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सिंधु जल समझौते का अनजाना पक्ष

सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच हुई, लेकिन क्या यह भारत के लिए घाटे का सौदा था? जानें 83 करोड़ रुपये और 80.52% पानी देने के पीछे का सच, नेहरू सरकार की आलोचना और आतंकवाद के बदले मिले धोखे की कहानी।

by अभय कुमार
Apr 29, 2025, 08:27 am IST
in विश्लेषण
Unknown facts about indus water treaty

प्रतीकात्मक तस्वीर

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पाकिस्तान के साथ सिंधु जल संधि के बारे में यह कहावत की लम्हों ने खता की थी और सदियों ने सजा पाई पूरी तरह चरितार्थ होती हैं. 19 सितंबर 1960 को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के तानाशाह जनरल अयूब खान के बीच सिंधु जल समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था। अप्रैल 2025 के पहलगाम के आतंकवादी हमले के बाद इस समझौते पर सबसे ज्यादा चर्चा हो रही है। इसका कारण है कि भारत ने इस समझौते को निलंबित कर दिया है।

मगर सिंधु जल समझौते में कई तथ्य हैं जो जनमानस से छुपाए गए या उसे जानबूझकर सबके सामने नहीं आने दिया गया। इस समझौते में भारत के साथ बहुत बड़ा धोखा किया गया था। तत्कालीन जवाहरलाल नेहरू की सरकार ने इस समझौते में ना केवल पाकिस्तान को पानी दिया था, बल्कि ₹ 83 करोड़ भी दिए थे। इस समझौते में सिंधु के पानी के साथ पाकिस्तान को ₹ 83 करोड़ क्यों दिए गए ? यह समझौता भारत के लिए केवल घाटे का सौदा था। इस समझौते में देश के लिए पानी भी गया पैसा भी गया और बदले में क्या मिला केवल आतंकवाद और अविश्वास ?

65 साल पहले तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के नेतृत्व में भारत ने दरियादिली दिखाकर ना केवल पाकिस्तान को सिंधु नदी का 80.52 % पानी दे दिया था, बल्कि अपना खजाना भी लुटा दिया था। नेहरू ने सिंधु जल समझौते के तहत पाकिस्तान को सिंधु नदी का पानी देने के साथ-साथ 83 करोड़ रुपए भी दिए थे। यह धन पाकिस्तान के अंदर सिंधु नदी पर नहरे बनाने के लिए दिए गया था। 83 करोड़ रूपए की यह रकम पाकिस्तान को भारतीय मुद्रा में नहीं दी गई थी, बल्कि विदेशी मुद्रा डॉलर, पोंड, स्टर्लिंग में दी गई थी। यह मामला और भी गंभीर इस कारण से हो जाता हैं क्योंकि उस समय हमारा विदेशी मुद्रा का भंडार नहीं के बराबर था। आज के समय में उस समय का 83 करोड़ रूपए वर्तमान में 5500 करोड़ के बराबर है।

सिंधु जल समझौता और इतनी बड़ी रकम पाकिस्तान को देने के एवज में भारत को 1965, 1971 में युद्ध, 1980 के दशक से भारत में अनवरत आतंकवाद और 1999 में कारगिल में पाकिस्तान से युद्ध का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं साथ में उरी, पठानकोट, पुलवामा और अब पहलगाम में आतंकी हमला।

देश का बंटवारा होने के बाद दोनों देशों के बीच पानी के बंटवारे के मुद्दे पर मोहम्मद अली जिन्ना ने बड़े आत्मविश्वाश या यों कहें कि घमंड के साथ कहा था कि वो हिंदुओं के पानी से पाकिस्तान की धरती पर सिंचाई नहीं करेंगे। इस हेकड़ी में पाकिस्तान 1948 में इस बात पर राजी हो गया कि भारत अपनी उन नदियों को रोक सकता है जो बहकर पाकिस्तान जाती है। लेकिन, इसके बाद भी उस समय की नेहरू सरकार ने इस पानी को रोक कर नहरें बनाकर भारत के लिए इस्तेमाल नहीं किया। वहीं पाकिस्तान की हेकड़ी भी जल्दी ही निकल गई उसे सिंधु नदी के पानी की जरूरत महसूस होने लगी।

