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चर्चा सत्र गुजरात चुनाव…और उसके बादद मा.गो. वैद्यसह-सरकार्यवाह, रा.स्व. संघसम्पूर्ण देश ही नहीं बल्कि समूचे विश्व का ध्यान जिस एक चुनाव पर केन्द्रित था वह गुजरात का चुनाव अन्तत: सम्पन्न हो गया और केवल एक अपवाद को छोड़ सभी परिणाम भी घोषित हुए जिसमें भारतीय जनता पार्टी को अभूतपूर्व सफलता मिली है। भाजपा को 70 प्रतिशत स्थान मिले हैं। वैसे कहा जाए तो यह विजय पूरी पार्टी की है, सामूहिक विजय है, पर किसी एक व्यक्ति को श्रेय देने को बात हो तो नि:संदेह वह व्यक्ति नरेन्द्र मोदी ही होंगे। 28 फरवरी, 2002 से सभी तथाकथित सेकुलर समाचारपत्रों, प्रसार माध्यमों, पंथनिरपेक्ष कहे जाने वाले राजनीतिक दलों और सेकुलरी बाना ओढ़े बुद्धिजीवियों ने, मोदी पर ही अपना निशाना साध रखा था। स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद यदि किसी एक व्यक्ति के विरुद्ध सबसे ज्यादा हड़कम्प मचाया गया तो वह मोदी ही हैं। उन्हें क्या-क्या नहीं नहीं कहा गया? हिटलर की उपमा दी गई। एक पाक्षिक ने उन्हें ओसामा बिन लादेन कह डाला! जिन लोगों ने गोधरा हत्याकांड को नजरअंदाज कर दिया, और उसके पश्चात उभरे प्रतिक्रियात्मक हिंसाचार को ही ध्यान में रखा, उसके बाद भी गुजरात में हिन्दुओं की प्रतिक्रिया को उनका आक्रोश भी मानने को तैयार नहीं थे- उन सारे लोगों की श्री मोदी के विरुद्ध चीख-चिल्लाहट तो स्वाभाविक ही कही जाएगी।अधिकांशत: ऐसे अवसरों पर शासनारूढ़ व्यक्ति के त्यागपत्र की मांग रखी जाती है। कुछ लोगों ने मोदी-हटाओ की मांग भी की थी पर स्वयं श्री मोदी ने अपना त्यागपत्र देकर विरोधियों की हवा ही निकाल दी थी। शीघ्र चुनाव कराने की बात करते ही दूसरी ओर से चुनाव-योग्य स्थिति न होने का कारण बताया जाने लगा। इन लोगों की सहायता के लिए चुनाव-आयुक्त दौड़ पड़े। मोदी के विरुद्ध जितनी अड़चनें खड़ी करनी संभव थीं, सब की गईं, पर उन सबको हराकर मोदी जी ने आशातीत सफलता प्राप्त की, स्वयं अपने निर्वाचन क्षेत्र में 75 हजार से अधिक मतों से विजयी हुए और पार्टी को भी अभूतपूर्व सफलता दिलाई, लिंग्दोह को भी टका-सा जवाब दे दिया। मोदी जी तो सचमुच अभिनंदन के पात्र हैं।भाजपा की प्रबल प्रतिस्पद्र्धी पार्टी कांग्रेस ने, स्वयं पर हिन्दुओं की नाराजगी को भांपकर एक समय भाजपा के सांसद रहे शंकर सिंह वाघेला को गुजरात कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया जिन्होंने मोदी पर जमकर कीचड़ उछाला। गोधरा नरसंहार के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को दोषी बताया। अक्षरधाम मंदिर पर आतंकवादियों के हमले से कांग्रेस पुन: उलझन में पड़ गई। यह तो कह नहीं पाई कि भाजपा ने ही यह हमला कराया पर नारा जरूर लगाया कि जो हिन्दुओं के पवित्र मंदिर की रक्षा नहीं कर सके वे आपकी रक्षा क्या कर पाएंगे? मतलब यही कि कांग्रेस ही हिन्दुओं की रक्षा कर सकती है। फिर सोनिया जी ने अंबामंदिर में जाकर पूजन किया और आशीर्वाद लेकर चुनाव-यात्रा के लिए निकलीं। समझ लिया कि चलो, हिन्दुओं के मत तो झोली में डाल लिए पर इधर-उधर भागने वाले मुस्लिम मतों को कैसे प्राप्त किया जाए! एक भरोसा था कि ये मत (मुसलमानों के) भाजपा की ओर जाने से रहे, पर अन्य सेकुलर दल जो हैं- शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस, जनता दल, कम्युनिस्ट वे भी तो मैदान में थे। खैर एक-एक टुकड़ा फेंक कर कम्युनिस्ट दलों को तो खूंटे से बांध लिया, पर अन्य भाजपा-विरोधी दलों की झोली में भी ये मत न जा पाएं इस दृष्टि से चुनाव के 5-6 दिन पहले मुल्ला-मौलवियों की ओर से एक फतवा जारी करवाया और समाचारपत्रों में छपवाया। इस फतवे से कांग्रेस को क्या लाभ हुआ, यह तो वही जाने। कांग्रेस को 51 स्थान मिले, जो पिछली विधानसभा में उसके सदस्यों की तुलना में 2 कम है।