राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह उपाख्य रज्जू भैया की कर्मभूमि प्रयागराज रही है। इसी कारण उनका इस शहर से गहरा जुड़ाव रहा है। रज्जू भैया के बारे में सबसे उल्लेखनीय तथ्य यह है कि वे जहां भी रहे शिखर तक पहुंचे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिये आये तो वहीं अध्यापन से जुड़ गये। विश्वविद्यालय में भौतिकी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष के रूप में लम्बे समय तक कार्य किया, लेकिन बाद में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यों में समर्पित होने के बाद सेवा से त्यागपत्र दे दिया। संघ में स्वयंसेवक के रूप में जुड़े और बाद में लगभग 6 वर्ष तक सरसंघचालक रहे। इन सबके पीछे सबसे बड़ा कारण उनका व्यक्तित्व, कृतित्व और समर्पण का भाव था। संघ, संगठन और समाज के लिये उनके योगदान के किस्सों की चर्चा आज भी होती रहती है।
रज्जू भैया ने सामाजिक आंदोलनों में निभाई अग्रणी भूमिका
रज्जू भैया सामाजिक आन्दोलनों में अग्रणी भूमिका निभाते थे, इसीलिये संघ से इतर अन्य सामाजिक संगठनों के लोग भी उनका सहयोग प्राप्त करते थे। उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 से जुड़ा उनका एक किस्सा बहुत चर्चित है। देश की आजादी के पश्चात जब गोवध पर पूर्ण प्रतिबंध नहीं लगा तो पूज्य प्रभुदत्त ब्रह्मचारी जी, जो प्रयाग में ही निवास करते थे, ने प्रदेश स्तरीय गोरक्षा आन्दोलन प्रारम्भ कर दिया। इसके लिये गोहत्या निरोध समिति का गठन किया गया जिसके अध्यक्ष स्वयं ब्रह्मचारी जी और महामंत्री वीरेन्द्र कुमार सिंह चौधरी थे, जो उस समय इलाहाबाद उच्च न्यायालय के विख्यात अधिवक्ता थे। आन्दोलन के परिप्रेक्ष्य में सरकार से वार्ता चल रही थी। ब्रह्मचारी जी का मौनव्रत चल रहा था। प्रमुख अवसरों पर वह अपनी बात लिखकर देते थे। उस समय प्रयाग में रहने के कारण रज्जू भैया पर ब्रह्मचारी जी का काफी स्नेह और विश्वास था। तमाम महत्वपूर्ण अवसरों पर वह बात को तर्कसंगत ढंग से कहने और समझाने के लिये रज्जू भैया को साथ लेकर जाते थे।
पंडित गोविंद बल्लभ पंत रज्जू भैया पर रखते थे पुत्रवत स्नेह
बात 1954 की है। गोरक्षा आन्दोलन पर बात करने के लिये प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री पं. गोविंद बल्लभ पंत ने ब्रह्मचारी जी को बुलाया तो उनके साथ वीरेन्द्र कुमार सिंह चौधरी और रज्जू भैया गये। मुख्यमंत्री जी रज्जू भैया को भली-भंति जानते थे और उन पर पुत्रवत स्नेह रखते थे। गोरक्षा अधिनियम को लेकर वार्ता शुरू हुई, ब्रह्मचारी जी के तर्क और तथ्य को रज्जू भैया ने बहुत ही निपुणता से पंत जी के सामने रखा। पंत जी लगभग चार वर्ष से मुख्यमंत्री की कुर्सी पर थे और आये दिन इस प्रकार के मामले उनके पास आते रहते थे। रज्जू भैया की बात सुनने के बाद एक कुशल राजनीतिज्ञ की भांति पंत जी ने कहा कि रज्जू तू क्या जाने अधिनियम बनाने के लिये क्या-क्या करना पड़ता है? कौन-कौन सी बातें विचारणीय हैं? सबकी राय और सहमति से ही कानून बन सकता है।
पंत जी की शैली में दिया जवाब
रज्जू भैया ने कुछ कहने का प्रयास किया परन्तु पंत जी अपनी बात पर अड़े रहे और आने वाली बाधाओं को समझाते रहे। रज्जू भैया कई बार अपनी बात आगे बढाने का प्रयास करते लेकिन मुख्यमंत्री जी उन्हें अवसर ही नहीं दे रहे थे। जब पंत जी को लगा कि आज रज्जू भैया पीछे हटने वाले नहीं हैं, तो उन्होंने बात को भावनात्मक मोड़ देते हुये कहा कि ‘देख रज्जू, मेरी आयु तेरे से दुगुनी है, जब तू मेरी आयु का होगा तब समझेगा कि सहमति कैसे बनती है। उसे बनाने में जल्दबाजी नहीं चलेगी।’ इतना कहकर पंत जी खामोश हो गये, उन्हें लगा कि शायद अब इसके आगे रज्जू भैया कुछ नहीं बोलेंगे परन्तु रज्जू भैया चुप नहीं रह सके, अपितु पंत जी की ही शैली में जवाब देते हुये कहा कि पंत जी मैं तो दुगुनी गति से जीवन जी रहा हूं।
‘अच्छा रज्जू तू जीता, अब कानून बनेगा’
पंत जी जैसे कठोर व्यक्तित्व वाले मुख्यमंत्री के सामने ऐसी बात कहने का साहस उस समय शायद किसी पास नहीं था। सब लोग शांत थे लेकिन पंत जी ठहाका मारकर हंसने लगे। उन्होंने कहा, ‘अच्छा रज्जू तू जीता, अब कानून बनेगा’ और उसी के बाद पंत जी ने गोवध निवारण अधिनियम के लिये तैयारी शुरू कर दी। पंत जी को दिसम्बर, 1954 में मुख्यमंत्री पद से हटा कर केन्द्रीय गृहमंत्री बना दिया गया, लेकिन उनके द्वारा शुरू किये गये प्रयास का परिणाम था कि उत्तर प्रदेश गोवध निवारण अधिनियम 1955 अस्तित्व में आया। आज इसी अधिनियम के कारण लाखों गाय और गोवंशों का जीवन सुरक्षित हो पा रहा है।
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