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होम विश्लेषण

‘अब ये हाथ कांपते नहीं, कमाई करते हैं’

सेवा भारती  दक्षिण तमिलनाडु ने 2 मार्च को कर्मयोगिनी संगम  का आयोजन किया। कन्याकुमारी  जिले के  नागरकोइल स्थित अमृता काॅलेज  परिसर में आयोजित इस संगम में 35 ,620 महिलाओं ने सहभाग किया

by WEB DESK
Mar 31, 2025, 08:00 am IST
in विश्लेषण, संघ, तमिलनाडु
दीप प्रज्ज्वलित कर संगम का उद्घाटन करते रा. स्व. संघ के सरकार्यवाह 
श्री दत्तात्रेय होसबाले और आध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी

दीप प्रज्ज्वलित कर संगम का उद्घाटन करते रा. स्व. संघ के सरकार्यवाह श्री दत्तात्रेय होसबाले और आध्यात्मिक गुरु माता अमृतानंदमयी

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राधा कभी सिलाई मशीन से डरती थीं। मशीन चलाते समय उनकी उंगलियां कांप जाती थीं। जैसे जीवन की अनिश्चितताओं से हर रोज कांपती रही थीं, लेकिन आज उसी राधा ने मंच पर खड़े होकर पूरे आत्मविश्वास से कहा, “अब मैं महीने में 5,000 रु. कमाती हूं.. और ये हाथ कांपते नहीं, कमाई करते हैं।”

यह दृश्य था सेवा भारती दक्षिण तमिलनाडु द्वारा आयोजित ‘महिला शक्ति संगम’ का एक ऐसा संगम, जो केवल कार्यक्रम नहीं था, बल्कि उन सैकड़ों-हजारों महिलाओं की भावनाओं, आत्मबल और संघर्षों का उत्सव था, जो वर्षों से चुपचाप समाज को नया आकार दे रही हैं। इस संगम में आई हर महिला अपने साथ एक कहानी लेकर आई थी, कभी आंसुओं में डूबी, कभी संघर्षों से सनी, पर अब उम्मीदों से भरी हुई।

कोई विधवा थी, जिसने दो बच्चों को सिलाई सीखाकर पालना शुरू किया। कोई घरेलू हिंसा की शिकार रही, जो अब दूसरी महिलाओं के लिए परामर्शदाता बन चुकी है। कोई गांव की एकांत दुनिया से बाहर निकली, और अब खुद का छोटा व्यवसाय चला रही है। इन सबको जोड़ता था सेवा भारती का साथ, जिसने न केवल प्रशिक्षण दिया, बल्कि भरोसा भी दिलाया कि तुम भी कुछ कर सकती हो।

कार्यक्रम की आत्मा : हजारों महिलाओं से गूंजता हुआ पंडाल, लोकनृत्यों की थाप, आत्मनिर्भरता की कहानियां, और आंखों में चमक, यह केवल आयोजन नहीं, एक सामाजिक जागरण था। हस्तनिर्मित उत्पादों की प्रदर्शनी में उन हाथों की कला दिखी जो पहले केवल खाना पकाने और परोसने तक सीमित थे। सांस्कृतिक प्रस्तुतियां उस साहस की प्रतीक बन गई, जिसे आज ये महिलाएं जी रही हैं। सम्मान समारोह में जब महिलाओं को मंच पर बुलाया गया, तो उन्हें सिर्फ सम्मान नहीं मिला,पहचान मिली।

सेवा से शक्ति की ओर : सेवा भारती दक्षिण तमिलनाडु का कार्य सिर्फ प्रशिक्षण देना नहीं है, यह महिलाओं को अपने भीतर की शक्ति से परिचित कराता है। संगठन का यह विश्वास रहा है कि अगर एक महिला सशक्त होती है, तो वह पूरे समाज को सशक्त कर सकती है। संगठन ने दक्षिण तमिलनाडु के विभिन्न गांवों और शहरी झुग्गियों में सिलाई केंद्र, कंप्यूटर प्रशिक्षण, हस्तकला प्रशिक्षण और स्वास्थ्य जागरूकता अभियान के माध्यम से यह कार्य किया है।

रिश्तों से बने समाज : इस संगम की सबसे सुंदर बात यह थी कि यहां कोई ‘प्रशिक्षक’ या ‘प्रशिक्षार्थी’ नहीं था। सब एक-दूसरे के साथी, बहन, और प्रेरणा बनकर खड़े थे। एक महिला ने कहा, “मैं तो सिर्फ कढ़ाई सीखने आई थी, पर यहां बोलना, मुस्कुराना और सपने देखना भी सीख लिया।”

चुनौतियां और उम्मीदें : इन महिलाओं के लिए जीवन कभी आसान नहीं रहा। आर्थिक तंगी, सामाजिक बंधन, पारिवारिक दबाव सब कुछ था। पर इस संगम में जो भाव था, वह था कि ‘हम अब पीछे नहीं जाएंगे।’ सेवा भारती के कार्यकर्ता, जो स्वयं गांवों से आते हैं, हर एक महिला को हाथ पकड़कर आगे ले जाते हैं। न कोई उपदेश, न प्रचार बस साथ चलने का वादा।

बदलाव की आहट : ‘महिला शक्ति का अद्वितीय संगम’ इस बात का प्रतीक है कि परिवर्तन किसी बड़े आंदोलन से नहीं, बल्कि छोटे-छोटे आत्मविश्वास से भरे कदमों से आता है।

इस संगम में महिलाओं ने केवल मंच नहीं साझा किया, उन्होंने स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता और सामाजिक उत्तरदायित्व साझा किया। सेवा भारती दक्षिण तमिलनाडु ने यह साबित किया कि सेवा जब संवेदना से जुड़ती है, तब वह केवल मदद नहीं देती, जीवन की दिशा बदल देती है।

Topics: सेवा से शक्तिसामाजिकसेवा भारतीआत्मनिर्भरतापाञ्चजन्य विशेषस्वाभिमानमहिला शक्ति संगम
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