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वामपंथियों के प्रभाव क्षेत्रों मेंहिंसक खून-खराबाआम चुनावों का प्रथम चरण चुनाव आयोग की लाख कोशिशों के बाद भी निर्विघ्न और शांतिपूर्ण नहीं रहा। न केवल मतदान केन्द्र लूटे गए बल्कि जमकर खून-खराबा भी हुआ। और यह सब हुआ उन छद्म सेकुलरों और वामपंथियों के प्रभाव वाले राज्यों में जो हिन्दू संगठनों की उग्रता का रोना रोते रहते हें। बिहार और आन्ध्र प्रदेश में हिंसा का यह दौर चुनाव से पहले ही प्रारंभ हो गया और इसकी चपेट में आने से केन्द्रीय मंत्री ओर बड़े-बड़े नेता तक नहीं बच सके। चाहे वे तेदेपा संसदीय दल के नेता येरन नायडू हों या केन्द्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन। दोनों अचानक हुए हमले में बाल-बाल बचे।आन्ध्र प्रदेश में चुनाव पूर्व हिंसा में नक्सली तो सक्रिय थे ही, कांग्रेस भी पीछे नहीं रही। कांग्रेस और जनता दल (सेकुलर) के कार्यकर्ताओं में हुई झड़प के बाद जद (से.) के कार्यकर्ता मदेशा को तेजाब से जला दिया गया। चुनाव के दौरान राजधानी बंगलौर सहित गुलबर्गा, बीदर आदि क्षेत्रों में भी जमकर खून-खराबा हुआ।इस हिंसक खून खराबे में एक दंडाधिकारी और दो पत्रकार नक्सली सहित 21 लोगों की जानें गईं तथा सैकड़ों घायल हुए। परन्तु इनका विरोध कौन करे? इसके विरुद्ध आवाज कौन उठाए? लालू प्रसाद यादव या वे कम्युनिस्ट जो परोक्ष रूप से नक्सलियों की पीठ ठोकते रहते हैं? चुनावी हिंसा और अराजकता के इस दौर के बाद भी यदि जनता वोट डालने निकली और सभी सर्वेक्षण राजग की बढ़त दिखा रहे हैं तो इससे यही सिद्ध होता है कि जनता इस हिंसा से ऊब चुकी है। वह परिवर्तन चाहती है, शांति चाहती है।-पटना से कल्याणीबिहार में बूथ लुटने को तैयार एक नक्सलीनक्सली हमले में बाल बाल बचे तेदेपा संसदीय दल केनेता येरन नायडू का ध्वस्त वाहन।बिहार में चुनावी सभाएं चाहे प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी की हों या उपप्रधानमंत्री श्री आडवाणी या किसी केन्द्रीय मंत्री की, वहां चलती केवल राजद की ही है। राजद, अपराध और चुनावी हिंसा का गठजोड़ बिहार में अत्यंत सफलतापूर्वक चल रहा है। सरकारी आंकड़ों के अनुसार बिहार में तीन दर्जन से अधिक लोग चुनाव पूर्व हिंसा के शिकार हुए हैं, जिनमें 6 व्यक्तियों की मृत्यु हो चुकी है। केन्द्रीय मंत्री डा. संजय पासवान चुनाव प्रचार के लिए निकले थे कि घात लगाए अपराधियों ने परम्परागत हथियारों से उन पर हमला किया। डा. पासवान की बुरी तरह पिटाई की गई। इस राजनीतिक हिंसा की चपेट में वे निर्दोष लोग भी आए जिन्हें चुनाव से कोई लेना-देना नहीं था। 14 अप्रैल को नवादा के अकबरपुर थाना क्षेत्र के कुहिला गांव के पास फतेहपुर गोविन्द पथ पर बारूदी सुंरग का विस्फोट हुआ जिससे 4 बारातियों की मौत हो गई।भाजपा के प्रखर नेता सुशील कुमार मोदी पर पटना में बर्बर हमला हुआ। भाजपा के टिकट पर भागलपुर से चुनाव लड़ रहे मोदी पटना के कंकड़बाग क्षेत्र में डा. सी.पी. ठाकुर के पक्ष में प्रचार कर रहे थे। 19 अप्रैल को केन्द्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन पर जानलेवा हमले की कोशिश तब हुई जब रात के 11 बजे वे प्रधानमंत्री की सभा के लिए बन रहे मंच को देखने जा रहे थे। पुलिस-प्रशासन की भूमिका भी संदेह के घेरे में है। उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को पटना के गांधी मैदान में जिलाधिकारी ने जिस प्रकार भाषण देने से रोका, वह भी राजद सरकार के घोर पक्षपातपूर्ण और उद्दण्ड रवैये को ही दर्शाता है।20 अप्रैल को संपन्न हुए पहले चरण के मतदान में पुलिस-प्रशासन ने एक ओर जहां खुलकर सत्तारूढ़ दल के एजेंट की तरह काम किया, वहीं कई स्थानों पर नक्सली हिंसा से आतंकित लोग मतदान केन्द्रों पर आने का भी साहस साहस नहीं जुटा पाए। चुनावी हिंसा में कम से कम आधा दर्जन लोग मारे गए और दो दर्जन से अधिक घायल होकर अस्पताल पहुंच गए। बिहार के 15,234 मतदान केन्द्रों में से 6,369 को अतिसंवेदनशील तथा 5,666 को संवेदनशील मतदान केन्द्र घोषित किया गया था। परन्तु इसके बाद भी हिंसा थमी नहीं। और तो और पटना शहर में ही बमों के धमाके गुंजते रहे। सासाराम, गया, जहानाबाद आदि क्षेत्रों में नक्सलियों के आतंक के कारण मतदाता मतदान केन्द्र तक पहुंचने से भी कतराते रहे। कई जगह प्रशासन का रवैया भी पक्षपातपूर्ण था। जहानाबाद के जद (एकीकृत) प्रत्याशी डा. अरुण कुमार के अनुसार वहां के पुलिस अधीक्षक राजद के लठैत के रूप में कार्य कर रहे थे।चुनावी हिंसा और अराजकता के बाद भी संवेदनशील इलाकों में लोग घरों से मतदान के लिए अच्छी संख्या में निकले। बिहार में राजग के चुनाव प्रचार अभियान समिति के संयोजक और केन्द्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के अनुसार 20 अप्रैल को हुए मतदान में चुनाव आयोग और प्रशासन की व्यवस्थाएं ठीक नहीं रहीं। बिहार में 108 कम्पनी केन्द्रीय अद्र्धसैनिक बलों की उपस्थिति थी, पर इसका कारगर इस्तेमाल नहीं किया जा सका। इतना होने के बाद भी तमाम सर्वेक्षणों का निष्कर्ष है कि पहले चरण में राजग बाजी मार ले गया है और राजद, कांग्रेस व लोक जनशक्ति पार्टी को मुंह की खानी पड़ी है।17
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