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अंक-संदर्भ, 4 जुलाई, 2004
पञ्चांग
संवत् 2061 वि.,
वार
ई. सन् 2004
अधिक श्रावण कृष्ण 1
रवि
1 अगस्त
,, ,, 2
सोम
2 ,,
,, ,, 3
मंगल
3 ,,
,, ,, 4
बुध
4 “”
,, ,, 5
गुरु
5 “”
,, ,, 6
शुक्र
6 “”
,, ,, 7
शनि
7 “”
भाजपा
डगर की चिंता
आवरण कथा “मुम्बई के बाद… भाजपा की डगर” के अन्तर्गत श्री लालकृष्ण आडवाणी का चिंतन “हमने अपने वैचारिक समर्थकों की ओर ध्यान नहीं दिया” पढ़ा। विडम्बना है कि यह स्वीकारोक्ति लोकसभा चुनाव में पराजय के बाद आई है। तीन बार श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने प्रधानमंत्री पद की शपथ ली और राजग की सरकार ने उनके नेतृत्व में आर्थिक, कृषि, विदेश नीति और पड़ोसी देशों से मैत्री के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित किए। भारत को एक स्वाभिमानी, आत्मनिर्भर राष्ट्र बनाकर विश्व के पटल पर खड़ा किया। फिर भी चुनावों में पराजय का सामना करना पड़ा। इसलिए समीक्षा और चिंतन के बाद आडवाणी जी ने ठीक ही कहा है कि हमने अपने वैचारिक समर्थकों एवं समर्पित कार्यकर्ताओं की अनदेखी की।
इसी संदर्भ में श्री तरुण विजय का “दिशादर्शन” बहुत स्पष्ट है। भाजपा को सफलता प्राप्त करने के लिए पारिवारिक एकता को सुदृढ़ करना होगा और देश की माटी से जुड़ी अपनी सनातन विचारधारा को ही पल्लवित एवं पोषित करना होगा। साथ ही जनसाधारण की मूलभूत समस्याओं का समाधान करते हुए अपनी सरकार द्वारा किए अच्छे कार्यों को जन सामान्य तक पहुंचाना भी जरूरी है।
-डा. सुभाषचन्द्र शर्मा
सदस्य, राष्ट्रीय कार्यसमिति, भाजपा किसान मोर्चा
हरी भवन, रुड़की रोड, मुजफ्फरनगर (उ.प्र.)
पंचतारा बैठक
गत दिनों मुम्बई में एक पंचतारा होटल में भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक सम्पन्न हुई। उस होटल के एक कमरे का किराया हजारों रु. प्रतिदिन होता है। खबर छपी कि बैठक में आए नेताओं, पत्रकारों एवं अन्य लोगों ने तीन दिन के अन्दर 15 लाख रुपए की केवल चाय पी। हो सकता है यह सब उन्हें मुफ्त मिला हो। पर तब भी क्या यह उचित था? क्या इसे सही दिशा कहेंगे? जनसंघ के संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में एक बात हमें याद आती है। एक बार वे रेलगाड़ी से कहीं जा रहे थे। तृतीय श्रेणी के डिब्बे में बैठे थे। रेलगाड़ी में ही एक पत्रकार उनसे मिला। उसने डा. मुखर्जी से पूछा- “क्या प्रथम श्रेणी में आरक्षण नहीं मिला?” तब डा. मुखर्जी ने कहा- “जब मैं तृतीय श्रेणी में जा सकता हूं तो फिर संगठन के पैसे का दुरुपयोग क्यों करूं।” डा. मुखर्जी भाजपा के आदर्श हैं, पर आज भाजपा चल किसके पदचिन्हों पर रही है?
-विशाल कुमार जैन
1/2096, गली सं. 21
पूर्वी रामनगर, शाहदरा, दिल्ली
आपत्ति है!!
