‘तीज’ पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है, जो वर्ष में तीन बार आता है। सबसे पहले आती है सावन के महीने में ‘हरियाली तीज’, उसके कुछ ही दिन बाद ‘कजरी तीज’ और फिर ‘हरतालिका तीज’। तीनों ही तीज भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हैं और पूरे देश में बहुत धूमधाम से मनाई जाती हैं। भगवान शिव और माता पार्वती को समर्पित हरतालिका तीज भारतीय संस्कृति और परंपरा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत है। इस व्रत का धार्मिक महत्व बहुत गहरा है और इसे सुख, समृद्धि एवं पतिव्रता धर्म का प्रतीक माना जाता है।
हरतालिका तीज भाद्रपद शुक्ल तृतीया तिथि को मनाई जाती है और हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार यह पर्व 6 सितम्बर को मनाया जा रहा है। इसके अगले ही दिन गणेश चतुर्थी मनाई जाती है। हरतालिका तीज के दिन महिलाएं भगवान शिव और माता पार्वती की रेत या मिट्टी से बनी मूर्तियों की पूजा करते हुए सुखी वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करती हैं। सुहागिन महिलाएं इस दिन पति की लंबी आयु और अखंड सौभाग्य के लिए निर्जला उपवास रखती हैं जबकि कुंवारी कन्याओं के लिए तो यह पर्व मनचाहे और योग्य पति को प्राप्त करने का पर्व है। कुंवारी कन्याओं के लिए व्रत के नियम अलग हैं, वे इस व्रत को फलाहार पर भी रख सकती हैं।
हरतालिका तीज खासतौर से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड इत्यादि में बहुत धूमधाम से मनाई जाती है। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु में हरतालिका तीज व्रत ‘गौरी हब्बा’ के नाम से मनाया जाता है, जहां महिलाएं सुखी वैवाहिक जीवन का आशीर्वाद पाने के लिए स्वर्ण गौरी व्रत करती हैं। चूंकि हरतालिका तीज व्रत निर्जला व्रत होता है, इसीलिए इसे बेहद कठिन माना जाता है।
महिलाएं इस दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए पूरे दिन व्रत रखती हैं। एक बार इस व्रत का संकल्प लेने के बाद इसे आजीवन रखना पड़ता है। यह त्योहार करवा चौथ से भी कठिन माना जाता है क्योंकि जहां करवा चौथ में चांद देखने के उपरांत व्रत सम्पन्न कर दिया जाता है, वहीं हरतालिका तीज व्रत में पूरे दिन निर्जला व्रत किया जाता है और अगले दिन पूजन के पश्चात् ही व्रत सम्पन्न होता है। तीज के सूर्योदय से अगले दिन सूर्योदय तक अन्न-जल कुछ भी ग्रहण नहीं किया जाता। मान्यता है कि इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं के सुख और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, हरतालिका तीज पर इस बार दुर्लभ ब्रह्म योग का निर्माण हो रहा है, साथ ही कई अन्य मंगलकारी योग भी बन रहे हैं और इन योग में शिव-पार्वती की पूजा करने से साधक को दोगुना फल प्राप्त होगा। भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि 5 सितंबर को दोपहर 12 बजकर 21 मिनट पर शुरू होगी, वहीं, इस शुभ तिथि का समापन 6 सितंबर को दोपहर 3 बजकर 1 मिनट पर होगा। इसीलिए उदिया तिथि के अनुसार हरतालिका तीज 6 सितंबर को ही मनाई जाएगी। इस बार तृतीया तिथि चतुर्थी युक्त है और इसे लेकर शास्त्रों में कहा गया है, ‘चतुर्थी सहिताय यातु सातृतीया फलप्रदा’ अर्थात् चतुर्थी युक्त तृतीया तिथि में हरितालिका तीज का व्रत शुभ फल देने वाला है। वैसे तो हरतालिका पूजन किसी भी समय किया जा सकता है लेकिन प्रातःकाल और प्रदोष काल में भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा विशेष कल्याणकारी मानी गई है।
