बांग्लादेश में महिलाओं पर अत्याचार: शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाली प्रोफेसर ने बताई “नए बांग्लादेश” की असलियत
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बांग्लादेश में महिलाओं पर अत्याचार: शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन करने वाली प्रोफेसर ने बताई “नए बांग्लादेश” की असलियत

प्रोफेसर जुबैदा ने बताया कि कैसे शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में आम महिलाओं के लिए जीना दूभर होता जा रहा है

by सोनाली मिश्रा
Jun 8, 2025, 07:37 pm IST
in विश्व
कट्टरता की आग में झुलसता बांग्लादेश

कट्टरता की आग में झुलसता बांग्लादेश

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नया बांग्लादेश बनाने की चाह में शेख हसीना को पद से हटाने के लिए कथित छात्र आंदोलन में कई महिलाओं ने भी बढ़-चढ़कर भाग लिया था। उन्हें तानाशाह बताते हुए उन्हें देश से बाहर निकालने वाले आंदोलन को बौद्धिक आधार देने में कई प्रोफेसर का हाथ रहा। मगर जिस प्रकार से शेख हसीना के जाने के बाद कट्टरपंथियों ने महिलाओं पर अत्याचार करने आरंभ किये, उन्हें देखकर लोग हतप्रभ हैं। अब उन लोगों की ओर से भी आवाजें आने लगी हैं, जिन्होंने इस आंदोलन में भाग लिया था।

ऐसी ही एक प्रोफेसर हैं, जुबैदा नसरीन। वह ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं और शेख हसीना को हटाने वाले आंदोलन का बड़ा चेहरा थीं। वह इन दिनों जर्मनी में स्कॉलरशिप प्रोग्राम में हैं। प्रोफेसर जुबैदा ने न्यूज18 से बात करते हुए बताया कि कैसे शेख हसीना के जाने के बाद बांग्लादेश में आम महिलाओं के लिए जीना दूभर होता जा रहा है।

महिलाओं को सेक्स वर्कर कहा गया

बांग्लादेश में महिला आयोग द्वारा कुछ अनुशंसाएं की गई थीं, जिनका कट्टरपंथी ताकतों ने विरोध किया और यह भी कहा था कि यह सब पश्चिम की साजिश है। इन अनुशंसाओं के विरोध में रैलियां भी निकाली थीं। प्रोफेसर जुबैदा ने बताया कि महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए आयोग ने जो सिफारिशें की थीं, उन्हें कट्टरपंथी ताकतों ने नकार दिया। जिन महिलाओं ने समिति में रहकर कार्य किया था, उन्हें खुलेआम धमकियां दी गईं और बदनाम किया गया। उन्हें चुप कराने के लिए उन्हें “सेक्स वर्कर” तक कहा गया।

हिफाजत-ए-इस्लाम और जमात-ए-इस्लामी ने किया विरोध

उन्होंने कहा कि हिफाजत-ए-इस्लाम और जमात-ए-इस्लामी जैसे समूहों ने आयोग के सुझावों के खिलाफ आंदोलन किया और सरकार पर दबाव बनाया कि वह आयोग की सिफारिशों पर कदम न उठाए, जबकि कुछ सुझाव सेक्स वर्कर्स के लिए अधिकार सुनिश्चित करने के लिए थे, और अन्य सुझाव विरासत संबंधी कानूनों को लेकर थे। प्रोफेसर ने कहा कि दुर्भाग्य से सरकार उन ताकतों के आगे झुकती हुई दिख रही है।

भद्दी भाषा और उत्पीड़न झेल रहीं महिलाएं

जब उनसे यह पूछा गया कि महिलाओं ने पिछले वर्ष हुए आंदोलन में बहुत बड़ी भूमिका निभाई थी, तो अब उनके प्रति व्यवहार में ऐसा परिवर्तन क्यों देखा जा रहा है? इस पर प्रोफेसर नसरीन ने कहा कि जब पिछले वर्ष आंदोलन में लड़कियां भाग ले रही थीं, तो उनके कपड़ों पर किसी ने कोई टिप्पणी नहीं की थी। वे जैसे कपड़ों में होती थीं, उसी में रात तक में आंदोलन में भाग लेती थीं, मगर अब उन्हें महिलाओं को भद्दी भाषा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ रहा है।

