जर्मनी में मानहेम शहर में भीड़ पर एक बार फिर से किसी व्यक्ति ने कार चढ़ा दी है, इसमें दो व्यक्तियों की मृत्यु हुई और कई घायल हैं। घायलों में से कई लोग गंभीर हैं। इस हमले को लेकर यही कहा जा रहा है कि यह हमला जानबूझकर किया गया था, मगर अधिकारियों का यह कहना है कि यह हमला किसी भी तरह से राजनीतिक या मजहबी कारणों से प्रेरित नहीं था।
मगर हमला तो हुआ है और हमले के लिए कार को माध्यम बनाया गया। इस हमले का संदिग्ध व्यक्ति पड़ोसी राइनलैंड-पैलेटिनेट राज्य का 40 वर्षीय जर्मन नागरिक है। जर्मनी में कार को माध्यम बनाकर कई हमले किये गए हैं। और अभी तक जो भी हमले किये गए थे, उनमें आप्रवासी शामिल थे और उनका उद्देश्य कुछ और था। अभी तक इस हमले का उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो पाया है।
बाडेन-वुर्टेमबर्ग के आंतरिक मंत्री थॉमस स्ट्रोबल ने कहा कि व्यक्ति ने वाहन का इस्तेमाल “हथियार के रूप में” किया।
मगर जो सबसे हैरान करने वाला एक बार फिर से तथ्य था कि फिर से कार को ही निशाना बनाकर खबरें मीडिया ने चलाईं। जब जर्मनी में पिछली बार कार से हमला किया गया था और मीडिया ने यह हेडलाइन चलाई थीं कि “कार भीड़ में घुस गई,” तो इसे लेकर काफी हंगामा हुआ था। सोशल मीडिया पर प्रश्न उठे थे कि हमलावर के स्थान पर हमला करने वाले माध्यम को निशाना क्यों बनाया जा रहा है।
Another day, another “car” attack pic.twitter.com/tWySD1VWSN
— End Wokeness (@EndWokeness) March 3, 2025
एंड वोकनेस नामक यूजर ने एक बार फिर से उन सभी शीर्षकों को एक साथ पोस्ट किया, जिसमें यह लिखा था कि कार भीड़ में घुस गई।
लोग बार-बार इस प्रकार की रेपोर्टिंग पर प्रश्न उठाते हैं कि हमला करने वाले को लक्ष्य क्यों नहीं किया जाता है। कई लोगों ने एक बार फिर से यही लिखा कि “जर्मनी: एनदर कार अटैक”। हालांकि पहले इसे भी आप्रवासियों द्वारा ही किया गया हमला माना जा रहा था, मगर अभी तक इस हमले का उद्देश्य स्पष्ट नहीं हो पाया है।
जर्मनी में लगातार हिंसक घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। नौ महीने पहले इसी स्थान पर, जहां सोमवार को यह हमला हुआ, एक अफ़गान व्यक्ति ने कई लोगों को छुरा मार दिया था और इसमें एक पुलिस कर्मी की मौत हुई थी।
हाल ही में क्रिसमस के अवसर पर मगदेबर्ग में बाजार में भीड़ में एक आदमी ने कार चढ़ा दी थी, और उसमें 6 लोग मारे गए थे और लगभग 300 लोग घायल हुए थे। इसमें एक 50 वर्षीय सऊदी मनोवैज्ञानिक डॉक्टर को हिरासत में लिया गया था।
उस समय भी यही प्रश्न किया गया था कि आखिर कार को लेकर हेडलाइन क्यों? हमलावर पर निशाना क्यों नहीं? फिर चाहे वह किसी भी मानसिकता का क्यों न हो? उसकी मानसिक स्थिति कैसी भी क्यों न हो? मगर भारत में भी ऐसे लोग हैं, जो इस प्रकार की रिपोर्टिंग करते ही हैं, ऐसी हेडलाइन बनाते ही हैं। अफगानिस्तान में तालिबान की गोली का शिकार बने भारतीय पत्रकार दानिश सिद्दीकी की मौत के लिए भी “बंदूक की गोली” को ही निशाना बनाया था, न कि गोली चलाने वालों की मानसिकता पर!
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