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छत्रपति शिवाजी महाराज: भारत के सर्वश्रेष्ठ सैन्य महारथी

छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म फाल्गुन वद्य तृतीया को हुआ था। 16 साल की छोटी उम्र में, शिवाजी ने बीजापुर में तोरना किले पर कब्जा करने के साथ मराठा साम्राज्य के पुनर्निर्माण के लिए एक सुनियोजित सैन्य अभियान शुरू किया

by लेफ्टिनेंट जनरल एम के दास,पीवीएसएम, बार टू एसएम, वीएसएम ( सेवानिवृत)
Mar 17, 2025, 03:19 pm IST
in भारत
छत्रपति शिवाजी महाराज

छत्रपति शिवाजी महाराज

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“अगर भारत को आजाद होना है तो एक ही रास्ता है, ‘शिवाजी की तरह लड़ो’”।
– नेताजी सुभाष चंद्र बोस

19 फरवरी को, हम मराठा साम्राज्य के महान मराठा योद्धा और छत्रपति छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती मनाते हैं और गर्व करते हैं। शिवाजी के रूप में सैन्य योद्धा (जीवनकाल 19 फरवरी 1930 से 3 अप्रैल 1680) ने पीढ़ी दर पीढ़ी सैन्य नेताओं और सैनिकों को प्रेरित किया। भारतीय सेना के एक इन्फैंट्री अधिकारी के रूप में, मैंने इस सर्वोच्च योद्धा और भारत के महानतम विजेता से युद्ध लड़ने की रणनीति के बारे में बहुत कुछ सीखा है। इस लेख का उद्देश्य वर्तमान परिदृश्य में शिवाजी की उल्लेखनीय सैन्य रणनीति, परिचालन कला और युद्धकला को प्रासंगिक बनाना है। यह छत्रपति शिवाजी महाराज नामक सैन्य महापुरुष को मेरी, एक सैनिक की विनम्र श्रद्धांजलि है।

16 साल की छोटी उम्र में, शिवाजी ने बीजापुर में तोरना किले पर कब्जा करने के साथ मराठा साम्राज्य के पुनर्निर्माण के लिए एक सुनियोजित सैन्य अभियान शुरू किया। उन्होंने सिंहगढ़, राजगढ़, चाकन और पुरंदर के किलों को भी तेज गति से जीत लिया। यह महत्वपूर्ण है कि शिवाजी ने कड़ी मेहनत और अनुकरणीय समर्पण के साथ सैन्य रणनीति में महारत हासिल की। सैनिक स्कूलों, विद्यालयों, एनसीसी और सैन्य अकादमियों में हमारे युवा लड़कों और लड़कियों में इस तरह की सैन्य कौशल का निर्माण करना होगा। वर्दी में चार दशक बिताने के बाद, मुझे लगता है कि भारत ने अभी तक छत्रपति शिवाजी महाराज की शिक्षाओं का राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए पूरी तरह से उपयोग नहीं किया है।

शिवाजी ने अपना साम्राज्य स्थापित करने के लिए अपने राज्य के हर कोने में फैले सैकड़ों किलों का भी निर्माण किया। पहाड़ी किले रक्षात्मक लेआउट के लिए महत्वपूर्ण थे और कई सफल अभियानों के लिए धुरी के रूप में काम करते थे। किलों के निर्माण की यह प्रमुख रणनीति सीमावर्ती क्षेत्रों में रक्षा बुनियादी ढांचे के निर्माण के समान है। शांतिकालीन प्रशिक्षण और प्रशासन के लिए सैन्य छावनियों और सैन्य स्टेशनों का निर्माण और रखरखाव करने की हमें सीख मिलती है।

शिवाजी की नियमित सेना 30,000 से 40,000 सैनिकों की अपेक्षाकृत छोटी थी, जिसमें अधिकांश मावली पैदल सैनिक शामिल थे और प्रशिक्षित घुड़सवारों की सेना युद्ध में इनका सहयोग करती थी। उनके तोपखाने की सीमित क्षमता थी लेकिन छापामार युद्ध पर ध्यान केंद्रित करने से कमियों की भरपाई हो जाती थी। शिवाजी अपनी सेना की कमियों से अवगत थे और इसलिए मुगल सेना के कमजोर स्थानों पर हमला करते हुए छोटी टीमों में त्वरित हमलों पर निर्भर थे। सैन्य नेतृत्व को अपनी कमजोरी को छुपाते हुए युद्ध लड़ना होता है। आज भी, भारत को अपनी सीमाओं की रक्षा के लिए सैनिकों के एक बड़ी संख्या की आवश्यकता है, जिसमें अधिकांश इन्फैंट्री यानि पैदल सेना है। कोई भी तकनीक एक सुप्रशिक्षित और प्रेरित सैनिक का स्थान नहीं ले सकती।