मुखपृष्ठ पर “भगवाध्वज” के साथ भाजपा की “घर वापसी” जैसा शीर्षक लगाना उचित नहीं था। “भगवाध्वज” पूरे हिन्दू समाज के स्वाभिमान का प्रतीक है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जो कि राजनीतिक दल नहीं है, नियमित रूप से इस भगवा ध्वज के सम्मुख वंदन करता है, उससे प्रेरणा लेता है। भाजपा का झण्डा अलग है। रहा प्रश्न भाजपा की “घर वापसी” का, तो भाजपा का घर कहां है? मुम्बई में अथवा पूरे देश में? यदि भाजपा की अब “घर वापसी” हुई है तो अब तक वह कहां थी? पराजय के बाद भाजपा को हिन्दुत्व और राम मन्दिर याद आने लगा… यानी हारे को हरिनाम। फिर यह कब तक हिन्दुत्व पर डटी रहेगी, कोई गारन्टी नहीं। इसलिए इसे इसके हाल पर ही छोड़ देना चाहिए। पुन: अ से शुरू करें… तब देखा जाएगा।
-डा. नारायण भास्कर
50, अरुणानगर, एटा, (उ.प्र.)
यह कैसा सेकुलरवाद?
“आतंकवादियों के हमदर्द” रपट उन छद्म सेकुलरवादियों की आंखें खोलने में सहायक सिद्ध होगी, जो राष्ट्रीयता और राष्ट्रहित को दरकिनार कर वोट बैंक के दुष्चक्र में फंसे हुए हैं। एक आतंकवादी महिला इशरत जहां के जनाजे में मुंब्राा में उमड़ी स्थानीय मुस्लिमों की भीड़ को देखकर यह अनुमान लगाना कठिन नहीं है कि अनेक भारतीय मुसलमान आज भी मध्ययुगीन मानसिकता में जी रहे हैं। सच्चाई जाने बिना जिस तरह इस देश की सेकुलर बिरादरी ने इशरत और उसके अन्य तीन साथियों के मारे जाने पर हो-हल्ला मचाया, वह नितांत शर्मनाक एवं दुर्भाग्यपूर्ण है। यदि सेकुलरवाद का अर्थ मुस्लिम तुष्टीकरण और घोर हिन्दूविरोध ही है तो इस पर विजय पाने के लिए राष्ट्रवादी शक्तियों को एकजुट होने की आवश्यकता है, ताकि छद्म सेकुलरवाद की काली छाया से देश की रक्षा की जा सके।
-रमेश चन्द्र गुप्ता
नेहरूनगर, गाजियाबाद (उ.प्र.)
1 आश्चर्य की बात है कि जब गैरभाजपा शासित प्रदेशों में पुलिस कार्रवाई में आतंकवादी या अपराधी मारे जाते हैं, तब कोई राजनीतिक दल और मानवाधिकार आयोग अंगुली नहीं उठाता। लेकिन भाजपा शासित राज्यों में ऐसी कार्रवाई होने पर तथाकथित सेकुलरवादी हंगामा मचाने लगते हैं। सेकुलरवादियों का यह दोगलापन आतंकवाद पर वोट बैंक की राजनीति और उनके अन्ध भाजपा-विरोध को ही दर्शाता है।
-शक्तिरमण कुमार प्रसाद
श्रीकृष्णानगर, पथ सं. 17, पटना (बिहार)
“आख्यान” नहीं, कोई सरल नाम
पाञ्चजन्य के 27 जून, 2004 अंक में डा. देवेन्द्र आर्य की कविता “गिद्ध हुआ सारा शहर” अच्छी लगी पर उसके साथ लगा रेखाचित्र उपयुक्त नहीं था। आख्यान स्तम्भ का कोई सरल नाम रखें तो अच्छा होगा।
-शरद शर्मा
दूधिया मोहल्ला, नसीराबाद (राजस्थान)
क्या दिखा रहा है मीडिया?