बांग्लादेश में डरी हुई हैं महिलाएं

उन्होंने छात्र आंदोलन से बनी राजनीतिक पार्टी नेशनल सिटिज़न पार्टी की चुप्पी पर प्रश्न उठाते हुए कहा कि उनकी चुप्पी दुखदायी है। अभी तक उन नेताओं ने इस धोखे पर कुछ नहीं कहा है, और अप्रत्यक्ष रूप से वे इसका समर्थन ही करते दिख रहे हैं। महिलाएं डरी हुई हैं। अब उनमें से कई महिलाओं ने अपने कपड़ों का तरीका भी बदल लिया है। किसी भी तरह की कानूनी जरूरतों के चलते नहीं, बल्कि बढ़ते सामाजिक दबाव के कारण। लड़कियों पर मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दबाव असहनीय है और वे लगातार डर और तनाव में जी रही हैं।

सिर ढक कर आने की दी गई धमकी

जब उनसे यह पूछा गया कि क्या उन्हें व्यक्तिगत रूप से किसी भी धमकी का सामना करना पड़ा तो उन्होनें उत्तर दिया कि उनसे सीधे तौर पर कुछ नहीं कहा गया, लेकिन उन्हें एक पत्र मिला जिसमें उन्हें सलाह दी गई थी कि वे विश्वविद्यालय आने से पहले अपना सिर ढक कर आएं। वे आंदोलन मे सक्रिय थीं और  शेख हसीना शासन का विरोध करने के चलते तब भी उत्पीड़न का सामना करना पड़ा था। मगर अब जो हो रहा है वह बेहद परेशान करने वाला है। जो कोई भी कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ बोलने की हिम्मत करता है, उसे निशाना बनाया जा रहा है।

क्या महिलाओं का प्रयोग किया गया ?

न्यूज18 पर प्रोफेसर नसरीन का यह इंटरव्यू हैरान करने वाला है और कई प्रश्न भी उठाता है। और उनमें सबसे बड़ा प्रश्न तो यही उठता है कि क्या महिलाओं का प्रयोग शेख हसीना का विरोध करने वाली कट्टरपंथी ताकतों ने किया? जो ताकते शेख हसीना को चुनावी रूप से हरा नहीं सकती थीं, क्या उन्होनें महिलाओं को छलकर शेख हसीना के खिलाफ उन्हें अपना मोहरा बनाया?

ईरान की क्रांति के बाद के जैसे हालात

ऐसे कई प्रश्न हैं, जिनके उत्तर नहीं मिलते हैं और शायद मिलेंगे भी नहीं क्योंकि ऐसा देखा गया है कि महिलाओं ने जब आंदोलन किये तो उनके आंदोलन का लाभ उन्हें नहीं मिला। जैसे कि ईरान की क्रांति में भी महिलाओं ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था, परंतु जैसे ही इस्लामिक शासन वहां पर आया, महिलाओं पर ही तमाम पाबंदियां लगने लगीं और आज स्थिति यह है कि वहां की लड़कियां उन थोपी गई पाबंदियों का विरोध लगातार कर रही हैं। क्या बांग्लादेश की मुस्लिम महिलाओं को भी अपने मूल अधिकार पाने के लिए यही संघर्ष करना होगा या फिर यह एक वक्ती तूफान है जो बीत जाएगा, यह तो समय ही बताएगा।

 

Topics: ढाका विश्वविद्यालयनया बांग्लादेशप्रोफेसर जुबैदा नसरीनबांग्लादेश में महिलाएंबांग्लादेश समाचारशेख हसीनाछात्र आंदोलन
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