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हिन्दू-भूमि

by
Nov 7, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 07 Nov 2004 00:00:00

सुरेश सोनी

वेद-राशि

वेद राशि कहने पर उसके चार भाग माने गये हैं।

1. संहिता 2. ब्राह्मण 3. आरण्यक 4. उपनिषद्

प्रारम्भ में वेद-संहिताओं को भिन्न-भिन्न ऋषियों द्वारा कहा जाता था और परम्परा से वह आगे की पीढ़ी को दी जाती थी। इस प्रक्रिया में वेदों की भिन-भिन्न शाखाएं हुईं। पतञ्जलि अपने महाभाष्य में उनका उल्लेख करते हुए बताते हैं- यजुर्वेद की 101, सामवेद की 1000, ऋग्वेद की 21 और अथर्ववेद की 9 शाखाएं हैं। इस प्रकार कुल 1131 शाखाएं हुईं।

प्रत्येक शाखा के अपने ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद् थे परन्तु आज वे विलुप्त हो गये हैं। मात्र कुछ ब्राह्मण एवं आरण्यक, उपनिषद् व सूत्रग्रन्थ उपलब्ध हैं।

ब्राह्मण ग्रन्थ- ब्राह्मण ग्रन्थों से साधारणत: तात्पर्य यह है, जो ग्रन्थ वैदिक मंत्रों की व्याख्या करे, उनके अभिप्राय को स्पष्ट करे यानी कि विधि व अनुष्ठान को प्रस्तुत करे। वेद मंत्र प्राय: पद्य में हैं और ब्राह्मण ग्रन्थ गद्य में। अत: विस्तार से व्याख्या है। यज्ञ कब, कैसे, कहां करना, इनका विस्तार से विवेचन है। ब्राह्मण ग्रन्थों में व्याख्या के समय अनेक गाथाएं, आख्यान तथा वर्णन भी हैं, जिनका ऐतिहासिक दृृष्टि से महत्व है। ऋग्वेद के अन्तर्गत ऐतरेय ब्राह्मण के कर्ता महीदास दासीपुत्र थे, पर वे वेदों के धुरन्धर विद्वान थे। इसके अंतिम तीन अध्यायों के अनुशीलन से तत्कालीन भारत की भौगोलिक दशा, विविध राज्य-शासन की पद्धतियां और राजवंशों की दुर्लभ जानकारी मिलती है। एक भ्रम देश में फैलाया गया कि भारत को राजनीतिक रूप से अंग्रेजों ने एक किया, परन्तु भारत का दीर्घकालीन इतिहास इस बात का साक्षी है कि सम्पूर्ण भारत अनेक बार एक राजा के शासन के अन्तर्गत रहा है। ऐतरेय ब्राह्मण में इसका वर्णन आया है, जिसमें कहा गया है, “इन्द्र के इस महान राजतिलक (राज्यारोहण) के पश्चात् आगे चलकर दुष्यन्त के पुत्र भरत का राजतिलक हुआ। दुष्यन्त के पुत्र ने सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की और यज्ञ के घोड़े को मुक्त छोड़ चतुर्दिश सभी को परास्त किया।”

इसी प्रकार तुरा कावशेय ने जनमेजय परीक्षित का राजतिलक किया। अत: जनमेजय परीक्षित ने यज्ञ के घोड़े को मुक्त छोड़ चतुर्दिश सभी को परास्त कर सम्पूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा की। इसी प्रकार ऋग्वेद के अन्तर्गत दूसरा ब्राह्मण कौषीतक है।

वैदिक संहिताओं में जैसे ऋग्वेद विशाल है, वैसे ही ब्राह्मणों में शतपथ ब्राह्मण है। यह यजुर्वेद के अन्तर्गत है। इसका ऐतिहासिक महत्व भी सर्वाधिक है। पुराणों में लिखित अनेक आख्यानों का आधार शतपथ ब्राह्मण ही है। जलप्रलय, मत्स्यावतार व मनु की कथा में एक प्राचीन ऐतिहासिक स्मृति सुरक्षित है, तो माधव विदेह तथा उसके पुरोहित गौतम रहूगण के आख्यान से आर्य-संस्कृति के विस्तार की जानकारी भी मिलती है। कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण ग्रन्थ तैत्तिरीय ब्राह्मण है। शतपथ के समान इसका भी आकार विशाल है। इसमें 3 कांड तथा 308 अनुवाक् हैं। इसमें गवामयन, राजसूय, वाजपेय आदि यज्ञों की विधि एवं कर्मकाण्डों का विशद विवेचन किया गया है।

महातांड ब्राह्मण का भी ऐतिहासिक महत्व है। विशेष रूप में उसका व्रात्यस्तोत्रम विधान अर्थात् जो आर्य मर्यादा से बाहर हैं, व्रतविहीन हैं, उन्हें विशेष यज्ञ कर व्रात्य यानी आर्य मर्यादा में लाना। विशेष रूप से विश्व में जब आर्य संस्कृति का प्रसार हुआ तब विविध जातियां संपर्क में आयीं और आचार-विचार का स्तर गिरने लगा। उनके निराकरण के लिए यह व्यवस्था की गयी।

गोपथ ब्राह्मण में अग्निष्टोम, अश्वमेध, सम्वत्सर-सत्र आदि यज्ञों के विधान का वर्णन है। ओंकार तथा गायत्री की महिमा का भी वर्णन है। ब्राह्मचारी को किन नियमों का पालन करना चाहिए, इसका भी विस्तार से विवेचन है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि ब्राह्मण ग्रन्थों में एक ओर जहां भौतिक के साथ-साथ पारलौकिक सुख स्वर्ग प्राप्ति हेतु विविध यज्ञों के विधानों का वर्णन हैं, वहीं उनसे तत्कालीन सामाजिक स्थिति का भी ज्ञान हमें होता है। भारत के सामाजिक जीवन की प्राचीनता के संदर्भ में अनेक प्रश्नों का समाधान ब्राह्मण ग्रन्थ करते हैं। (जारी)

(लोकहित प्रकाशन, लखनऊ द्वारा प्रकाशित पुस्तक “हमारी सांस्कृतिक विचारधारा के मूल स्रोत से साभार)

(पाक्षिक स्तम्भ)

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