एक फिल्म बनाने में कितना समय लगता होगा? स्क्रिप्ट, कास्टिंग, शूटिंग, म्यूजिक, एडिटिंग और भी बहुत कुछ। एक साल, दो साल, तीन साल, और कुछ को तो कई वर्ष। आपका विकल्प इनमें से कुछ एक होगा। लेकिन अगर ये कहें कि बस 48 घंटे और पूरी फिल्म तैयार!आपको यकीन नहीं होगा, लेकिन यह सच है। ऐसा ही कुछ कर रहे हैं कल के लिए तैयार हो रहे क्रियेटिव माइंड्स। वे भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव ( इफ्फी) में घूमते-फिरते पूरी फिल्म तैयार कर दे रहे हैं।
फिल्म की टीम को जितना समय एक-दूसरे को समझने में लगता है उतने में तो ये क्रियेटिव माइंड्स (Creative minds of tomorrow) कई फिल्में तैयार कर देंगे। गोवा के पणजी के मैरियट रिजॉर्ट में लगे फिल्म बाजार में जब इनके प्रोडक्शन रूम में एंट्री किया तो नजारा शानदार था। टीम क्या होती है, कॉलेज से निकले ये युवा बखूबी बता रहे थे। चेहरे पर मुस्कान, हर लक्ष्य को भेदने का विश्वास उनकी आंखों में चमक रहा था। वे खुशी से झूम रहे थे।
प्रोडक्शन रूम में तीन टीमें थीं और उन्होंने इस पर रिश्तों और तकनीकी पर फिल्में बनाई थीं। पुष्पेंद्र ने बताया कि उन लोगों ने द विंडो नाम से फिल्म बनाई है। पियूष ने बताया कि यह इफ्फी का पहला अनुभव है। पहली बार किसी और की लिखी फिल्म को डॉयरेक्ट किया। मैं जो चाहता था वह स्क्रिप्ट मुझे मिल गई, ये अच्छा रहा। मैंने यहां स्क्रिप्ट का भी चुनाव किया। पल्लवी ने यहां अभिनय किया। मैंने कहा कि आपने क्या कमाल किया। इस पर पल्लवी कहती हैं कि असली कमाल तो स्क्रिप्ट रायटर और डायरेक्टर करता है। यहां का प्लस प्वाइंट यहां का प्लेटफॉर्म है। बड़ा अवसर मिला है। यहां यंग माइंड्स को चांस मिलता है, इससे बड़ी बात क्या होगी। चेतना कहती हैं कि वह एक्ट्रेस सेलेक्ट हुई थीं, लेकिन मैंने टीम के साथ मिलकर सारा काम किया। मैं एक्टिंग तो नहीं कर पाई, लेकिन एक्सपीरियंस अच्छा था। वह कहती हैं कि वह हरियाणा से हैं और इससे पहले यूनिवर्सिटी की तरफ से इफ्फी में पहले आई थीं। आयुष कहते हैं कि हमने लव फिक्स सब्सक्रिप्शन नाम से फिल्म बनाई। अब देखना यह है कि ऑडिएंस का रियेक्शन कैसा होगा।
पुणे से आई विशाखा नाइक कहती हैं कि हमने इस विषय पर फिल्म बनाई है कि जब रिलेशनशिप के बीच टेक्नोलॉजी आ जाती है। मैं मैकेनिकल इंजीनियर हूं, लेकिन फिल्मों में मेरी रुचि है और मैंने थियेटर भी किया था। मैंने इस फिल्म में एक्टिंग की है। यहां मास्टर क्लास में मैंने डायरेक्शन के बारे में भी सीखा।
ये रहे चैलेंजेस
फिल्म के सारे क्रू मेंबर यहीं गोवा में इफ्फी में मिले, इसलिए एक-दूसरे को समझने का टाइम नहीं था। बस काम पर फोकस करना था। पहली बार मिले, कौन क्या करता है, किसको क्या चाहिये, ये सब नहीं पता था। सब अलग अलग जगहों से थे। भाषा भी अलग थी। डॉयरेक्टर क्या चाह रहा है और उसे समझकर अगले दिन उसे शूट करना, यह बड़ी बात थी।
ये सीखा
मास्टर क्लास से काफी कुछ सीखने को मिला। स्क्रिप्ट अच्छी कैसे लिखी जाती है, डॉयरेक्शन की बारीकियां क्या होती हैं, ये सब मास्टर क्लास में सीखने को मिला। टीम कैसे काम करती है, ये भी यहां सीखने को मिला।
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