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दूरी कमहोने के संकेत-शाहिद सिद्दीकीसम्पादक, नई दुनिया(उर्दू साप्ताहिक)राज्यसभा सदस्यएवं राष्ट्रीय महासचिव,समाजवादी पार्र्टीपिछले लोकसभा चुनाव के समय अटल जी ने भी कहा था कि हमें मुसलमानों के वोट की जरूरत नहीं है, हम उसके बिना भी सरकार बना सकते हैं। लेकिन अब भाजपा में एक परिवर्तन आया है, वह भी मुस्लिम वोटों के पीछे जा रही है। उनका भी यह मानना है कि यदि उन्हें सच्चे अर्थों में एक राष्ट्रीय सरकार बनानी है तो उसके लिए उन्हें मुसलमानों का वोट भी मिलना चाहिए। इसमें उन्हें कहां तक सफलता मिलेगी, यह तो आनेवाला समय ही बताएगा। फिर भी कुछ प्रभावशाली लोगों को वे अपने साथ लाने में सफल रहे हैं। मौलाना वहीदुद्दीन खान, आरिफ मोहम्मद खान, आरिफ बेग एवं ख्वाजा इफ्तिखार सरीखे अनेक लोग भाजपा से जुड़े, पर मुझे नहीं लगता कि इनके साथ मुस्लिम समाज भी भाजपा से जुड़ा है। यह मुसलमान नहीं कह रहा बल्कि देश का सर्वोच्च न्यायालय कह रहा है कि देश के एक महत्वपूर्ण राज्य (गुजरात)में मुसलमानों को न्याय मिलना तो दूर, वहां का शासन-प्रशासन उसमें अड़चनें डाल रहा है। इसी कारण मुझे नहीं लगता है कि मुसलमानों की भाजपा के प्रति शंका दूर हुई है। यदि न्याय मिला और अटल जी की सरकार मुसलमानों को ही नहीं, सभी को यह अहसास करा दे कि सभी के लिए समान न्याय है, तो परिवर्तन होगा। इस तरह का परिवर्तन लोकतंत्र के लिए बुरा नहीं है। यह बात किसी हद तक सही है कि बहुत से दलों ने मुसलमानों के विकास के लिए कुछ नहीं किया। सेकुलरवाद के नाम पर उनको गिरवी रख दिया गया, उनका शोषण किया गया। इस नफरत की राजनीति के लिए जहां कुछ सेकुलर दल जिम्मेदार हैं, वहीं संघ परिवार भी जिम्मेदार है। मुस्लिम समाज और भाजपा के बीच जो दूरी कम होने के संकेत दिख रहे हैं, यदि नेतृत्व पार्टी के भीतर भी यह परिवर्तन लाने में सफल होता है, तो इससे सेकुलरवाद को ही बल मिलेगा। इससे नफरत और टकराव की राजनीति खत्म होगी, सकारात्मक राजनीति को बल मिलेगा, राष्ट्रीय मुद्दे ही प्रभावी होंगे। क्योंकि यदि मुसलमान राष्ट्रीय मुद्दों से जुड़कर नहीं चलेगा तो न देश का भला होगा, न मुसलमान का।14
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