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“द हिन्दू” की इस खबर से किसके मन में क्षोभ उमड़ा
नेताओं की चुप्पी से सन्न फौजी
“द हिन्दू” के 27 मई, 2004 के अंक में यह खबर स्वयं में वास्तविकता प्रकट करने वाली है। यहां इसका हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया जा रहा है-
-प्रवीण स्वामी
नई दिल्ली, 27 मई। रविवार को निचले मुण्डा में हुए बम विस्फोट के शिकार जवानों की राजनीतिज्ञों द्वारा उपेक्षा से सीमा सुरक्षा बल के जवानों का मनोबल टूटा है। इस बम विस्फोट में 12 जवानों और 17 नागरिकों की जानें गईं, जिनमें 6 महिलाएं और 2 बच्चे भी शामिल हैं। विस्फोट में अपने परिवारों के साथ छुट्टी मनाकर लौट रहे जवानों को निशाना बनाया गया। इस घटना में जीवित बचे पांच लोग अब भी नई दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में जीवन और मृत्यु के बीच झूल रहे हैं।
सोमवार को जवानों की पार्थिव देह को उनके घरों के लिए रवाना करने से पूर्व वहां सैन्य सम्मान की औपचारिकता निभाने के लिए न तो जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद ही उपस्थित हुए और न उनके मंत्रिमण्डल का कोई और सदस्य ही वहां पहुंचा। न ही दिल्ली लाए जाने से पहले सरकार का कोई प्रतिनिधि घायलों को देखने अस्पताल आया।
जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल एस.के. सिन्हा भी उस समारोह में शामिल नहीं हुए। लेकिन उन्होंने सीमा सुरक्षा बल को एक पत्र लिखकर इस नृशंसता पर दु:ख अवश्य व्यक्त किया। राज्यपाल के पत्र में यह भी कहा गया कि वे श्रद्धापुष्प अर्पण कार्यक्रम में शामिल होना चाहते थे लेकिन सीमा सुरक्षा बल पर सुरक्षा के बढ़ते बोझ को देखते हुए वे वहां नहीं पहुंचे। नई दिल्ली में भी राजनेताओं ने सफदरजंग में उपचार हेतु भर्ती पांच घायलों के पास जाने में कोई रुचि नहीं दिखाई। इनमें से एक तो बुरी तरह जली हुई अवस्था में जिंदगी और मौत से जूझ रहा है। केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल का, जो सीमा सुरक्षा बल के प्रभारी हैं, अभी तक वहां का दौरा बाकी है।
शहीद जवानों के पार्थिव शरीर पर पुष्प अर्पित करने का जिम्मा कुछ नौकरशाहों और अधिकारियों को सौंप दिया गया। सीमा सुरक्षा बल के महानिदेशक अजय राज शर्मा इस कार्यक्रम में शामिल हुए, मंत्रालय में जम्मू-कश्मीर के प्रभारी विशेष सचिव बी.बी. मिश्रा भी वहां पहुंचे। कश्मीर पुलिस के कुछ वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे। इस अवसर का एक विशेष महत्व था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर में हुई अब तक की आतंकवादी घटनाओं में यह पहली घटना थी, जिसमें इतनी बड़ी संख्या में जवान और उनके परिजन मारे गए।
निचले मुण्डा की घटना राजनीतिक उपेक्षा का दूसरा उदाहरण थी। पिछले साल श्री सईद ने उस समय बधाई पत्र न भेजकर ऐसी औपचारिकताओं की परम्परा तोड़ी थी, जब सीमा सुरक्षा बल ने जैश-ए-मोहम्मद के सरगना शाहबाज खान को मौत के घाट उतारा था। शाहबाज खान 2001 में संसद भवन पर हुए आतंकवादी हमले का आरोपी था।
इस मामले में भी मुख्यमंत्री ने कोई शोक संदेश जारी नहीं किया, जबकि इस आतंकवादी घटना की जिम्मेदारी पाकिस्तान से संचालित हिज्बुल-मुजाहिदीन ने ली। श्री सईद के इस रवैये पर कुछ पर्यवेक्षकों का कहना है कि सत्तारूढ़ पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी के दक्षिणी कश्मीर में हिज्बुल-मुजाहिदीन के आतंकवादियों से घनिष्ठ संबंध हैं।
पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री फारुख अब्दुल्ला के विपरीत श्री सईद जम्मू-कश्मीर में शहीद हुए केन्द्रीय सुरक्षा बलों के सम्मान में आयोजित कार्यक्रमों में नहीं जाते। पीडीपी के कार्यकर्ता भी राज्य में कथित अत्याचारों के विरोध में तो मोर्चे पर सबसे आगे आते हैं, लेकिन आतंकवादियों के हाथों मारे जा रहे निर्दोष नागरिकों के लिए शायद ही कभी बोले हों। “कोई एक निश्चित पैमाना होना चाहिए,” माकपा विधायक मोहम्मद यूनूस तारिगामी कहते हैं, “जब आप यह नहीं कह सकते कि वे यहां शांति स्थापना के लिए हैं, तब उन महिलाओं और बच्चों की मृत्यु पर शोक व्यक्त करने में क्यों हिचकिताते हैं? क्या इसलिए कि वे जवानों के परिजन हैं?” अन्य सुरक्षाकर्मियों की तरह सीमा सुरक्षा बल के जवान भी सेवा शर्तों के अनुसार सरकार की आलोचना नहीं कर सकते। लेकिन एक मध्यम दर्जे के कमांडर से जब “द हिन्दू” ने सम्पर्क किया तो उसका आक्रोश छुपा न रह सका, “हमसे भाड़े के सैनिकों की तरह व्यवहार किया जाता है, न कि उन सैनिकों की तरह जो देश की शान के लिए जान की बाजी लगा देते हैं। मैं अपने जवानों को कैसे समझाऊं कि मुख्यमंत्री क्यों नहीं आ सके? जिनकी सुरक्षा में वे तैनात हैं, उन्हें श्रद्धासुमन अर्पित करने का समय भी मुख्यमंत्री क्यों नहीं निकाल सके?”
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