नक्सलियों द्वारा दिए गए घाव को लेकर जीवन जीने को मजबूर देवव्रत की आयु 36 वर्ष है। ये गांव छिन्दगढ़, जिला सुकमा के रहने वाले हैं।
ये उन सौभाग्यशाली लोगों में से एक हैं, जो नक्सलियों की भारी गोलीबारी के बीच जिंदा बच गए। बता दें कि 17 मई, 2010 को दंतेवाड़ा से सुकमा के लिए एक बस यात्रियों को लेकर रवाना हुई। बस चिंगावरम पुलिया के पास पहुंची ही थी कि जोरदार धमाका हुआ।
लोग कुछ समझ पाते इसके पहले ही माओवादियों ने बस पर ताबड़तोड़ गोलियां बरसानी शुरू कर दीं। आईईडी धमाके और अंधाधुंध गोलीबारी में 15 ग्रामीणों की मौत हो गई और 12 लोग गंभीर रूप से घायल हुए थे। घायलों में देवव्रत भी शामिल थे।
इस हमले में उनके दोनों पैरों और हाथों में गंभीर चोटें आई थीं। वे कहते हैं, ‘‘उस दिन जिस तरह से घेरकर नक्सलियों ने गोलीबारी की थी, उसे देखते हुए लग रहा था कि अब जीवन शायद ही बचे। लेकिन प्रभु ने बचा लिया।’’
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