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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले<p style=font-weight:bold;t

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Nov 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Nov 2004 00:00:00

पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

वर्ष 9, अंक 4, श्रावण कृष्ण 6, सं. 2012 वि., 25 जुलाई, 1955, मूल्य 3आने

सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्र

प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ

इसे क्या कहा जाए?

सेकुलरवाद या साम्प्रदायिकता!

(विशेष प्रतिनिधि द्वारा)

नई दिल्ली। असाम्प्रदायिकता भारत सरकार एवं कांग्रेस का मूलभूत सिद्धांत है। प्रधानमंत्री पं. नेहरू समय-समय पर उसके पक्ष में अपने विचार व्यक्त किया करते हैं। वे साम्प्रदायिकता के जितने घोर विरोधी हैं, उतने ही जातिवाद तथा प्रान्तीयता के।

कांग्रेस के महामन्त्री श्री श्रीमन्नारायण भी नेहरू जी से पीछे नहीं हैं। उन्होंने अपने नाम के साथ जुड़ने वाले “अग्रवाल” को भी अलग कर दिया है। साम्प्रदायिकता एवं जातिवाद के खिलाफ इतने जोरशोर के साथ जिहाद छिड़ा हुआ है। किन्तु… सरदार स्वर्ण सिंह को अपने मन्त्रालय के लिए एक सचिव की आवश्यकता थी। उसके लिए एक पंजाबी को ही नियुक्त किया जा सका। इसी प्रकार सूचना मन्त्री महाराष्ट्र प्रदेश के हैं, इसीलिए शायद उनके सचिव भी महाराष्ट्र प्रदेशीय हैं। मौलाना आजाद द्विविभागीय मंत्री हैं। एक ओर वे शिक्षा मंत्री हैं तथा दूसरी ओर प्राकृतिक साधन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान मंत्री भी। उनके साथ कार्य करने वाले दो उपमंत्री हैं- पण्डित केशव देव मालवीय तथा डा. के.एल. श्रीमाली। इसके अतिरिक्त उनके विभाग में श्री मनमोहन दास भी संसदीय सचिव के रूप में हैं।

यह सर्वज्ञात है कि मौलाना साहब आजकल विदेश यात्रा पर हैं। आश्चर्य यह है कि मौलाना साहब को उपर्युक्त महानुभावों में से किन्हीं पर विश्वास नहीं हो सका और शायद इसीलिए उन्होंने विभाग का उत्तरदायित्व डा. सैयद महमूद को सौंपा। डा. सैयद महमूद बिना विभाग के मंत्री हैं तथा विदेश विभाग से सम्बंधित हैं। इस सम्बन्ध में यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि डा. महमूद को श्री किदवई के स्थान पर नियुक्त किया गया था। शायद इस विचार को लेकर कि मुसलमान के रिक्त स्थान की पूर्ति मुसलमान ही कर सकता है। असाम्प्रदायिक राज्य की साम्प्रदायिकता का कितना सुन्दर उदाहरण है।…

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जम्मू से प्रथम सत्याग्रही

जत्था गोआ की ओर

जम्मू। गोआ के स्वतंत्रता-संग्राम में सम्मिलित होने के लिए प्रजा परिषद् के 25 सत्याग्रहियों का पहला जत्था यहां से साठ वर्षीय ठाकुर रणजीत सिंह जी, उप-प्रधान जम्मू व कश्मीर प्रजा-परिषद् के नेतृत्व में रवाना हो गया। सत्याग्रहियों के इस जत्थे में सम्मिलित होने वालों में ठाकुर सहदेव सिंह जी, सचिव जम्मू-कश्मीर प्रजा परिषद्, श्री सन्तराम जी, तहसील सचिव, किश्तवार, श्री मुल्कराज जी, कार्यालय मंत्री तथा श्री तिलक राज जी के नाम उल्लेखनीय हैं। इस जत्थे की यह विशेषता है कि इसमें राज्यभर के सभी भागों के सत्याग्रही भाग ले रहे हैं और विशेषकर किश्तवार जैसे सुदूर तथा पिछड़े हुए क्षेत्र से भी तीन सत्याग्रही आए हुए हैं। जत्थे को विदा करने से पूर्व माताओं ने आरती उतारी और फिर एक भारी जुलूस के साथ अ.भा. जनसंघ तथा प्रजा परिषद् के अध्यक्ष पं. प्रेमनाथ जी डोगरा ने शुभकामनाओं सहित सत्याग्रहियों को विदा किया।

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मद्रास में फिल्मोद्योग

लगभग सभी स्टूडियो में चित्रों की भरमार है। यहां तक कि कई ऐसे स्टूडियो पुन: चालू हो गए हैं, जो अब तक बन्द थे। मद्रास के अनेक स्टूडियो लगभग 100 चित्र तैयार कर रहे हैं, जिनमें से अधिकतर तामिल के हैं तथा उसके बाद तेलुगू चित्रों का नम्बर है। मद्रास ने गत 6 महीनों में 36 चित्र निकाले हैं, जबकि गत वर्ष इतने ही समय में केवल 26 चित्र निकल सके थे। आशा है कि वर्ष के अन्त तक गत वर्ष की अपेक्षा कई गुने अधिक चित्र निर्माण किए जा सकेंगे। अधिकांश बड़े-बड़े फिल्म निर्माता दक्षिणी कलाकारों के द्वारा हिन्दी की फिल्में तैयार करा रहे हैं। दो सबसे बड़े स्टुडियो-जेमिनी तथा ए.वी.एम.हिन्दी फिल्म-निर्माण पर ध्यान दे रहे हैं।

ए.वी.एम.जोर-शोर के साथ “भाई-भाई” तथा “छोरा-छोरी” फिल्मों की तैयारी कर रही है। इन दोनों फिल्मों को प्राथमिकता दी जा रही है। दूसरी फिल्म कम्पनी जो हिन्दी की फिल्में बनाने पर जुट पड़ी है, वह है “पक्षिराज”, जिसने अभी हाल में “आजाद” निर्माण किया था।

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