इन्फोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति ने हाल ही में भारत के विज्ञान में गिरावट का कारण विदेशी आक्रमणों और उनके लंबे शासन को बताया। 2024 इंफोसिस विज्ञान पुरस्कार समारोह में अपने वर्चुअल संबोधन के दौरान, मूर्ति ने कहा कि आक्रमणकारियों के शासन के कारण भारत में विश्लेषणात्मक सोच और विज्ञान में प्रगति की प्रवृत्ति प्रभावित हुई। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि जब आक्रमणकारियों का राज था, तब हमारी युवा पीढ़ी के सोचने और विज्ञान की दिशा में काम करने की क्षमता कमजोर पड़ गई, और वैज्ञानिक नवाचारों की जगह उपेक्षित रह गई। उनका कहना है कि 1000 ई. से लेकर 1947 तक का काल भारत के विज्ञान और नवाचार के लिए नकारात्मक साबित हुआ।
मूर्ति ने इजरायल के पूर्व प्रधानमंत्री शिमोन पेरेज के दृष्टांत को साझा करते हुए बताया कि इज़रायल ने अपनी सबसे बड़ी विरासत, अपने लोगों की बौद्धिक क्षमता को पहचाना और नवाचार के माध्यम से बंजर रेगिस्तानों को उपजाऊ बना दिया। मूर्ति का कहना है कि ऐसे विचार किसी भी राष्ट्र के विकास में क्रांतिकारी भूमिका निभाते हैं और भारत को भी इसी दिशा में आगे बढ़ना चाहिए।
नारायण मूर्ति ने यह भी कहा कि एक समय था जब भारत गणित, खगोल विज्ञान, चिकित्सा, और शल्य चिकित्सा में दुनिया का अग्रणी था। वैदिक काल से लेकर 700 ई. तक भारत का विज्ञान में विशेष योगदान था। परंतु 700 से लेकर 1520 ई. तक, अफगानिस्तान और उज्बेकिस्तान जैसे देशों से आये आक्रमणकारियों ने भारत की विज्ञान संस्कृति को नुकसान पहुँचाया। इसके बाद अंग्रेज़ों के औपनिवेशिक शासन ने भी इस दिशा में प्रगति को सीमित किया। हालांकि अंग्रेजों ने अन्य आक्रमणकारियों की तुलना में कुछ हद तक भारतीयों में महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा दिया।
विज्ञान में पुनरुत्थान की आवश्यकता
मूर्ति के अनुसार, भारत में स्वतंत्रता के बाद से विज्ञान के क्षेत्र में प्रगति हुई है, और यह साबित कर दिया है कि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सोचने की क्षमता में अब भी अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने यह भी कहा कि जिज्ञासु मस्तिष्क और विश्लेषणात्मक सोच के अभाव ने हमारी प्रगति को सीमित कर दिया है। युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित करने के लिए हमें वैज्ञानिक क्षेत्र में और सुधार तथा नवाचार की आवश्यकता है ताकि हम देश को वैश्विक विज्ञान के मानचित्र पर एक नई ऊंचाई पर ले जा सकें।
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