अब जब भाजपा की जीत हो ही चुकी है, तो खुले दिल से उसे मान्य करने की उदारता न तो कांग्रेस ने दिखाई न सेकुलर समाचारपत्रों या प्रसार माध्यमों ने ही दिखाई है। कहने लगे कि यह तो डर (भय) की जीत है, तो फिर डरा या भयभीत कौन था- हिन्दू या मुसलमान! मुसलमान भयभीत होते तो क्या 80 से 90 प्रतिशत मतदान करते। मतदान के बाद अनेक अटकलें लगाई जाती रहीं, किसी ने कहा, भाजपा की अपेक्षा कांग्रेस को अधिक स्थान मिलेंगे। समाजवादी दल के निकटस्थ एक पाक्षिक ने तो यह भी कह डाला कि इतना नरसंहार करने के बाद भाजपा को पहले की अपेक्षा केवल 9 स्थानों का ही लाभ हुआ है। इतना ही नहीं, यह भी कहा गया कि हिन्दू, मुसलमानों से बदला लेंगे और पुन: दंगे हो सकने की संभावना है। और इसी कारण अनेक संवेदनशील स्थानों से मुसलमानों के पलायन जाने संबंधी समाचार एक समाचारपत्र में प्रकाशित हुआ है। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है। बड़ौदा, राजकोट में छुटपुट घटनाएं हुई हैं। दो व्यक्तियों की मृत्यु हुई है। मरने वाले दोनों हिन्दू ही निकले। अत: दंगों में अगुवाई किसने की यह बात स्पष्ट हो जाती है।गुजरात चुनाव-परिणामों को लेकर अनेक लेख प्रकाशित हो रहे हैं। देश के राजनैतिक भविष्य की मानो सबको बड़ी चिंता लगी हुई है। हर प्रकार की बातें कही जा रही हैं- मोदी की विजय से वाजपेयी की हार हुई, आडवाणी अधिक ताकतवर हो गए, देश की पंथनिरपेक्ष छवि मलिन हो गई है आदि वक्तव्यों द्वारा मोदी और भाजपा विरोधी दलों में भय पैदा करने का षड्यंत्र रचा जा रहा है। इस बात को स्वीकार किया जाना चाहिये कि गुजरात में हिन्दुत्वनिष्ठ शक्तियों की जीत हुई है। इस विजय से पंथनिरपेक्षता को कोई आंच नहीं आएगी, बशर्ते हिन्दुत्व में मन से वि·श्वास किया जाए, केवल उसे चुनाव जीतने का एक मार्ग न समझा जाए। जैसा कि कांग्रेस समय-समय पर करती आ रही है। सच्चे सेकुलरवाद से भी उसे कोई लेना-देना नहीं है। जिस दिन कांग्रेस सच्चे सेकुलरवाद को अपनाएगी, उस दिन उसे हिन्दुओं के अधिकांश मत मिलेंगे तथा गैर कट्टरवादी मुसलमानों के मत भी उसे मिलेंगे।राज्य मूलत: पंथनिरपेक्ष अर्थात् सेकुलर ही होता है और उसे वैसा ही होना चाहिए। परन्तु इस पंथनिरपेक्षता का पालन हमने आज तक नहीं किया। पचास वर्ष से अधिक समय बीत गया पर विवाह और तलाक के मामले में सभी नागरिकों के लिए एक जैसी आचार-संहिता हम बना नहीं पाए, न वैसा कानून ही बना पाए। संविधान की धारा 30 के अनुच्छेद के प्रावधान में अल्पसंख्यकों की शिक्षा संस्थाओं के सरकार द्वारा अधिग्रहीत करने पर उन्हें मुआयना मिलने का पृथक मौलिक अधिकार है- यही अधिकार हिन्दुओं को क्यों नहीं? हज के लिए जाने वाले यात्रियों को सरकारी अनुदान मिलता है। आखिर यह अनुदान किस सेकुलरवाद के दायरे में आता है? तमिलनाडु की जयललिता सरकार ने भय, कपट अथवा लालच दिखाकर मतान्तरण कराने पर कानूनन रोक लगा दी- तो सेकुलर कहलाने वाले दल और समाचारपत्र उन पर टूट पड़े। यह कौन सा सेकुलरवाद हुआ? इस विकृत सेकुलरवाद के विरोध में गुजरात के नागरिक उठ खड़े हुए और उन्होंने भाजपा को विजयी बनाया। हिन्दुओं को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र ही चाहिए पंथनिरपेक्षता के नाम पर केवल पिटाई नहीं। गुजरात में जिस प्रकार हिन्दुओं ने अपनी शक्ति प्रगट की, वैसे ही समूचे राष्ट्र में होना आवश्यक है। हिन्दू समाज ही इस देश की शक्ति का मेरुदंड है। उसका दुर्बल होना या आत्मग्लानि में घिर जाना, अत्यन्त घातक है। सभी राजनीतिक दल इसे यदि ठीक से समझेंगे, और हिन्दुत्व पर हो रहे तर्कहीन आरोप लगाना बंद कर देंगे तो चुनाव के लिए कोई भी हिन्दुत्व का मुद्दा उठाएगा नहीं। परन्तु मुसलमान या ईसाई लोगों के मत प्राप्त करने के लिए यदि किसी दल ने कपट अथवा असत्य मार्ग को अपनाया तो हिन्दुत्व की भावना से ओतप्रोत हिन्दू मानस ही उसे उसके उचित स्थान पर ला पटकेगा।4
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