राहुल, खरगे जैसे तमाम नेताओं को जवाब है ये ‘प्‍यू’ का शोध, भारत में मजबूत है “लोकतंत्र”
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राहुल, खरगे जैसे तमाम नेताओं को जवाब है ये ‘प्‍यू’ का शोध, भारत में मजबूत है “लोकतंत्र”

प्यू रिसर्च 2025 की रिपोर्ट: भारत में 74% लोग लोकतंत्र से संतुष्ट, राहुल गांधी, खरगे जैसे विपक्षी नेताओं के दावों का जवाब। पढ़ें कैसे भारत का लोकतंत्र मजबूत है।

by डॉ. मयंक चतुर्वेदी
Jul 8, 2025, 07:27 pm IST
in मत अभिमत
India democracy dtrong Pew research

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

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सोनिया गांधी, मल्लिकार्जुन खरगे, अखिलेश यादव और राहुल गांधी जैसे तमाम नेता हैं जो केंद्र की मोदी सरकार की खूब आलोचना यह कहकर करते हैं कि उनके राज में भारत का “लोकतंत्र” कमजोर हुआ है। अल्‍पसंख्‍यकों के साथ भेदभाव हो रहा है और अनुसूचित जाति एवं जन‍जाति के साथ अत्‍याचार हो रहा है। किंतु जब इस संबंध में राजनीतिक नैरेटिव से दूर यदि कोई संस्‍था एक स्‍वस्‍थ सर्वे करती है, तो वह पाती है कि भारत में “लोकतंत्र” बहुत मजबूत है, कमजोर यदि कहीं हुआ है तो वे देश हैं, जो अपने को सबसे अधिक उच्‍च आय का मानते हैं।

8 साल के सर्वेक्षण से हुआ खुलासा

प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा 2017 से अब तक लगातार किए गए सर्वेक्षणों के अनुसार, 12 उच्च आय वाले देशों में लोकतंत्र के प्रति जनता संतुष्टि नहीं है, इन देशों में जनता के असंतोष का ग्राफ कहीं ऊंचा है। जहां पर 64 प्रतिशत वयस्क अपने देश की लोकतंत्र प्रणाली में काम करने के तरीके से असंतुष्ट नजर आते हैं। इन देशों में प्रमुखता से कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, ग्रीस, इटली, जापान, नीदरलैंड, दक्षिण कोरिया, स्पेन, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका शामिल हैं। प्यू रिसर्च सेंटर के स्प्रिंग 2025 ग्लोबल एटीट्यूड सर्वे में यहां ध्‍यान देनेवाली बात यह है कि एक ऐसे समय में जब अधिकांश उन्नत अर्थव्यवस्थाएं लोकतांत्रिक शासन के प्रति बढ़ते सार्वजनिक असंतोष से जूझ रही हैं, भारत वैश्विक स्तर पर लोकतांत्रिक संतुष्टि के उच्चतम स्तरों के साथ उभर कर सामने आया है।

74% भारतीय लोकतंत्र से संतुष्ट

यहां 74 प्रतिशत भारतीय उत्तरदाताओं ने कहा कि वे अपने देश में लोकतंत्र के कामकाज के तरीके से संतुष्ट हैं, जबकि केवल 23 प्रतिशत ने असंतोष व्यक्त किया। इस प्रकार भारत स्वीडन (75%) से थोड़ा पीछे है और जर्मनी (61%), इंडोनेशिया (66%) और ऑस्ट्रेलिया (61%) जैसे अन्य लोकतंत्रों से काफी आगे है। वस्‍तुत: भारत में लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी ये नैरेटिव सेट करने का प्रयास हुआ था कि यहां लोकतंत्र और संविधान खतरे में है। जब चुनाव परिणाम आ गए तब भी विपक्ष यह मानने को तैयार नहीं कि केंद्र की मोदी सरकार बिना किसी भेदभाव के सभी के कल्‍याण के लिए बराबर से काम कर रही है।कहना होगा कि यदि अधि‍कांश भारतीय मानते हैं कि देश सही दिशा में जा रहा है, तो विपक्ष को यह स्‍वीकार करने में क्‍यों आपत्‍त‍ि होनी चाहिए?