गुजरात पुलिस द्वारा आतंकवादी वारदातों में लिप्त मुंबई की इशरत जहां के मारे जाने के बाद मुठभेड़ को नकली बताकर पुलिस-प्रशासन को भला-बुरा कहने वालों की बाढ़-सी आ गई। इन्हें विभिन्न टी.वी. चैनलों व समाचारपत्रों में जिस तरह सुर्खियां मिलीं, उससे एक बार फिर मीडिया के दुरुपयोग पर बहस शुरू हो गई है।
इस घटना के तुरन्त बाद इशरत के परिवार वालों की एक-एक प्रतिक्रिया को बार-बार टी.वी. पर दिखाया गया। उसकी मां, बहन, अन्य परिजन, पड़ोसी आदि के साथ मुस्लिम तुष्टीकरण के चक्कर में राष्ट्रद्रोह तक पहुंचे सेकुलर राजनेताओं, बुद्धिजीवियों के बेसिरपैर के तथ्यहीन बयानों को खूब उछाला गया। दूसरे दिन विभिन्न अखबारों ने इस घटना को गुजरात पुलिस की सफलता के बजाय ऐसा दिखाया कि जैसे यह “चार निर्दोष जन” को मारने का षड्यंत्र था। पहले दो दिनों में पुलिस तथा गुजरात सरकार को बेवजह लांछित कर आनंद लिया गया। वर्तमान में इलेक्ट्रानिक या पिं्रट मीडिया में कार्य करने वाले निश्चित ही उच्च शिक्षित तथा बुद्धिमान होंगे। उन्हें जानना चाहिए कि किसी घटना से संबंधित दस्तावेज या रपट प्रस्तुत करने में कुछ समय अवश्य लगता है और पल-पल की जानकारी सार्वजनिक की जाए, यह भी अनिवार्य नहीं है। ऐसे में इस प्रकार की संवेदनशील घटनाओं के पश्चात तुरंत ही अपने आकलन प्रस्तुत करने लगना या फिर मृतकों के निकट लोगों के भावुक बयानों, आरोपों को दिखाना उचित नहीं कहा जा सकता। अत: सरकार इस बारे में कुछ आवश्यक दिशानिर्देश जारी करे, ताकि भविष्य में इस तरह की पुनरावृत्ति न हो।
संजय चतुर्वेदी
पत्थर गली, आबू रोड (राजस्थान)
“मुस्लिमाधिकार” आयोग?
पाञ्चजन्य के 4 जुलाई, 2004 अंक में भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में श्री लालकृष्ण आडवाणी और श्री वेंकैय्या नायडू के भाषण भाजपा कार्यकर्ताओं को उत्साहित करने वाले हैं।
“आतंकवादियों के हमदर्द” आलेख में आतंकवादियों और तथाकथित मानवाधिकारवादियों की पोल खुल गई है। दुर्भाग्य से मानवाधिकार आयोग “मुस्लिमाधिकार” आयोग के रूप में काम कर रहा है। श्री भारतेन्दु प्रकाश सिंहल और श्री उम्मेद सिंह बैद ने अपने-अपने लेखों में तर्कसंगत प्रश्न उठाए हैं। स्त्री स्तम्भ भी पठनीय है।
-शरद खाडिलकर
विजय निकेतन,6/ई, राजेन्द्र नगर, पटना (बिहार)
भूल-सुधार
पाञ्चजन्य 25 जुलाई, 2004 अंक में पृष्ठ 8 पर प्रकाशित डा. कमल किशोर गोयनका के लेख “गांधी और प्रेमचंद का अपमान” में तकनीकी कारणों से प्रारंभिक खंड में कुछ पंक्तियां छपने से रह गयीं। “…लेखकों ने अभद्रतापूर्ण प्रदर्शन किया…” के बाद लेख की पंक्तियां इस प्रकार हैं-
“इधर इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने अपने हिन्दी स्नातकोत्तर पाठक्रम में हिन्दी उपन्यास एवं कहानी के अंतर्गत “ठाकुर का कुआं : प्रेमचंद” (इकाई-14) पाठ भेजा, जिसमें गांधी जी तथा प्रेमचंद का अवमूल्यन स्पष्ट दिखाई देता है। इतिहास विरोधी तथ्यों पर डा. अम्बेडकर…” इसके बाद “तथा अनुयायियों के मनु विरोधी दर्शन को …” से आगे आलेख यथावत् प्रकाशित है। इस भूल के लिए हमें खेद है। -सं.