इसी बीच एक अजीबोगरीब वाकया हुआ। 60 के दशक की शुरुआत में अमेरिका के एक नदी विशेषज्ञ डेविड लिंथल ने अचानक भारत और पाकिस्तान का दौरा किया। डेविड लिंथल अमेरिका की टेनसी वैली अथॉरिटी और अमेरिका के परमाणु ऊर्जा आयोग से जुड़े हुए थे। डेविड लिंथल ने भारत के दौरे के बाद एक विदेशी पत्रिका में एक लेख लिखा, जिसमें उन्होंने भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी के जल बंटवारे की वकालत की। इस लेख को भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने भी पढ़ा और इतना ही नहीं नेहरू ने डेविड लिंथल से मुलाकात भी की और उन्होंने माना था कि डेविड लिंथल ने उन्हें सिंधु जल समझौते के लिए प्रेरित किया था। भारत और पाकिस्तान के बीच इस द्विपक्षीय मामले में में वर्ल्ड बैंक मध्यस्थ की भूमिका में शामिल हो गया। आखिरकार नेहरू और अयूब खान के बीच सिंधु जल समझौता हो गया।

सिंधु जल समझौते को लेकर आज 65 साल बाद पूरे देश में चर्चा और बहस हो रही है, मगर जब यह संधि हुई थी तो इस पर उस समय भी तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू को इस एकतरफा संधि करने के लिए तीखी आलोचना का सामना करना पड़ा था और इस संधि के बाद नवंबर 1960 को विपक्ष की मांग पर लोकसभा में जबरदस्त बहस हुई थी। इस बहस के दौरान विपक्ष के नेताओं ने प्रधानमंत्री नेहरू से तीखे सवाल किए थे और इन्हीं सवाल उठाने वालों में से एक थे भारतीय जनसंघ के युवा सांसद अटल बिहारी वाजपेयी जो बाद में देश के प्रधानमंत्री बने।

अटल बिहारी वाजपेयी ने संसद में नेहरू पर यह आरोप लगाया था कि सिंधु जल समझौते पर जब भारत और पाकिस्तान के प्रतिनिधियों के बीच बातचीत चल रही थी तो भारत के जल विशेषज्ञ प्रतिनिधियों ने इस एकतरफा संधि का विरोध किया था। लेकिन प्रधानमंत्री नेहरू ने इसमें दखल दिया और भारतीय प्रतिनिधि प्रतिनिधिमंडल को पाकिस्तान की मांगों के सामने झुकना पड़ा। अटल बिहारी वाजपेयी ने नवंबर 1960 में संसद में जो आरोप लगाए थे वो लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित लोकसभा डिबेट की सेकंड सीरीज के खंड 48 के पेज नंबर 3165 से लेकर 3240 पर प्रकाशित हुआ है। इस बहस के दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि अंतरराष्ट्रीय कानून के हिसाब से पाकिस्तान को इतना पानी देने की जिम्मेदारी हमारे ऊपर नहीं है।

हम अगर चाहते तो पाकिस्तान को इससे कम शर्तों पर तैयार कर सकते थे, मगर पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कहा है कि यह संधि तो होती ही नहीं अगर भारत के प्रधानमंत्री नेहरू उसमें दखल नहीं देते। मैं यह जानता हूं कि ऐसा कौन सा गतिरोध था जो दोनों देशों के अधिकारियों के बीच था और हमारे प्रधानमंत्री नेहरू ने उसमें हस्तक्षेप किया और यह समझौता हो गया। अगर प्रधानमंत्री नेहरू दोनों देशों के बीच सद्भावना और मित्रता स्थापित करने की बात करते हैं तो मेरा निवेदन है कि मित्रता और सद्भावना स्थापित करने का यह तरीका नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी ने आगे कहा कि पाकिस्तान अगर कोई गलत मांग रखता है तो उसका विरोध होना चाहिए। अच्छे संबंधों का आधार न्याय और तर्क को मानने से होता है। सिंधु जल समझौता भारत के हित में नहीं है। पाकिस्तान को हमने अनुचित कीमत दी है और उसके बाद भी पाकिस्तान की मित्रता हमें मिलेगी यह कोई भी विश्वास के साथ नहीं कह सकता। 65 साल पहले अटल बिहारी वाजपेयी ने लोकसभा में जो कहा था वो सच साबित हुआ। पाकिस्तान को अपने हिस्से का पानी लुटाने के बाद भी भारत को पाकिस्तान की दोस्ती तो दूर सिर्फ और सिर्फ खूनी धोखा मिला है।

