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चुनाव सर्वेक्षणों की कहानीमुझे दांव लगाने कीआदत है जो कभी सही होता है, कभी…-अरुण नेहरूपूर्व केन्द्

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Feb 5, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Feb 2004 00:00:00

चुनाव सर्वेक्षणों की कहानीमुझे दांव लगाने कीआदत है जो कभी सही होता है, कभी…-अरुण नेहरूपूर्व केन्द्रीय मंत्री एवंप्रख्यात चुनाव विश्लेषकअरुण नेहरू खुद को सक्रिय राजनीति से अलग रखते हुए राजनीतिज्ञों के चुनावी भविष्य पर अपनी बेबाक टिप्पणियों और आकलनों के लिए प्रसिद्ध हैं। श्री नेहरू परिस्थितियों, उम्मीदवारों और मतदाताओं के मन की थांह पाने के बाद ही अपना विश्लेषण रखते हैं। पाञ्चजन्य ने 14वीं लोकसभा के पहले चरण के मतदान के तुरन्त बाद श्री नेहरू से चुनावी सर्वेक्षणों और आकलनों की पीछे की प्रक्रिया और सम्भावनाओं पर बातचीत की। यहां प्रस्तुत हैं उनके द्वारा व्यक्त विचारों के मुख्य अंश–आलोक गोस्वामीआप एक लम्बे समय से राजनीतिक विश्लेषण करके चुनाव-परिणामों के पूर्वानुमान करते आ रहे हैं जो अधिकांशत: सटीक बैठते हैं। इन चुनाव सम्बंधी पूर्वाकलनों के पीछे क्या विज्ञान होता है?1984 में इंदिरा जी ने लोकसभा चुनावों की योजना बनाने की जिम्मेदारी मुझे सौंपी थी। तभी से मैं चुनावों के प्रबंधन और आकलन से जुड़ा हूं। 1991 से मैंने बकायदा चुनाव सम्बंधी अपने आकलन सबके सामने रखने शुरू किए। इसमें विज्ञान का सवाल नहीं है। होता यह है कि हर प्रदेश में 10-15 ऐसे अनुभवी लोगों से बात की जाती है जो बिना किसी पूर्वाग्रह के चुनावों पर अपनी राय बताते हैं। दरअसल, यह सब परिस्थितियों के राजनीतिक विश्लेषण पर आधारित होता है।राजग घोषणा पत्र जारी करते हुए प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एवंराजग के अन्य वरिष्ठ नेता-चुनावी सर्वेक्षणों के अनुसार राजग ही अगली सरकार का गठन करेगाचुनाव परिणाम आंकने की आपकी पद्धति क्या है?मैं सबसे पहले 545 में से उन संवेदनशील सीटों की गणना करता हूं जो थोड़े-बहुत अंतर से इधर या उधर हो सकती हों। इस तरह लगभग 100-125 सीटों की पहचान करके उन पर पूरा ध्यान केन्द्रित करते हैं। हम उनका रूझान देखते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में चांदनी चौक की सीट ही देखिए। पहले माना जा रहा था कि भाजपा का उम्मीदवार तय नहीं है अत: कांग्रेस जीत जाएगी। कांग्रेस ने दो-तीन बार सीट जीत चुके जे.पी. अग्रवाल को बदलकर कपिल सिब्बल को यहां उम्मीदवार बनाया है। भाजपा की ओर से एक आकर्षक व्यक्तित्व और सुलझी छवि वाली स्मृति “तुलसी” मल्होत्रा को उतारा गया है। मुझे लगता है यहां कांग्रेस का जीतना मुश्किल है।इसी तरह ऐसी सीटों, जो उम्मीदवारों, गठबंधनों या परिस्थितियों के कारण एक पाले से दूसरे पाले की ओर बदलती हैं, का अध्ययन किया जाता है।चुनाव सर्वेक्षणों की व्यावसायिक संस्थाओं, चाहे मार्ग हो, ओ.