पानी की जंग
पानी पर है छिड़ गयी, कैसी भीषण जंग
किया राज्य पंजाब ने, समझौते को भंग।
समझौते को भंग, नहीं वह पानी देगा
मरें पड़ोसी प्यासे, वह निज पेट भरेगा।
है “प्रशांत” यह लोकतन्त्र या तानाशाही
ऐसे तो मच जाएगी हर ओर तबाही।।
-प्रशांत
सूक्ष्मिका
धूल में मिली आशा
चुनाव में उन्होंने
क्षेत्र की धूल खाई
बदले में क्षेत्र की आशा
धूल में मिलाई
-मिश्रीलाल जायसवाल
सुभाष चौक,कटनी (म.प्र.)
पुरस्कृत पत्र
वही पाञ्चजन्य चाहिए
वर्षों बाद पाञ्चजन्य पढ़ने के लिए खरीदकर घर लाया। सोचा था कुछ बदलाव आया होगा। जब भाजपा अपने सभी वैचारिक मुद्दों को तिलांजलि दे रही थी और सब आंख बन्द कर उसका समर्थन कर रहे थे, तभी से आपके पत्र में भी वह आग्रह और आकर्षण मन्द पड़ने लगा था। आपका पत्र भी आम पत्रों की तरह दिखने लगा था। किन्तु भाजपा की हार से आशा जगी कि शायद पुरानी बात लौट आए। एक समय पाञ्चजन्य को पढ़कर मुझे संघ से जुड़ने और स्वयंसेवक बनने की प्रेरणा प्राप्त हुई थी। और आज जब मैं पाञ्चजन्य पढ़ रहा था तो मुझे कुछ भी प्रेरणास्पद नहीं लगा।
आपको इस बात का ध्यान रखना होगा कि पाञ्चजन्य हिन्दुत्व का उद्घोष है। इस पत्र से हिन्दुत्व का शंखनाद ही अच्छा लगता है। तुष्टीकरण, सामान्यीकरण पाञ्चजन्य को शोभा नहीं देता। पाञ्चजन्य के नए स्तम्भ इसकी गरिमा और उद्देश्यों के अनुकूल नहीं हैं। टिप्पणी थोड़ी कटु अवश्य है किन्तु जरा विचार करके देखिए। सन् 1999 का पाञ्चजन्य और आज का पाञ्चजन्य अलग क्यों दिख रहा है? हमें पुन: वही पाञ्चजन्य चाहिए जो केवल हिन्दुत्व का उद्घोष करे। अन्य बातें दूसरों के लिए छोड़ दें। विरोधी हमें भले ही साम्प्रदायिक कहें, पर हम जानते हैं कि हम किसी के विरोधी नहीं हैं अपितु हिन्दुत्व एवं हिन्दुस्थान के समर्थक और आग्रही हिन्दू हैं, जो विनाश नहीं विकास की बात करते हैं। इसलिए हम भले ही किसी के विरोधी कहे जाएं या प्रतीत हों, स्वधर्म का पालन करें।
-अरुण कुमार सिंह
1461-डी, मानस नगर,
पो. मुगलसराय (दीनदयाल नगर)
जिला-चन्दौली (उ.प्र.)
हर सप्ताह एक चुटीले, ह्मदयग्राही पत्र पर 100 रु. का पुरस्कार दिया जाएगा।सं.
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