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मलयाला मनोरमा की संवाददाताओं के अपने अनुभव-
केरल में असुरक्षित है अकेली महिला
सभ्य समाज?
-श्रीदेवी जैकब
केरल में महिलाओं के प्रति अपराधों का आंकड़ा
वर्ष
997
998
999
000
001
बलात्कार
88
589
423
552
550
उत्पीड़न
1561
1773
1643
1695
2033
अपहरण
160
130
123
89
125
छेड़छाड़
70
96
50
69
86
दहेज प्रथा
25
21
31
25
24
प्रताड़ना
1675
2125
2488
2418
2579
अन्य
3227
2739
2985
2773
2171
कुल
7306
7473
7743
7621
7568
स्रोत: राज्य अपराध ब्यूरो
देश के सर्वाधिक शिक्षित जनसंख्या वाले राज्य केरल में महिलाएं गुंडागर्दी और प्रताड़ना की किस हद तक शिकार हैं, इसका प्रमाण पिछले दिनों मलयालम दैनिक “मलयाला मनोरमा” में प्रकाशित एक लेखमाला में मिला। 30 जनवरी से 3 फरवरी, 2004 तक प्रकाशित इस लेखमाला सार्वजनिक जीवन में महिलाओं के कड़वे अनुभवों को प्रस्तुत किया गया। ये अनुभव किसी और के नहीं, स्वयं मलयाला मनोरमा की छह महिला संवाददाताओं के थे। समाचारपत्र ने के.आर. मीरा, एम. विनीता गोपी, रानी जार्ज, शुभा जोसफ, नीता मेरी जेम्स और गायत्री मुरलीधरन को राज्य के विभिन्न भागों में यह जानने के लिए भेजा था कि केरल में महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार होता है। लेखमाला के परिचय में कहा गया कि राज्य में महिलाओं के विरुद्ध तेजी से बढ़ रही आपराधिक घटनाओं और पंचायत राज के द्वारा महिला सशक्तीकरण के लिए की जा रही पहल की पृष्ठभूमि में सत्य उद्घाटित करती है यह लेखमाला। इसका उद्देश्य इस सत्य का उद्घाटन करना भी था कि राज्य में अकेले यात्रा करते समय, सार्वजनिक स्थानों पर, सिनेमाघरों आदि में महिलाएं कितनी सुरक्षित हैं। महिला संवाददाताओं के अनुभव चौंका देने वाले और सच की परतें उघाड़ने वाले थे।
यहां उनके कुछ अनुभवों की झलक देखते हैं। 14 जनवरी को एक संवाददाता दोपहर 3.30 बजे कोल्लम (राज्य की राजधानी तिरुअनंतपुरम् से 70 किलोमीटर दूर) से चेन्नै मेल के साधारण दर्जे के डिब्बे में सवार हुई। जल्दी ही सभी की निगाहें उस पर टिक गईं। वह सीट पर बैठी धक्का-मुक्की में अपना संतुलन बनाने की कोशिश कर रही थी कि तभी एक यात्री ने खुद को जानबूझकर पीछे धकेला और संवाददाता के हाथों पर अपना सिर टिका दिया। उसने धकेलकर यात्री को अलग किया। खतरे को भांपते हुए वह दरवाजे की तरफ भागी। लेकिन प्रताड़ना यहीं खत्म नहीं हुई। एक आदमी इस नीयत से दरवाजे के पास पांव पसारे बैठा था कि दरवाजे तक पहुंचने के लिए लड़की को उसके पैरों के बीच से निकलना ही पड़ेगा। जैसे ही वह आगे बढ़ी, उसने दोनों पैरों के बीच लड़की को दबा लिया। आंखों में आंसू लिए बड़ी मुश्किल से वह खुद को उस हैवान के शिकंजे से छुड़ा सकी।
एक अन्य संवाददाता के अनुभव भी इससे अलग नहीं थे। वह 15 जनवरी को केरल के सुदूर उत्तरी छोर पर बसे कण्णूर से दोपहर 12 बजे बस में सवार हुई। एक अधेड़ उम्र का आदमी ठीक सामने वाली सीट पर उसकी तरफ मुंह करके बैठ गया। जैसे ही चालक ब्रोक लगाता, वह आदमी उसके ऊ‚पर आ गिरता। आखिर उसने अपने और उस आदमी के बीच अपना बड़ा सा थैला रखकर एक दीवार सी बना ली। यात्री तो बदतमीज था ही, बस चालक उससे भी ज्यादा बदतमीजी दिखा रहा था। उसने बस में भीतर लगे शीशे को लड़की की तरफ कर दिया और तरह-तरह से अश्लील हाव-भाव दिखाने लगा।