आर.जी. हो या ए.सी. नील्सन, के निष्कर्ष मुझे लगता है बहुत सटीक होते हैं। दूसरी बात, यह कोई नहीं कह सकता कि पूरा मीडिया पूर्वाग्रह रहित है। अत: उनके निष्कर्ष में थोड़ा सा अपनी ओर से भी पूर्वाग्रह मिला दें तो निष्कर्षों में गलतियां होती हैं।ऐसा क्यों होता है कि किसी स्थान पर परिस्थितियां, उम्मीदवार, राजनीतिक माहौल समान रहते हुए भी अलग-अलग संस्थाएं या मीडिया भिन्न निष्कर्ष निकालते हैं?बिहार की बात करें तो एक सी सूचनाओं के आधार पर एक अखबार लालू यादव को 12-13 सीटें दे रहा था तो दूसरा अखबार 25 सीटें। यह कैसे हो सकता है? यह तभी होता है जब पूर्वाग्रह रखकर विश्लेषण किया जाता है।कुछ लोगों और दलों का भी आरोप है कि आप जो चुनाव आकलन या निष्कर्ष बताते हैं उससे किसी दल विशेष को लाभ पहुंचता है।ऐसा नहीं है। मतदाता बहुत समझदार होते हैं। इसमें भावनाएं नहीं तर्क कारगर होते हैं। पहले चरण के मतदान के बाद मेरा ताजा निष्कर्ष है कि भाजपानीत राजग को 300 सीटें मिलेंगी, कांग्रेस व उसके गठबंधन को 150 सीटें मिलेंगी। अब देखिए, तमिलनाडु के बारे में सर्वेक्षण कह रहे हैं कि द्रमुक को वहां भारी बहुमत मिलेगा। यह हो कैसे सकता है? अरे भई, अभी चुनाव प्रचार शुरू हो, उसका असर देखा जाए तब तो कुछ कहा जा सकता है। महाराष्ट्र की चर्चा करें तो मैं कितने दिनों से कहता आ रहा हूं कि वहां भाजपा व राजग बढ़िया प्रदर्शन करेंगे। कई सर्वेक्षण संस्थाएं और टी.वी. चैनल पूछते हैं कि यह कैसे संभव है? 10 प्रतिशत रुझान कैसे होगा? अरे भई, राजनीति में हमेशा 2उ2 उ 4 ही नहीं होता, कभी कभी 2अ2उ0 भी हो जाता है। 10 प्रतिशत रूझान तो अभी पहले चरण के मतदान के बाद बताया जा रहा है, पर जब मतगणना होगी तो यह रुझान 12 प्रतिशत भी हो सकता है।लेकिन कई बार तो आपका आकलन भी डगमगा जाता होगाहां, मेरा भी राजनीतिक आकलन कई बार सटीक नहीं बैठा है। ऐसा नहीं होता कि हर बार आप ठीक ही हों। गलती तो सभी से हो सकती है। मगर पूर्वाग्रह रखकर गलती नहीं होनी चाहिए। पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान मैंने कितनी ही बार टी.वी. चैनलों पर कहा कि राजस्थान में वसुन्धरा राजे चुनाव जीत रही हैं। जबकि चुनाव बाद के सर्वेक्षण उससे उलट बता रहे थे। कोई मीडिया अगर अपने राजनीतिक पूर्वाग्रह अपने आकलन के साथ जोड़कर प्रस्तुत करे तो इससे उसकी विश्वसनीयता घटती है।सर्वेक्षण संस्थाएं किस पद्धति से चुनावी आकलन करती हैं?चुनाव विश्लेषक के पास एक प्रश्नावली होती है जिनके आधार पर वह दुनियाभर से जानकारी इकट्ठी करता है। व्यावसायिक संस्थाएं, मार्ग या ए.सी. नील्सन, जो 20-25 हजार लोगों के आधार पर चुनाव बाद के आकलन कर रही हैं, वे आकलन बहुत सही होते हैं। मगर गलती वे भी कर सकते हैं। इसमें पूरा दारोमदार स्थानों से प्राप्त रपटों पर होता है और अगर कुछ स्थानों से सही रपट न मिले तो आकलन गलत हो सकता है।