वहीं, विकसित देश खासकर अमेरिका के लिए भी यह रिपोर्ट एक आईना है, जिसने पिछले दिनों मानवाधिकार के नाम पर भारत को कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया था। इसने जो वैश्‍विक मानवाधिकार रिपोर्ट तैयार की थी, उसमें भारत की बीजेपी सरकार पर यह आरोप लगाए गए थे कि हिन्‍दुस्‍तान में वह अल्‍पसंख्‍यकों के साथ भेदभाव कर रही है। मोदी सरकार पर पत्रकारों को चुप करवाकर जेल भेजने, जम्मू-कश्मीर में लोगों की अभिव्यक्ति की आजादी का हनन करने, वहां शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन करने नहीं दिया जा रहा, जैसे भी आरोप लगाए गए। तब अम‍ेरिका द्वारा जारी इस मानवाधिकार रिपोर्ट के आते ही विपक्ष बहुत उछल रहा था, जैसे कि उसे मोदी सरकार को घेरने का एक कामयाब अस्‍त्र मिल गया हो, किंतु कुछ ही समय में उसकी भी सच्‍चाई सामने आ गई थी कि उक्‍त रिपोर्ट तथ्‍यों के आधार पर झूठी है।

अमेरिका की पोल खोलती ‘प्‍यू’ की रिपोर्ट

अभी सामने आई यह ‘प्‍यू’ रिपोर्ट अमेरिका की ही पूरी पोल खोल देती है। क्‍योंकि केवल 37 प्रतिशत अमेरिकी ही हैं, जो अपने यहां के “लोकतंत्र” से संतुष्‍ट हैं। तात्‍पर्य वर्तमान समय में औसत 100 में से 63 अमेरिकी अपने यहां की लोकतांत्रिक व्‍यवस्‍थाओं से असंतुष्‍ट हैं। यानी दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत पर मानवाधिकार के नाम पर दबाव बनाने का खेल जो अमेरिका खेलता है, उसका सच आज सभी के सामने आ चुका है। इसी तरह से पश्चिमी लोकतंत्रों में जनता की संतुष्टि का स्तर बहुत कम है।

यह रिपोर्ट बताती है कि उच्च आय वाले देशों जैसे फ्रांस, ग्रीस, इटली, जापान और दक्षिण कोरिया में लोगों में लोकतंत्र के साथ-साथ अर्थव्यवस्था को लेकर भी गहरी नाराज़गी है। ग्रीस में 81 प्रतिशत लोगों ने नाराज़गी जताई है। जापान में यह आंकड़ा 76 प्रतिशत और दक्षिण कोरिया में 71 प्रतिशत है। इन देशों में “लोकतंत्र” को लेकर निराशा सिर्फ नीतियों से नहीं, बल्कि प्रतिनिधित्व की कमी से भी जुड़ी है। लोग मानते हैं कि उनकी आवाज़ न सरकार में सुनी जा रही है, न ही वे खुद को सत्ता में हिस्सेदार महसूस करते हैं। दूसरी ओर यही रिपोर्ट कह रही है कि भारत जैसे देशों में जहां आर्थिक विकास और स्थिरता लोगों के भरोसे को मजबूत करते हैं। वहीं इस रिपोर्ट के अनुसार विकसित देशों में आर्थिक असंतुलन और नीतिगत असहमति के कारण लोकतंत्र पर लोगों का भरोसा कम होता दिख रहा है।