नवंबर 1960 में लोकसभा में विपक्ष के नेताओं ने पीएम नेहरू को इस बात पर भी घेरा कि आखिर जब हमने सिंधु नदी का 80.52 % जल पाकिस्तान को दे दिया था तो फिर ₹ 83 करोड़ देने की क्या जरूरत थी वो भी विदेशी मुद्रा। जबकि भारत का विदेशी भंडार जो विदेशी मुद्रा का भंडार उस समय खाली था। इस सवाल पर विश्व शांति के पैरोकार प्रधानमंत्री नेहरू की दलील थी कि हमने यह ₹ 83 करोड़ देकर शांति खरीदी है। नेहरू ने उस दिन लोकसभा में कहा था कि यह निर्णय आपके हिसाब से सही या गलत हो सकता है। आप इसका हिसाब लगा सकते हैं, लेकिन मैंने भी इसका हिसाब लगाया है और उसे समझने की कोशिश की है। मेरे सहकर्मियों ने पाकिस्तान से कई बार बात की और हमें लगा कि इन परिस्थितियों में यह ₹83 करोड़ देना एक सही भुगतान है। यह समझौता हमने खरीदा है।

30 नवंबर 1960 को लोकसभा में विपक्ष के सांसद और समाजवादी नेता अशोक मेहता की दूरदृष्टि ने सारा भविष्य देख लिया था। उन्हें पता था कि आगे क्या होने वाला है। अशोक मेहता ने उस दिन लोकसभा में कहा था कि 1947 में भी यह सोचकर देश का बंटवारा किया गया था कि इससे नरसंहार नहीं होगा लेकिन यह सोच गलत साबित हुई। सरकार एक बार गलती कर सकती है लेकिन कोई भी सरकार दो बार गलती नहीं कर सकती। समाजवादी नेता अशोक मेहता ने आगे कहा कि हम पाकिस्तान को रियायतें दे रहे हैं, लेकिन क्या हम यह भरोसा कर सकते हैं कि इन रियायतों से उचित परिणाम मिलेंगे। संसद में विपक्ष नेहरू से सवाल पूछता रहा लेकिन नेहरू छोटा सा जवाब देकर संसद से बाहर निकल गए।

सिंधु जल समझौता हुआ तब मीडिया में नेहरू सरकार की कड़ी आलोचना हुई थी। द हिंदू अखबार ने लिखा था कि नई दिल्ली को याद होगा कि पिछले सालों में बातचीत के दौरान भारत किस तरह कदम दर कदम रियायतें देता रहा। हिंदू आगे लिखा था कि विभाजन के समय से ही भारत के साथ दुर्भाग्य रहा है और अब सिंधु नदी का बड़ा हिस्सा पाकिस्तान को मिल गया है। वहीं एक अन्य मशहूर अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपने संपादकीय में उस समय लिखा था कि विवाद के लगभग हर बड़े बिंदु पर भारत ने अपने हितों की कीमत पर पाकिस्तान की इच्छाओं के सामने घुटने टेक दिए हैं।

Topics: भारत-पाकिस्तान समझौता83 करोड़ रुपयेजल बंटवाराआतंकवादIndia-Pakistan Agreementअटल बिहारी वाजपेयीRs 83 croreatal bihari vajpayeewater sharingterrorismनेहरू सरकारIndus Water TreatyNehru Governmentसिंधु जल संधि
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