम सोचें तो फिर बच्चों, पत्नी और बूढे मां-बाप का क्या होगा? इसीलिए हमने नारा दिया कि जो कमाएगा वह खिलाएगा। हमारी और वामपंथी श्रमिक संगठनों की बुनियादी सोच में बहुत अंतर है और यही विचारधारा का टकराव है।राष्ट्रवादी मजदूर आंदोलन को सर्वाधिक चुनौतियां इस वामपंथी विचारधारा से ही मिलीं। पर अब श्रमिक क्षेत्र में उनकी विचारधारा कुछ प्रदेशों तक सिकुड़ गई है, विशेषकर उन राज्यों में जहां उनके पास सत्ता है। वर्ष 2002 के आधार पर सरकार के सामने सदस्यता सत्यापन का जो दावा प्रस्तुत किया गया है, उसमें 83 लाख 18 हजार सदस्यता के साथ हम पहले स्थान पर हैं। सदस्यता का दावा करने में कांग्रेस समर्थित इंटक दूसरे स्थान पर है, जबकि भाकपा समर्थित इंटक और माकपा समर्थित सीटू चौथे और पांचवे स्थान पर हैं। (देखें बाक्स)
फिर भी वामपंथी मजदूर संगठनों का प्रभाव अधिक दिखता है, क्यों?
वे प्रत्यक्ष मजदूर क्षेत्र में तो अब प्रभावी नहीं हैं लेकिन प्रचार माध्यमों में बैठे अपने मित्रों के बल पर ही प्रभावी बने हुए हैं। उनके श्रमिक आंदोलन और राजनीतिक आंदोलन में भेद नहीं है, वे एक ही काम के अलग-अलग हिस्से हैं। इस आधार पर देखें तो वे केरल और पश्चिम बंगाल तक सिमट कर रह गए हैं। वे सत्ता के बल पर मजदूर आंदोलन चलाना चाहते हैं। पर प. बंगाल में इनका आधार खिसक रहा है। वहां भारतीय मजदूर संघ का कार्य बहुत बढ़ा है, प्रभावी है। केरल में भी मजदूर संघ का काम प्रत्येक गांव की इकाई तक पहुंचा है।
वामपंथी विचारधारा से जुड़े श्रमिक संगठनों से आखिर मजदूरों के हितों को क्या खतरा है, मजदूरों के बीच उनके काम करने के क्या दुष्परिणाम हो रहे हैं और आप इस चुनौती का कैसे सामना कर रहे हैं?
राजनीतिक दलों का एक अंग बनकर, राजनीति से जुड़कर देश के अन्य सभी मजदूर संगठन कार्य कर रहे हैं। परन्तु भारतीय मजदूर संघ ने प्रारंभ से ही यह तय कर रखा है कि हम किसी भी राजनीतिक दल के साथ जुड़कर काम नहीं करेंगे, किसी भी राजनीतिक दल के नेता को अपने संगठन में कोई पद नहीं देंगे। परन्तु देशभर में एक राजनीतिक वातावरण बना हुआ है, राजनीति से जुड़ी बातों की ज्यादा चर्चा होती हे, उसे अधिक प्रसिद्धि मिलती है। यह एक चिंता का विषय है।
भावी योजनाएं क्या हैं?
सन् 1989 में पालघाट (केरल) में हुई राष्ट्रीय कार्य समिति की बैठक में हमने रोजगार के विषय को लेकर देश का पहला प्रस्ताव पारित किया। उससे पूर्व किसी भी श्रम संगठन ने इस महत्वपूर्ण विषय पर विचार ही नहीं किया था। उस प्रस्ताव में हमने मांग की थी कि रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने की कोई ठोस योजना बननी चाहिए। उसके बाद केन्द्र सरकार ने मोंटेक सिंह अहलूवालिया के नेतृत्व में एक कार्यदल का गठन किया, उसके बाद श्री एस.पी. गुप्ता के नेतृत्व में भी एक कार्यदल का गठन हुआ, उनकी रपट आयी। दसवीं पंचवर्षीय योजना में यह रपट आधार भी बनी, पर सरकार की ओर से रोजगार देने की घोषणाएं किए जाने के बावजूद कोई परिणाम सामने नहीं आया। रोजगार उपलब्ध कराने के मामले में सभी सरकारें आंकड़ों के खेल खेल रही हैं। यह सरकार भी ग्रामीण रोजगार-शहरी रोजगार का भेद पैदा कर अकारण विवाद बढ़ा रही है। बेरोजगार को केवल बेरोजगार की दृष्टि से देखा जाना चाहिए। हम केवल रोजगार की मांग नहीं कर रहे बल्कि उत्पादक रोजगार की मांग कर रहे हैं। इसी के साथ हम विश्व व्यापार संगठन में विकासशील देशों के हितों के बारे में सरकार एवं समाज को लगातार सजग करते रहने का कार्य भी करते रहेंगे। हम ऐसे स्थायी मित्र की खोज में हैं जो अराजनीतिक हो व राष्ट्रवादी सोच रखता हो। इस दृष्टि से भारतीय किसान संघ के साथ हम तालमेल बढ़ाएंगे। देश का किसान और मजदूर इस देश को प्रगति पथ पर ले जाएगा, हमारा मोर्चा किसान-मजदूर हितों से किसी प्रकार का समझौता नहीं करेगा।
भारतीय मजदूर संघ के संस्थापक, राष्ट्रवादी मजदूर आंदोलन के प्रणेता स्व. दत्तोपंत ठेंगडी के निधन के बाद हो रहे इस स्वर्ण जयन्ती अधिवेशन के समय आपके मन में किस प्रकार के भाव उठ रहे हैं?
स्व. दत्तोपंत की कमी हम सबको बहुत खल रही है। किसी को नहीं लगता था कि वे अचानक हम सबको छोड़कर चले जाएंगे। पर एक संगठन के रूप में उन्होंने मजदूर संघ को इतना बड़ा आधार प्रदान कर दिया है कि हमारे कार्य की गति कम नहीं हुई। उन्होंने अपने जीवन में ही ऐसी रचना का निर्माण किया, जिससे कार्य व्यक्ति केन्द्रित न हो तथा सामूहिक निर्णयों एवं विचार-विमर्श द्वारा स्वत:स्फूर्त कार्य हो। और पिछले 50 वर्षों में उन्होंने जो मार्गदर्शन दिया, वह विचार थाती रूप में हमारे पास संकलित हैं।
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