हरतालिका तीज पर इस साल ब्रह्म योग, शुक्ल योग, रवि योग, हस्त नक्षत्र, चित्रा नक्षत्र का संयोग बन रहा है और ये सभी योग शुभ माने जाते हैं। हरतालिका तीज पर इस बार जो तीन बड़े दुर्लभ योग बन रहे हैं, उनमें शुक्ल योग को बहुत ही शुभ योग माना जाता है। इस योग को चंद्रमा की तरह एकदम पाक माना गया है। माना जाता है कि यदि आप इस योग में पूजा कर रहे हैं तो फल प्राप्ति की संभावना सर्वाधिक होती है। यह दुर्लभ योग ज्योतिषियों द्वारा फल प्राप्ति की गारंटी माना जाता है। ब्रह्मा योग को भी एक दुर्लभ योग माना जाता है, जो ज्ञान का स्रोत माना गया है। इस शक्तिशाली योग में यदि साधक सच्चे मन से पूजा करते हैं तो इससे स्वास्थ्य, बुद्धि, धन और बल की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में मजबूती आती है। इस योग में पूजा करने से इंसान की उम्र भी बढ़ती है। रवि योग भी अत्यंत लाभकारी योग माना गया है, इस योग में पूजा करने से साधक को बहुत लाभ मिलता है। ज्योतिषविदों के अनुसार यह मान-सम्मान का योग माना जाता है और जो लोग चाहते हैं कि समाज में उनकी प्रतिष्ठता बढ़े तो उन्हें रवि योग में पूजा अवश्य करनी चाहिए।
इस व्रत को ‘हरतालिका तीज’ इसीलिए कहा जाता है क्योंकि एक पौराणिक कथा के अनुसार, माता पार्वती की शादी उनके पिता राजा हिमालय उनकी इच्छा के विरूद्ध भगवान विष्णु से करवाना चाहते थे। तब माता पार्वती की एक सहेली उन्हें अपने साथ घने जंगल में ले जाकर छिपा देती है। उस घने सुनसान जंगल में स्थित एक गुफा में ही रहकर माता पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए कठोर तप शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने रेत के शिवलिंग की स्थापना की। जब माता पार्वती ने शिवलिंग की स्थापना की, संयोग से वह हस्त नक्षत्र में भाद्रपद शुक्ल तृतीया का दिन था। इस दिन निर्जला उपवास रखते हुए उन्होंने रात्रि में जागरण भी किया। इस कथा में ‘हरत’ का अर्थ अपहरण और ‘आलिका’ का अर्थ सहेली है और इस तरह ‘हरतालिका’ शब्द बना। हरतालिका तीज को ‘बड़ी तीज’ भी कहा जाता है, जो हरियाली तीज के एक महीने बाद आती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, मां पार्वती ने सबसे पहले हरतालिका तीज का व्रत किया था। ऐसा माना जाता है कि शिव को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने हरियाली तीज के दिन कठोर व्रत की शुरुआत की थी, जो हरतालिका तीज के दिन ही समाप्त हुआ था। माना जाता है कि माता पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए अत्यंत कठोर तप किया था और इसी दिन उन्हें भगवान शिव मिले थे, इसीलिए यह व्रत प्रेम और समर्पण का प्रतीक भी माना जाता है।
हरतालिका तीज के दिन 16 श्रृंगार का विशेष महत्व है क्योंकि सौभाग्य का संबंध श्रृंगार से जुड़ा है, जिसमें सभी वस्तुएं वैवाहिक जीवन की निशानी मानी जाती हैं। पूजा के समय व्रती महिलाएं स्वयं भी 16 श्रृंगार करती हैं और पूजा में माता पार्वती को भी 16 श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करती हैं। सोलह श्रृंगार में सिंदूर, मेंहदी, चूड़ियां, महावर, बिंदी, काजल, नथ, मंगलसूत्र, मांग टीका, गजरा, बिछिया आदि वस्तुएं शामिल होती हैं। हरतालिका तीज में हरे रंग का विशेष महत्व है क्योंकि यह रंग प्रकृति का रंग होता है। हिंदू धर्म में हरा रंग अखंड सौभाग्य का प्रतीक माना गया है, यह प्रकृति, वृद्धि और नवीनता का भी प्रतीक है। माना जाता है कि धन और समृद्धि की देवी लक्ष्मी भी हरे रंग को पसंद करती हैं। यही कारण है कि हरतालिका तीज में इस रंग को पहनना शुभ माना गया है। इसीलिए हरतालिका तीज के मौके पर सुहागिन महिलाएं हरी साड़ी, हरी कांच की चूड़ियां इत्यादि खासतौर से पहनती हैं। हरतालिका तीज में जिस प्रकार पूजा और व्रत का विशेष महत्व है, उसी प्रकार दान का भी खास महत्व माना जाता है। तीज व्रती महिलाएं कोई नई साड़ी या कोई नया वस्त्र किसी सुहागिन महिला या पुरोहित की पत्नी को दान करते हुए श्रद्धापूर्वक कुछ दक्षिणा भी देती हैं।
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