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पाञ्चजन्य पचास वर्ष पहले

by
Apr 5, 2003, 12:00 am IST
in Archive
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दिंनाक: 05 Apr 2003 00:00:00

थ् वर्ष 8 अंक 10 थ् अ·िश्वन कृष्ण 8, सं. 2011 वि., 20 सितम्बर 1954 थ् मूल्य 3 आने

थ् सम्पादक : गिरीश चन्द्र मिश्र

थ् प्रकाशक – श्री राधेश्याम कपूर, राष्ट्रधर्म कार्यालय, सदर बाजार, लखनऊ

——————————————————————————–

यह दु:शासन की सरकार!

महिलाओं पर निर्लज्ज अत्याचार कर रही है

(निज प्रतिनिधि द्वारा)

लखनऊ: मथुरा में सफलता प्राप्त करने के बाद उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में गोवध बंदी सत्याग्रह 27 सितम्बर को लाला हरदेव सहाय के नेतृत्व में आरम्भ हो गया। पहले दिन लाला जी सहित 14 सत्याग्रहियों ने, दूसरे दिन महिलाओं सहित चालीस सत्याग्रहियों ने तथा तीसरे दिन प्राय: 15 महिलाओं सहित 50 सत्याग्रहियों ने तथा चौथे दिन लगभग 60 सत्याग्रहियों ने भाग लिया। श्रीगणेश मथुरा के सत्याग्रहियों ने किया तथा बाद में हरदोई, लखीमपुर, सीतापुर, गोंडा आदि के सत्याग्रही सम्मिलित होते रहे।

प्रत्यक्षत: सरकार ने सत्याग्रहियों को गिरफ्तार न करने तथा उन पर लाठी या गोली न बरसाने की नीति अपनाई है, जिससे जनता इस भ्रम में पड़ जाय कि सरकार शांतिपूर्ण रुख अपना रही है, सत्याग्रही ही जोर-जबरदस्ती कर रहे हैं। लेकिन सच बात यह है कि यह सरकार की यह चाल मात्र है, इसके पीछे वह जनता को बेवकूफ बनाना चाहती है। उसने सत्याग्रहियों को दबाने के लिए ऐसे उपायों का अवलंबन किया है जो हानि भी अधिक पहुंचाते हैं तथा महिलाओं को निंदनीय ढंग से बेइज्जत भी करते हैं।

सत्याग्रह के तीसरे दिन फायर-बिग्रेड के पाइप से महिला सत्याग्रहियों पर पानी की मोटी धार छोड़ी गई, जिसके कारण उनकी लज्जा खुलकर जनता के सामने आ गई। इसके साथ ही उन्हें, विशेषकर कम उम्र की लड़कियों को बाल पकड़कर तथा आसुरी ढंग से घसीटा गया और इधर से उधर फेंका गया तथा चौथे दिन सत्याग्रहियों को बुरी तरह खींचा गया तथा उनके मुंह में डंडे घुसेड़े गए, जिससे अनेक सत्याग्रहियों के मुंह से खून निकल आया।

राष्ट्र अभियान की ओर

अन्तर्देशीय रंगमंच पर भी अनेक गम्भीर प्रश्न उपस्थित हैं। हमको कश्मीर, गोआ आदि की समस्यायें सुलझानी हैं। हमारे स्वयं के ही भूखंडों पर विदेशियों ने अनुचित रूप में अधिकार कर रखा है। भारतीय जनता यह सब कितने समय तक सहन कर सकेगी। विदेशी सत्ता से मुक्ति कराने के लिए या तो भारत सरकार प्रयत्नशील हो, नहीं तो भारतीय जनता को स्वयं विजय के निमित्त अभियान करना होगा। अत्यन्त लज्जा का विषय है कि भारत सरकार के द्वारा समय-समय पर जनता के अदम्य उत्साह को दबाने का अनुचित प्रयत्न होता रहा है। जनता चाहती है, कश्मीर और भारत स्थित विदेशी बस्तियों में सैनिक कार्यवाही की जाय। यदि ऐसा न किया गया तो हो सकता है जनता-जनार्दन को स्वयं इस समस्या का हल करना पड़े। अच्छा है भारत सरकार समय से पहले चेत जाए।

देश में विदेशी एजेन्टों की कमी नहीं है। क्या पाकिस्तानी, क्या अमरीकी, क्या रूसी सभी एजेन्टों ने भारत को अपना अड्डा बना रखा है। समय- समय पर वे भारतीय संस्कृति, सभ्यता राष्ट्र के प्रति विद्रोह खड़ा करते रहते हैं। हमें गम्भीरतापूर्वक विचार कर इस समस्या को सदैव के लिए सुलझाना होगा। ईसाई मिशनरियों की घातक कार्यवाहियां भी इसी समस्या के अंतर्गत हैं।

भारत की आर्थिक व्यवस्था भी पर्याप्त संतोषजनक नहीं है। यद्यपि भारत सरकार ने पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत अनेक नवनिर्माण किए हैं तथापि बिहार, असम, बंगाल आदि की बाढ़ें तथा रेल दुर्घटनाएं विनाश का दृश्य भी उपस्थित करती रही हैं। इन नवीन घावों को हमें भरना होगा। (सम्पादकीय)

भारत सरकार के नाम खुला पत्र

एक ओर तो आप यह कहते हुए भी कि समाज से छुआछूत को केवल कानून से नहीं मिटाया जा सकता है- आप उसके लिए कानून बनाते हैं। यह कहते हुए भी कि नशाबाजी को केवल कानून से नहीं खत्म किया जा सकता, आप उसे रोकने के लिए कानून बनाते हैं। पश्चिमी सभ्यता से प्रेरित होकर, जनता के विचार जानने के लिए हिन्दू कोड बिल को प्रसारित किए बिना और अनेक विरोधों के होते हुए भी आप उसका कानून बनाते हैं, किन्तु गोवंश के वध को कानून द्वारा निषेध करने की मांग पर आपके कानों पर जूं तक भी नहीं रेंगती। यह बात कितनी विचारणीय एवं लज्जास्पद है, विशेषकर उस शासन के लिए जो अपने को समय-समय पर पूज्य बापू के अनुयायी बनने का दावा करता रहता हो।

डा. शरणलाल गुप्त मथुरा के बहुत पुराने कांग्रेसी कार्यकर्ता हैं। आजकल आप स्थानीय कांग्रेस कोषाध्यक्ष भी हैं। शासन की वर्तमान गोवध-संबंधी नीति से आप किंचित भी सहमत नहीं हैं। आपका दृढ़ मत है कि सरकार को तुरंत गोवध संबंधी कानून बनाना चाहिए। आशा है सरकार उनके बहुमूल्य विचारों पर गम्भीरतापूर्वक विचार करेगी।

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