प्रयागराज महाकुंभ को पर्यावरण-युक्त बनाने के लिए ‘पर्यावरण गतिविधि’ ने पूरे देश में ‘एक थैला, एक थाली’ अभियान चलाया। इसके अंतर्गत लोगों से स्टील की थाली और कपड़े के थैले देने का अनुरोध किया गया था।
इसमें 2,241 संगठनों ने सहयोग किया और 7,258 संग्रहण स्थान थे। इसके अंतर्गत स्टील की 14,17,064 थालियां, 2,63,678 स्टील के गिलास और 13,46,128 कपड़े के थैले जमा हुए। महाकुंभ में सवा दस लाख थालियां, ढाई लाख गिलास और 13 लाख थैले वितरित किए गए।
देशव्यापी इस अभियान में लाखों परिवारों की सहभागिता रही और घर-घर तक पर्यावरण रक्षण का संदेश गया। लोग स्थानीय नदियों, झीलों, जल स्रोतों की स्वच्छता हेतु प्रेरित हुए। इससे महाकुंभ में डिस्पोजेबल (एक बार उपयोग करने वाली प्लास्टिक की वस्तु) प्लेटों, गिलासों और कटोरों (पत्तल-दोना) का उपयोग 80-85 प्रतिशत तक कम हुआ।
अपशिष्ट उत्पादन में लगभग 29,000 टन की कमी आई, जबकि अनुमानित कुल अपशिष्ट 40,000 टन से अधिक हो सकता था। डिस्पोजेबल प्लेटों, गिलासों और कटोरों पर प्रतिदिन 3.5 करोड़ रु. की बचत हुई, जो 40 दिवसीय आयोजन में कुल 140 करोड़ रु. थी। इसमें परिवहन, ईंधन, सफाई कर्मचारी और अन्य संबंधित लागतें शामिल नहीं हैं।
खाद्य अपशिष्ट में 70 प्रतिशत की कमी आई। थालियों को पुन: धोकर काम में लिया जा सकता है। भोजन परोसने में सावधानी- ‘उतना ही लो थाली में कि व्यर्थ न जाए नाली में’- बरती गई। इस अभियान में अखाड़ों, भंडारों और सामुदायिक रसोई की लागत में बचत हुई।
ऐसा नहीं होने पर ये सभी डिस्पोजेबल वस्तुओं पर लाखों रु. खर्च करते। आयोजन में वितरित की जाने वाली स्टील की थालियों का उपयोग वर्षों तक किया जाएगा, जिससे अपशिष्ट और लागत में कमी जारी रहेगी। इस पहल ने सार्वजनिक आयोजनों के लिए ‘बर्तन बैंकों’ के विचार को प्रोत्साहित किया है।
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