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गहरे पानी पैठ

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Jan 8, 2004, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 08 Jan 2004 00:00:00

कौन बनेगा विश्वभारती का कुलपति?

कोलकाता में इन दिनों विश्वभारती विश्वविद्यालय के कुलपति पद को लेकर सुगबुगाहट चल रही है। श्री रवीन्द्रनाथ ठाकुर के नाम से जुड़े इस विश्वविद्यालय में कुलपति पद के लिए जब से सोनिया गांधी के नाम का जिक्र हुआ है तब से ही इसके विरोध में स्वर सुनाई देने लगे हैं। विश्वविद्यालय के उपकुलपति सुजीत बसु के अनुसार कुलपति पद के लिए जिन तीन व्यक्तियों के नाम चल रहे हैं, वे हैं नोबल पुरस्कार विजेता अमत्र्य सेन, प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी। 24 जुलाई को विश्वविद्यालय की कार्यकारिणी इन तीनों नामों पर अपना अंतिम निर्णय लेगी और फिर उस नाम को राष्ट्रपति की अनुशंसा के लिए भेजा जाएगा।

प्रदेश भाजपा अध्यक्ष प्रो. तथागत राय सोनिया गांधी के नाम का विरोध करते हुए कहते हैं कि शेष दो नामों में से कोई भी इस पद पर बैठे, उन्हें आपत्ति नहीं होगी। विश्वविद्यालय की परंपरा पदेन प्रधानमंत्री को ही कुलपति बनाने की रही है। अब तक एक ही बार परंपरा से परे जाते हुए प्रसिद्ध शिक्षाविद् और प. बंगाल के राज्यपाल उमाशंकर दीक्षित को कुलपति बनाया गया था। अगर श्रीमती सोनिया गांधी कुलपति बनाई जाती हैं तो परंपरा एक बार फिर तोड़ी जाएगी।

श्रीमती सोनिया गांधी के नाम का जहां राज्य भाजपा जमकर विरोध कर रही है, वहीं कांग्रेसी नेता उत्साह से दोहरे हुए जा रहे हैं। उधर राज्य माकपा नेतृत्व इस मुद्दे पर यह कहते हुए तटस्थ है कि यह तो विश्वविद्यालय का अंदरूनी मामला है, हमको क्या।

कितने हैं घुसपैठिए?

असम में बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या को लेकर कांग्रेस के दो बड़े नेताओं में पिछले दिनों जमकर खींचतान हुई। हुआ यंू कि राज्यसभा में 14 जुलाई को एक लिखित प्रश्न के जवाब में केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री श्री प्रकाश जायसवाल ने बताया कि असम में बंगलादेशी घुसपैठियों की संख्या 50 लाख है और पूरे देश में 1 करोड़, 20 लाख, 53 हजार, 9 सौ 50।

असम के मुख्यमंत्री इस आंकड़े को देखकर सुगबुगा उठे। उनका कहना था कि यह संख्या प्रदेश के संदर्भ में लाखों में नहीं, महज हजारों में है। बंगलादेशी घुसपैठिए, जिन्होंने अपने नाम मतदाता सूचियों में जुड़वा लिए हैं और राज्य के मुसलमान कांग्रेस का बड़ा वोट बैंक हैं, जाहिर है वहां के मुस्लिम नेता भी भड़क उठे। मुख्यमंत्री ने केन्द्रीय गृहमंत्री शिवराज पाटिल को चिट्ठी लिखी और केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री द्वारा दिए आंकड़ों का आधार जानना चाहा। उन्होंने कहा कि बयान देने से पहले जायसवाल कम से कम असम सरकार से जानकारी ले लेते तो अच्छा होता। केन्द्रीय गृहमंत्री पाटिल ने अपने अधीनस्थ गृह राज्यमंत्री जायसवाल से उनकी जानकारी का आधार पूछा। जायसवाल ने बताया कि उन्होंने गुप्तचर संस्थाओं की सूचनाओं पर यह संख्या बताई थी। लेकिन मुख्यमंत्री गोगोई संतुष्ट नहीं हुए।

मुख्यमंत्री गोगोई सांसत में इसलिए भी हैं कि जायसवाल उन्हीं की कांग्रेस पार्टी के हैं। पता चला है कि गृहमंत्री पाटिल ने गृह राज्यमंत्री जायसवाल को असम जाकर मुख्यमंत्री गोगोई के सामने अपनी बात रखने और उन्हें संतुष्ट करने की सलाह दी।

… और मुद्दा सुलगता रहा

भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज्योतीन्द्र नाथ दीक्षित की पुस्तक “इंडियन फोरेन पालिसी: 1947-2003” विदेश विभाग के गलियारों में और बाहर चर्चा का विषय बनी हुई है। इस पुस्तक में भारत-पाकिस्तान संबंधों पर दीक्षित की बेबाक टिप्पणी कई स्थानों पर विदेश मंत्री नटवर सिंह के दृष्टिकोण से भिन्न है। पुस्तक में श्री दीक्षित ने 1971 की सैन्य विजय को शिमला समझौते के जरिए गंवा दिए जाने पर टिप्पणी की है। उन्होंने लिखा है, “शिमला समझौते के कारण कश्मीर मुद्दा सुलगता रहा, जो अभी तक अनसुलझा ही रहा।” उनका मानना है कि “हालांकि शिमला वार्ता में पाकिस्तान का पक्ष कमजोर था, लेकिन तब भी भुट्टो ने इसमें कूटनीतिक सफलता प्राप्त की। भुट्टो, समझौते में एक उपबंध जुड़वाने के लिए श्रीमती इंदिरा गांधी को सहमत कर पाने में कामयाब हो गए जो जम्मू-कश्मीर को एक विवादित मुद्दा ठहराता है, जिसे दोनों पक्षों की सहमति से सुलझाया जाना है।” श्री दीक्षित उल्लेख करते हैं कि भुट्टो इस समझौते के जरिए अपने तीन उद्देश्यों की पूर्ति करने में कामयाब हुए थे। ये उद्देश्य थे- पाकिस्तानी युद्धबंदियों की रिहाई, विजित पाकिस्तानी इलाके से भारतीय सेनाओं का हटना और कश्मीर मुद्दे को द्विपक्षीय विवाद के रूप में सुलगाए रखना। श्री दीक्षित पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारों की विदेश नीति के अनेक पहलुओं से असहमत रहे हैं।

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