भारत के संदर्भ में क्यों महत्वपूर्ण है ये सर्वे

वस्‍तुत: प्यू रिसर्च सेंटर के स्प्रिंग 2025 ग्लोबल एटीट्यूड सर्वे भारत के संदर्भ में इसलिए भी आज महत्‍वपूर्ण हो गया है क्‍योंकि जनसंख्‍या घनत्‍व के स्‍तर पर भारत विश्‍व की सबसे बड़ी जैसा कि अनुमान है कि चीन को भी पीछे छोड़ दिया गया है, जनसंख्‍या वाला देश है। स्‍वभाविक है कि इतने बड़े जनसंख्‍या तंत्र को संतुष्‍ट रख पाना सबसे अधिक कठिन है, जबकि संतुष्‍टी के स्‍तर पर इस रिपोर्ट में इंडोनेशिया, मैक्सिको, नीदरलैंड और स्वीडन के साथ भारत को एक ऐसे देश के रूप में उद्धृत किया गया जहां “लोग अपने लोकतंत्र और अर्थव्यवस्था दोनों से अपेक्षाकृत खुश हैं।” यहां हम थोड़ा रुकते हैं; क्‍योंकि तुलना खुशी के स्‍तर पर भारत की इंडोनेशिया जिसकी कि कुल जनसंख्‍या लगभग 278 मिलियन (27.8 करोड़) है से हो रही है।

जबकि भारत के अकेले एक राज्‍य उत्तर प्रदेश की जनसंख्या ही लगभग 240 मिलियन (24 करोड़) है। वहीं, भारत की जनसंख्या मैक्सिको की जनसंख्या से लगभग 11 गुना अधिक है। इसी प्रकार से यदि भारत और नीदरलैंड की तुलना की जाएगी तो नीदरलैंड की जनसंख्या लगभग 17.5 मिलियन है, जबकि भारत की जनसंख्या 1.4 बिलियन से अधिक होने की स्‍थ‍िति में नीदरलैंड की जनसंख्या से लगभग 80 गुना अधिक है। ऐसे ही स्‍वीडन से तुलना कर देखेंगे तो स्वीडन और भारत की जनसंख्या में अंतर इतना बड़ा है कि किसी भी प्रकार की तुलना करना ही व्‍यर्थ है, क्‍योंकि स्वीडन की जनसंख्या लगभग 10.5 मिलियन के मुकाबले भारत की जनसंख्या 1.4 बिलियन से अधिक है।

इसका मतलब है कि भारत की जनसंख्या स्वीडन की जनसंख्या से 100 गुना से भी अधिक है। कहने का तात्‍पर्य है कि भारत की इन देशों के साथ तुलना करना ही संभव नहीं है, फिर भी यदि ये तुलना जनसंख्‍या के स्‍तर पर हो जाए तो भारत की वर्तमान सरकार आज की स्‍थ‍िति में इन सभी देशों से कहीं अधिक अपनी जनसंख्‍या को “लोकतंत्र” के प्रति संतुष्‍ट करने में सफल रही है। अत: इस सर्वे के आधार पर यही कहना होगा कि “लोकतंत्र” भारत में नहीं, बल्कि पश्चिम में कमज़ोर हो रहा है। भारतीय उत्तरदाताओं का तो कहना यही है कि वे अपने देश में “लोकतंत्र” के कामकाज के तरीके से संतुष्ट हैं, यानी कि भारत की वर्तमान सरकार को देश भर के लोगों ने प्रथम श्रेणी के अंकों के साथ “लोकतंत्र” के मुद्दे पर उत्‍तीर्ण किया है।

राजनीतिक पार्टियों के मुंह पर तमाचा

देखा जाए तो यह उन तमाम लोगों, नेताओं, राजनीतिक पार्टियों के मुंह पर तमाचा जैसा है जो लगातार भारत में लोकतंत्र के कमजोर होने, संव‍िधान की दुहाई देकर और भारतीय संविधान की किताब को हाथों में लहराकर यह जताने की कोशिशों में लगे हुए हैं कि वर्तमान सरकार में “लोकतंत्र” कमजोर हुआ है। कुल मिलाकर मोदी सरकार आमजन के बीच विश्‍वास बहाली के स्‍तर पर अच्‍छा काम कर रही है।

(डिस्क्लेमर – स्वतंत्र लेखन। लेखक के निजी विचार हैं, जरूरी नहीं कि पाञ्चजन्य सहमत हो )

Topics: भारत में लोकतंत्रDemocracy in Indiaमल्लिकार्जुन खरगेपाञ्चजन्य विशेषप्यू रिसर्च 2025लोकतंत्र संतुष्टिराहुल गांधीविपक्षी दावेRahul GandhiPew Research 2025मोदी सरकारdemocracy satisfactionModi governmentopposition claimsMallikarjun Kharge
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