तीसरी संवाददाता शाम को कोझिकोड समुद्रतट पर पहुंची और एक जगह बैठ गई। थोड़ी देर बाद एक आदमी आया और उससे सटकर ऐसे बैठ गया जैसे कि वे दोनों साथ ही आए हों। वह वहां से सरककर कुछ दूर जाकर बैठ गई, वह आदमी भी उसके साथ जाकर बैठ गया। आखिर में जब वह उठ खड़ी हुई तो सामने कई लड़के सीटियां बजाने और अश्लील गाने गाने लगे। राज्य की आर्थिक राजधानी कोच्चि के समुद्रतट पर इन्हीं में से एक खोजी पत्रकार को आखिर वहां से भागकर इज्जत बचानी पड़ी।
लड़की को परेशान होते देख समाज के लोग आगे नहीं बढ़े, तमाशा देखते रहे। पुलिस ने अकेली महिला के प्रति थोड़ी चिंता जतायी। जब संवाददाता तिरुअनंतपुरम रेलवे स्टेशन से होटल की तरफ जा रही थी, तब आटोरिक्शा चालक उसका पीछा करते रहे।
संवाददाता ने स्वयं को सिर्फ अर्णाकुलम और तिरुअरनंतपुरम में राज्य परिवहन निगम के बस स्टैण्ड पर सुरक्षित महसूस किया। संवाददाता के शब्दों में, “जैसे ही मैं अर्णाकुलम् केरल राज्य पथ परिवहन निगम के बस स्टैंड पर पहुंची, दो-तीन पुलिसकर्मी वहां पहुंचे और पूछा कि मैं कहां जाना चाहती हूं। मेरे यह कहने पर कि मुझे कोट्टायम जाना है, उन्होंने मदुरै होते हुए कोट्टायम जाने वाली बस की तरफ इशारा किया और बताया कि इस बस में जाना बेहतर होगा, क्योंकि इसके बाद वाली बसों में भारी भीड़ होगी।” राज्य की राजधानी में भी जब एक संवाददाता बस स्टैंड पर खड़ी अश्लील हरकतों और ललचायी नजरों का सामना कर रही थी तब पुलिस का सिपाही वहां आया और उसे महिला प्रतीक्षालय का रास्ता बताया।
मलयाला मनोरमा ने कई सर्वेक्षणों के आंकड़े भी दिये। एक सर्वेक्षण के अनुसार केरल में अकेले यात्रा करने वाली 1200 महिलाओं में 72 प्रतिशत ने कहा कि यात्रा के दौरान वे सुरक्षित महसूस नहीं करतीं। 60 प्रतिशत का कहना था कि पुरुषों का व्यवहार बहुत अभद्रतापूर्ण होता है। 61 प्रतिशत महिलाओं को देर रात में भी यात्रा करनी पड़ती है। उनका कहना है कि वे बड़ा जोखिम उठाकर यात्रा करती हैं। यहां तक कि जो खुद अपने वाहन चलाती हैं, उनका कहना है कि आदमी अक्सर उनका पीछा करते हैं और कभी-कभी रास्ता भी रोकते हैं। यह भी पाया गया कि अकेले फिल्म देखने जाने वाली महिला को पुरुषों द्वारा नोंच-खसोट, ठोकर मारने जैसी हरकतों का सामना करना पड़ता है। शहरों और राज्य की राजधानी के मुकाबले महिलाओं के लिए गांव अधिक सुरक्षित पाये गए।
इन रपटों ने आम जनता में खलबली सी मचा दी। ढेरों प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुईं, जिनमें कई जानी-मानी हस्तियों ने अपने अनुभव बयान किये। एक महिला महापौर प्रो. जे. चन्द्रा ने अपने अनुभवों के आधार पर कहा कि राज्य में चारित्रिक पतन देखकर मैं हैरान हूं।
सम्पादक के नाम पत्र स्तम्भ में त्रिशूर की जी.मीरा नैयर ने बताया कि किस प्रकार बस में यात्रा करते समय एक पुरुष यात्री ने जबरन उसकी तलाशी ली। विरोध करने पर उसने गाली-गलौज की।
प्रख्यात महिला कार्यकर्ता अजिता का कहना है कि उन्हें भी सामाजिक जीवन में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ा है। इस परिदृश्य पर राज्य महिला आयोग की अध्यक्षा और सुप्रसिद्ध कवयित्री सुगत कुमारी का कहना है महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से राज्य पुलिस में महिलाकर्मियों की संख्या बढ़ायी जानी चाहिए।
इस सर्वेक्षण की बात विधानसभा में भी उठायी गई थी, जिस पर महिला और पुरुष विधायकों ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। मुख्यमंत्री ए.के. एंटोनी ने बताया कि उन्होंने राज्य के पुलिस महानिदेशक को पत्र लिखकर आवश्यक कदम उठाने के लिए कहा है।
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