इनके साथ समस्या एक और है। इन्हें ऐसे क्षेत्र चुनने चाहिए जहां से समग्र रुझान पता चले। उदाहरण के लिए, पूर्वी महाराष्ट्र में अगर ये राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के तीन क्षेत्रों का आकलन करके पूरे महाराष्ट्र का निष्कर्ष निकालें तो लगेगा पूरे महाराष्ट्र में शरद पवार की राकांपा रिकार्ड बहुमत पा रही है, जो किसी सूरत में सही नहीं होगा। अत: जो स्थान विशेष का अध्ययन कर रहा हो उसे मिलेजुले क्षेत्र और मतदाता देखने चाहिए जिनसे समग्र रुझान पता चले। यह इतना असान नहीं होता। इसीलिए मैं तो प्रमुख संस्थाओं का आकलन देखता हूं।आप स्थान विशेष का आकलन कैसे करते हैं? क्या वहां के वरिष्ठ राजनीतिज्ञों, नागरिकों या जनप्रतिनिधियों से बात करते हैं?मैं वरिष्ठ राजनीतिकों, पूर्व मंत्रियों, पूर्व प्रधानमंत्री आदि वरिष्ठ जन से बात करता हूं। मेरी उनसे मित्रता आज की नहीं, बहुत पुरानी है और वे जानते हैं कि वे मुझे विश्वासपूर्वक अपने दिल की बात बता सकते हैं। हम लोगों का मेलजोल बड़े स्तर पर है। वे मुझे तथ्यात्मक आकलन ही देते हैं।पहले चरण के मतदान के बाद आपका क्या आकलन है?मुझे लगता है कि ओ.आर.जी. का जो सर्वेक्षण विभिन्न टी.वी. चैनलों पर आया है, वह वास्तविकता के निकट है। परिणाम थोड़ा-बहुत इधर या उधर हो सकते हैं। मेरे अनुसार पहले चरण में जिन 140 सीटों के लिए मतदान हुआ उनमें से राजग को लगभग 90 सीटें मिलेंगी, कांग्रेस और उसके गठबंधन को लगभग 45 सीटें मिलेंगी।बिहार में सर्वेक्षणकर्ता लालू यादव को ज्यादा सीटें दे रहे हैं जबकि राजद को 12-13 सीटें मिलेंगी। अत: राजद को 25 सीटें देने का आकलन समझ से परे है। इसी तरह आन्ध्र के बारे में अधिकांश सर्वेक्षणों का नतीजा लगभग एक सा ही है।आंध्र में तेलंगाना राष्ट्र समिति से गठजोड़ का कांग्रेस को कितना फायदा मिलेगा?पहले चरण में जिन 21 सीटों पर मतदान हुआ उनमें से 15 तो तेलंगाना क्षेत्र की हैं अत: उनमें उन्हें लाभ मिलेगा। परन्तु अन्य 6 सीटें बाहरी इलाकों की हैं। अत: ओ.आर.जी. का सर्वेक्षण (13 कांग्रेस, 7 तेदेपा) जंचता है। अगले चरण का मतदान तटीय आंध्र और रायलसीमा में होगा, जहां तेदेपा भारी बहुमत पाएगी।महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना का प्रदर्शन कैसा रहेगा?महाराष्ट्र में पहले चरण में 24 सीटों पर मतदान हुआ। इनमें 12 सीटें शिवसेना जीतेगी और मुम्बई शहर, कोंकण आदि क्षेत्रों की 11-12 सीटें उसके हाथ से जा सकती हैं।पश्चिमी महाराष्ट्र की 8 सीटों में पूना को छोड़कर बाकी पर शरद पवार कब्जा कर सकते हैं। मुझे इन आकलनों के लिए किसी सर्वेक्षण को देखने की जरूरत नहीं है, क्योंकि इतना तो हमें अनुभव से ही पता है।कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और उड़ीसा के विधानसभा चुनाव क्या रंग दिखाएंगे?मैं आमतौर पर विधानसभा चुनावों का आकलन नहीं करता। परन्तु मुझे नहीं लगता कि कर्नाटक में एस.एम.