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…और आगे की बात इस्लामी जिहाद और सेकुलर तालिबानों से संघर्ष करते हुए हिन्दुत्व की शक्तियों को मिला

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May 1, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 01 May 2003 00:00:00

नया आत्मविश्वास

——————————————————————————–

जीतना है तो हिन्दुत्व के साथ चलना होगा

-अशोक सिंहल, अंतरराष्ट्रीय कार्याध्यक्ष, विश्व हिन्दू परिषद

हमारे संतों ने रामजन्मभूमि पर कार्य प्रारंभ करने हेतु उचित कदम उठाने के लिए सरकार को सवा साल का समय दिया था और 12 मार्च, 2002 को अंतिम तिथि घोषित की थी। इस बीच यह भी तय किया गया था कि पूरे देश के चार हजार चुने हुए क्षेत्रों में इस कार्य-सिद्धि के लिए व्यापक मंत्र जाप किया जाएगा। कुल 80 लाख लोगों ने यह जाप पूर्ण किया। 15 मार्च को हमारा सरकार से टकराव का कोई इरादा ही नहीं था, पर सरकार हर प्रकार से हमारा दमन करना चाहती थी। हम तो सद्भावपूर्ण तरीके से अयोध्या गए थे, पर सरकार ने हमारे दमन के लिए बीस हजार से अधिक सुरक्षा बल तैनात कर दिए। अयोध्या में बाहर से किसी के आने-जाने पर पाबंदी लगा दी गई। दमन की यह स्थिति थी कि सरयू तट पर लोगों को अपने प्रियजनों के शव तक ले जाने नहीं दिए गए। अगर कोई व्यक्ति सड़क को एक तरफ से दूसरी तरफ पार करता था तो भी उससे परिचय पत्र मांगा जाता था। इस कारण पूरी अयोध्या में खाने-पीने की चीजों की बेहद कमी हो गई। जो सामान था वह आकाश छूती कीमतों पर बिकने लगा। हमने सोचा था कि रामजन्मभूमि के लिए सरकार आसानी से कानून के अन्तर्गत जमीन दे सकती है, इसके लिए प्रधानमंत्री श्री वाजपेयी ने वायदा किया था कि 12 मार्च से पहले वे समाधान कर देंगे, पर ऐसा हुआ नहीं। जब हमारे सारे कार्यक्रमों का दमन किया गया तो निराशा फैली। लेकिन हिन्दुत्व की शक्तियों को दबाया नहीं जा सकता। हिन्दुत्व विरोधियों ने जो नकारात्मक वातावरण निर्मित किया उसके कारण गोधरा में 58 हिन्दुओं का बलिदान हुआ। इसकी प्रतिक्रिया में सारा गुजरात उठ खड़ा हुआ। जो कुछ भी हुआ, वह किसी मानवीय शक्ति के बस का नहीं था। लाखों लोग सड़कों पर उतर आए और उन्होंने बता दिया कि वे किसी भी प्रकार का हिन्दू विरोधी अत्याचार सह नहीं सकते।

उसके बाद गुजरात के चुनाव हुए। चुनाव टालने की भी भरपूर कोशिश की गई। मुख्य चुनाव आयुक्त ने एक विपक्षी की भूमिका निभाई और अपनी सीमाओं से बाहर जाकर कदम उठाए। दुनियाभर में हिन्दुत्व विरोधी शक्तियों ने हमारे विरुद्ध प्रचार किया। यूरोप और अमरीका तक में ईसाई तथा इस्लामी तत्व गए और उन्होंने हिन्दू विरोधी अपप्रचार किया। इलेक्ट्रोनिक चैनलों पर दिन-रात हिन्दुत्व विरोधी दुष्प्रचार होता रहा। ऐसी स्थिति में वक्त की पुकार को नरेन्द्र मोदी ने पहचाना।

सच्चाई यह है कि गुजरात में किसी राजनीतिक दल की नहीं बल्कि हिन्दुत्व की जीत हुई है। जब नरेन्द्र मोदी ने समझा कि हिन्दुत्व ही उनकी विजय का आधार हो सकता है तो उसके अनुरूप उन्होंने अपना व्यवहार भी किया जिसका उन्हें लाभ मिला।

हिन्दुत्व के मार्ग पर चलकर ही देश की दरिद्रता, गरीबी और आर्थिक विपन्नता की समस्याएं भी दूर की जा सकती हैं तथा देश विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भी ऊंचाइयां हासिल कर सकता है। हिन्दुत्व का अर्थ केवल कर्मकांड नहीं, वरन् यह तो राष्ट्रीय विकास की जीवन शैली का नाम है। यदि भाजपा इस मार्ग पर नहीं चली तो जैसे गुजरात चुनाव से पहले दिल्ली में उसकी हास्यास्पद पराजय हुई और उत्तर प्रदेश में भी वह बैसाखियों के सहारे ही चल पाई, वैसा ही पूरे देश में उसका हाल होगा।

संतों ने तय किया है कि वे 22 से 23 फरवरी को दिल्ली में धर्म संसद करेंगे। इसमें 8 से 10 हजार तक की संख्या में संत आएंगे जो कि अब तक की सबसे बड़ी संख्या होगी और वहां वे निर्णायक लड़ाई का दौर शुरू करेंगे। अगर सरकार ने रामजन्मभूमि के संबंध में उचित कदम नहीं उठाया और भूमि प्रदान नहीं की तो वे कोई भी उग्र कदम उठा सकते हैं। संतों ने सभी राजनीतिक दलों से बिना किसी भेदभाव के अपील करने का भी निर्णय लिया है कि वे रामजन्मभूमि के बारे में अपने रवैये पर पुनर्विचार करें और इस प्रश्न पर राजनीतिक दृष्टिकोण से ऊपर उठकर विचार करें, संसद में रामजन्मभूमि पर मंदिर निर्माण का समर्थन करें। मेरा वि·श्वास है कि आने वाला समय हिन्दू राष्ट्रवादी शक्तियों की विजय का ही समय है, क्योंकि यही भारत की नियति है।

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