बांग्लादेश में 5 अगस्त 2024 के बाद जो कुछ हुआ, वह देखा ही है। शेख हसीना जैसे ही देश छोड़कर गईं, वैसे ही शेख हसीना और उनके पिता शेख मुजीबुर्रहमान से जुड़ी हर याद मिटाने का अभियान चल पड़ा। इसे राजनीतिक प्रतिशोध कहा गया, लेकिन राजनीतिक गुस्सा यह नहीं होता कि उसी पहचान को नष्ट करने में लग जाएं, जो देश का आधार है।
ऐसा लगता है कि जैसे मजहबी कट्टरपंथी शेख मुजीबुर्रहमान की कई धरोहरों को मिटाने के बाद अब वह पहचान मिटाने पर आमदा हैं, जिनसे उस भूमि की वह पहचान है जो अभी भी भारत अर्थात हिन्दू जड़ों से जोड़ती है।
रवीन्द्रनाथ टैगोर के पैतृक आवास पर हमला
ऐसी ही एक पहचान है नोबेल पुरस्कार विजेता रवीन्द्रनाथ टैगोर का सिराजगंज जिला में कचहरीबाड़ी में पैतृक आवास। जहां पर अभी भी लोग आते हैं। वे उस विरासत को देखने आते हैं, जिसकी जड़े उस पहचान में है, जिसे मजहबी कट्टरता मिटा देना चाहती है।
ईद वाले दिन हुआ हमला
ईद वाले दिन वहां पर हमला हुआ। हमला होने की वजह भी वही पुरानी कि लोग भड़क गए। घटना कुछ यूं हुई कि एक आदमी स्मारक देखने गया और उसका परिवार भी उसके साथ था। स्टाफ के साथ पार्किंग शुल्क को लेकर उसकी तनातनी हुई। आरोप है कि उस व्यक्ति को ऑफिस में बंद करके स्मारक कर्मियों ने मारपीट की।
जमात ए इस्लामी के लोग शामिल
देखते ही देखते यह खबर फैल गई और फिर वहां पर कुछ लोगों की भीड़ आई और उसने इस महत्वपूर्ण स्मारक को नुकसान पहुंचाया। कहने के लिए यह केवल वह हिंसा थी जिसने एक आदमी के साथ हुई कथित हिंसा का प्रतिकार किया। मगर ऐसा नहीं है। कई रिपोर्ट्स के अनुसार तोड़फोड़ करने वाली भीड़ में जमात-ए-इस्लामी और हिफाजत-ए-इस्लाम के लोग भी शामिल थे। प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि हमलावरों ने टैगोर के खिलाफ नारे भी लगाए।
🔸 Rabindranath Tagore’s ancestral house was vandalised in Sirajganj district of Bangladesh.
That's how the Greatest poet of Bengal is respected by Bengali muslims. pic.twitter.com/uOa3UtVEgw
— Joy Das 🇧🇩 (@joydas1844417) June 11, 2025
हिंसा की जांच के लिए टीम बनी
इसके साथ ही लोगों का यह भी कहना है कि पुलिस ने समय रहते कदम क्यों नहीं उठाए? इस हिंसा की जांच के लिए एक टीम का गठन किया गया है और यह देखना होगा कि टीम क्या रिपोर्ट देती है। हालांकि भास्कर इंग्लिश के अनुसार पुलिस की जांच में ऐसा कुछ सामने नहीं आया है कि किसी को भी स्मारक में बंधक बनाकर रखा गया। एक स्थानीय दुकानदार ने पहचान गुप्त रखने की शर्त पर बताया कि हिंसा करने वालों ने योजना पहले से बना रखी थी। उसने कहा कि स्थानीय लोग हमलों में शामिल नहीं थे, क्योंकि टैगोर का संग्रहालय बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता था, और स्थानीय आकर्षण का केंद्र था। इससे हम दुकानदारों को अपनी आजीविका चलाने में मदद मिलती है। हमले से पहले चरमपंथियों ने यहां एक रैली भी निकाली थी।
अप्रैल में भी हुई थी घटना
ऐसा नहीं है कि गुरुदेव रबिन्द्रनाथ टैगोर के साथ अभी भी बांग्लादेश मे यह घटना की गई हो। अप्रैल में भी उनके चित्र पर कालिख पोत दी गई थी। कुश्तिया में प्रवेश करते समय गुरुदेव टैगोर का चित्र बना हुआ था। ऐसा कहा जाता है कि गुरुदेव ने गीतांजलि का एक हिस्सा यहीं कुठिबाड़ी में रहते हुए लिखा था।
https://twitter.com/Himalaya1971/status/1907845090829283431?
बड़ा सवाल यह है
प्रश्न यही उठता है कि क्या बांग्लादेश अब पूरी तरह से चरमपंथियों के हाथों में चला गया है? या फिर वह पूरी तरह से उन ताकतों के हाथों में है जो बांग्लादेश की बांग्ला पहचान को नष्ट कर देना चाहती हैं? गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर का ही लिखा हुआ “अमार शोनार बांग्ला” लोग अभी भी गाते हैं और यह जमात ही है जो यह मांग कर रही थी कि अमार शोनार बांग्ला को बदला जाए।
क्यों कर रहे राष्ट्रीय गीत का विरोध
दरअसल अमार शोनार बांग्ला, एक ऐतिहासिक गीत है। यह बंग-भंग के विरोध में लिखा गया था। बंग-भंग जो लॉर्ड कर्जन ने करवाया था और भयानक विरोध के बाद उसे रद्द करना पड़ा था। अमार शोनार बांग्ला बंगाल के बंटवारे के खिलाफ था, इसलिए भारत से अलग मजहबी पहचान वाले लोग इस गीत को स्वीकार करने से कतराते हैं और यह कहते हैं कि यह भारत ने हम पर थोपा था।
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