सामरिक स्तर पर, छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से कई सबक हैं। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण पहाड़ियों, जंगलों, नदी के क्षेत्रों और बीहड़ों के इलाके पर शिवाजी की महारत है। जिस तरह से शिवाजी दुश्मन को कठिन इलाके से लड़ने के लिए लुभाने में सक्षम थे, वह उप इकाई और इकाई स्तर पर लड़ाई के लिए महत्वपूर्ण है। नेतृत्व की असली परीक्षा तब होती है जब आप अपनी योजनाओं के अनुसार दुश्मन से लड़ते हैं। एक अच्छा सैनिक युद्ध क्षेत्र को पैदल चलकर और दुर्गम इलाकों में यात्रा करके इलाके की महारत हासिल करता है। एक स्मार्ट सैनिक को नेविगेट करने के लिए टैबलेट और जीपीएस की आवश्यकता नहीं होती है; आपके पसीने और परिश्रम से हासिल की गई सैन्य भावना यह सुनिश्चित करती है।

‘गुरिल्ला युद्ध’ के प्रस्तावक के रूप में शिवाजी महाराज की रणनीति उन्हें सैन्य युद्ध के इतिहास में अमर बनाती है। इस तरह के युद्ध की पहचान छोटी टीम का संचालन है, जो दुश्मन को गंभीर नुकसान पहुंचाने में सक्षम है, विशेष रूप से दुश्मन के रसद और संचार सुविधाओं को। आज जब हम आतंकवाद के अभिशाप से लड़ रहे हैं, सैन्य कमांडरों को गुरिल्ला की तरह आतंकवादियों से लड़ना चाहिए । इसका एक असाधारण उदाहरण 10 नवंबर 1659 को शिवाजी द्वारा बाघ के पंजे से मुगल जनरल अफजल खान का वध है। औरंगजेब द्वारा शिवाजी को ‘माउंटेन रैट’ कहा जाता था जो स्पष्ट रूप से मुगल जनरलों पर उनकी मनोवैज्ञानिक श्रेष्ठता को इंगित करता है।

अगर हमें एक ऐसे सैन्य कमांडर को देखना है, जिसने बुनियादी सैन्य रणनीति से लेकर भव्य सामरिक शक्ति का फायदा उठाया, तो शिवाजी के अलावा कोई भी सैन्य महारथी अपने जीवनकाल में ऐसा करने में उतना सफल नहीं हुआ । बीजापुर सल्तनत में व्याप्त भ्रम का लाभ उठाते हुए 1646 में तोरना किले पर कब्जा सामरिक आश्चर्य का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। रणनीतिक से चकित करने का उद्देश्य झूठे परिचालन परिदृश्य का चित्रण करते हुए अपनी क्षमताओं को छिपाकर विरोधी को गुमराह करना होता है जो दुश्मन के सैन्य निर्णय को भ्रमित करता है। शिवाजी 1657 से अहमदनगर और जुन्नार में अपनी बेहतर युद्ध क्षमताओं के मुगलों को भ्रमित करने में सफल रहे। यही कारण था कि औरंगजेब को 1660 में शाइस्ता खान के नेतृत्व में 1,50,000 की विशाल सेना भेजने के लिए मजबूर किया। शिवाजी की चुस्त सेना के लिए इस बड़ी सेना को गुरिल्ला पद्धति से हराने में मदद मिली। 5 अप्रैल 1663 को दुश्मन के शिविर पर साहसी शिवाजी के नेतृत्व में रात के हमले के बाद इस शक्तिशाली सेना की अंतिम हार, जिसने शाइस्ता खान को गंभीर रूप से घायल कर दिया, हमारे जैसे सैनिकों के लिए सैन्य लोककथाओं का हिस्सा है।