कृष्णा (कांग्रेस) को बहुमत मिलेगा। लेकिन चूंकि उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है अत: राज्य स्तर पर उन्हें 90-100 सीटें मिल सकती हैं। राजग भी कहीं आस-पास रहेगा। इसलिए त्रिशंकु की स्थिति होगी।आंध्र प्रदेश में चंद्रबाबू को बहुमत मिल सकता है क्योंकि तेलंगाना में यदि एकतरफा रुझान होगा तो तटीय आंध्र और रायलसीमा में उससे विपरीत एकतरफा रुझान दिखेगा। उड़ीसा में तो बीजद-भाजपा स्पष्ट बहुमत पाएंगे।बीते दिनों एक बहस चली थी कि ऐसे सर्वेक्षण, आकलन प्रकाशित नहीं किए जाने चाहिए। अदालत ने भी इसका समर्थन किया था। क्या वास्तव में चुनावों के पहले सर्वेक्षण प्रकाशित नहीं किए जाने चाहिए?क्या यह जायज है कि चुनाव के बारे में विचार व्यक्त करने वालों के मुंह पर ताले जड़ दिए जाएं? फिर तो अखबारों को चुनावों के बारे में कुछ छापना नहीं चाहिए और पार्टियों को भी अपनी-अपनी जीत के दावे नहीं करने चाहिए। आखिर चुनाव सर्वेक्षण पार्टियों के अपने आकलनों से ज्यादा सटीक होता है। हर पार्टी यदि अपने आंकड़े प्रस्तुत करे तो लोकसभा में 545 से कहीं ज्यादा सीटें दिखाई देंगी।अरे भई, आम जनता विवेकहीन नहीं होती। मेरा मानना है कि आम जनता चुनावी संदर्भों में नेताओं से एक कदम आगे ही होती है।आप सक्रिय राजनीति से दूर रहते हुए राजनीतिक आकलन, विश्लेषण में लगे हैं। कैसा महसूस होता है?मैं सक्रिय राजनीति से दूर रहने की कोशिश कर रहा हूं। मेरा दृष्टिकोण बिल्कुल अलग है। अरे भई, 15-20 साल हो गए राजनीति करते हुए, अब कुछ हटकर भी तो करना चाहिए जिन्दगी में।”84 के बाद से अब तक के चुनावों में कब आपके आकलन एकदम सटीक बैठे और किस चुनाव में असफल रहे?वास्तव में मैं बहुत भाग्यशाली रहा हूं कि मेरे आकलन हर चुनाव में अधिकांशत: सही सिद्ध हुए हैं। देखिए, मुझे दांव लगाने की आदत है। हो सकता है कभी मेरा आकलन गलत हो पर मुझे जो दिखाई देता है वह बेहिचक कहता हूं। उदाहरण के लिए, तमिलनाडु में 1998 में दुनियाभर के विश्लेषकों ने कहा था कि द्रमुक रिकार्ड तोड़ बहुमत पाएगी, मैंने कहा था, नहीं, अन्नाद्रमुक रिकार्ड बहुमत पाएगी। मुझे राजनीतिक तौर पर ऐसा आभास हुआ था और वही सही निकला।पूर्वाञ्चल में भाजपा को अच्छी बढ़त दिखाई जा रही है। आपका क्या कहना है?पूर्वाञ्चल में राजग बहुमत पाएगा। मेघालय में तुरा सीट संगमा को और शिलांग कांग्रेस को जा सकती है। नागालैण्ड में नीफ्यू रियो का नार्थ ईस्ट पीपुल्स फ्रंट (राजग का घटक) जीतेगा। मिजोरम और सिक्किम में भी राजग जीतेगा। अरुणाचल की दोनों सीटें भाजपा को मिलेंगी। मणिपुर में कांग्रेस को कुछ नहीं मिलेगा। त्रिपुरा में दोनों सीटें माकपा को जाएंगी। असम में अल्पसंख्या वाला बंगाली समुदाय थोड़ा असम गण परिषद् (अगप) की ओर झुका दिखता है। अगप 1-2 सीट जीतती है तो वे भाजपा के लिए नुकसानदेह होंगी। असम में कांग्रेस के 10 सीटों से 6 पर आने की संभावना है।6

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