एक दूरदर्शी सैन्य नेता के रूप में, शिवाजी ने 1657 के बाद से अपनी नौसेना का निर्माण किया। शिवाजी ने कोंकण समुद्र तट के साथ किलों पर कब्जा करके तटीय सुरक्षा पर विशेष ध्यान दिया। सिंधुदुर्ग एक ऐसा ही समुद्री किला है जो आजतक भारतीय नौसेना के लिए प्रेरणा है। मराठों की भूमि-आधारित लड़ाई लड़ने की सीमा को जानने के बाद, शिवाजी ने अपने नौसैनिक बेड़े के संचालन के लिए स्थानीय मछुआरों के अलावा पुर्तगाली नाविकों को नियुक्त किया। 200 से अधिक युद्धपोतों के बेड़े के साथ, शिवाजी ने अपने विरोधियों को समुद्री शक्ति से परास्त किया। भविष्य के युद्धों के लिए एक शक्तिशाली भारतीय नौसेना की आवश्यकता होगी। इसका पता लगाया जा सकता है जब हम भारत के नक्शे को उल्टा करके देखें । उत्तर में हिमालय के बजाय, हम हिंद महासागर को देखेंगे, जो बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से घिरा हुआ नजर आएगा। इस प्रकार, हम सुरक्षित रूप से निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि छत्रपति शिवाजी महाराज ने भारत में आधुनिक नौसैनिक युद्ध की नींव रखी थी।

एक ऐसे युग में जब सैन्य संरचनाएं औपचारिक नहीं थीं, शिवाजी ने जमीनी बलों, नौसेना और किले के स्तर पर सैन्य संगठन बनाने में महान कौशल का प्रदर्शन किया। छोटी टीमों का नेतृत्व पैदल सेना या घुड़सवार सेना के उपयुक्त मिश्रण के साथ हवलदारों द्वारा किया गया था। ऐसी कई संरचनाओं और संगठनों का भारतीय सेना में आज भी पालन किया जाता है। शिवाजी की चुस्त दुरुस्त सेना साबित करती है कि भारत को युद्ध लड़ने में गुणवत्ता की आवश्यकता है, सैनिक और आयुध दोनों स्तरों पर।

एक गहन सैन्य नेता के अलावा शिवाजी महाराज एक महान प्रशासक भी साबित हुए और धार्मिक सहिष्णुता और न्याय की भावना पर ध्यान केंद्रित करने के साथ अपने साम्राज्य को गुणवत्तापूर्ण शासन प्रदान किया। उन्होंने फारसी और अरबी के बजाय मराठी को कामकाजी भाषा के रूप में बढ़ावा दिया। शिवाजी की शाही मुहर संस्कृत में थी और उन्होंने 1677 में राज्य उपयोग के खजाने संस्कृत में ‘राजव्यवहार कोश’ को लिपिबद्ध करने के लिए एक टीम को नियुक्त किया। अगर भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति सिद्धांत को संस्कृत में लिखा जाता है तो यह शिवाजी महाराज के प्रति सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि होगी। भारत के वर्तमान वरिष्ठ सैन्य नेतृत्व को छत्रपति शिवाजी महाराज के जीवन से बहुत कुछ सीखना है।

छत्रपति शिवाजी महाराज की सबसे बड़ी विरासत दुर्जेय मराठा साम्राज्य की नींव सफलतापूर्वक रखना था, जो अंततः मुगल साम्राज्य के पतन का कारण बना। युद्धकला और शासन कला दोनों में, वह मुगलों के लिए काल साबित हुआ। यदि भारत 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की आकांक्षा रखता है, तो उसे छत्रपति शिवाजी महाराज भारत के कर कदमों पर चलना होगा। आज भी छत्रपति शिवाजी महाराज सबसे बड़े सैन्य महारथी बने हुए हैं जो नेताओं और नेतृत्व के मानस पर अपनी छाप छोड़ते हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज को उनकी जयंती पर सबसे उपयुक्त श्रद्धांजलि भारत के युवाओं को मजबूत स्थिति से राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पित करना होगा। जय भारत!

 

Topics: Shivaji JayantiIndian Army and Shivajiछत्रपति शिवाजी महाराजChhatrapati Shivaji Maharajशिवाजी महाराज जयंतीशिवाजी जयंतीभारतीय सेना और शिवाजीShivaji Maharaj Jayanti
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