संयुक्त राष्ट्र की यह सुरक्षा परिषद सुरक्षा से जुड़े वैश्विक विषयों पर मंथन करके उसके समाधान का प्रयास करती है। भारत के प्रधानमंत्री पिछले दिनों रूस गए थे और अभी हाल में उनकी यूक्रेन यात्रा भी काफी चर्चित रही है। रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से चले आ रहे युद्ध को लेकर भारत ने बातचीत का समाधान बताया है, उसकी सभी सभ्य देशों ने प्रशंसा की है। सिंगापुर के राजनयिक का भारत का इस मामले में पक्ष लेना साफ समझा जा सकता है।
एक लंबे समय से भारत संयुक्त राष्ट्र में अपने विशिष्ट योगदान से अपनी छाप छोड़ता आ रहा है। विशेषकर गत दस साल में तो विश्व के अनेक महत्वपूर्ण विषयों पर प्रमुख देश भारत की राय को महत्व देते हैं। संयुक्त राष्ट्र में आवश्यक बदलावों और उसमें विस्तार को लेकर भी भारत मुखर रहा है। भारत के विदेश मंत्री अनेक बार अनेक मंचों से इसकी आवश्यकता पर प्रकाश डाल चुके हैं। इसी के साथ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट का भी भारत प्रबल दावेदार है।
भारत की स्थायी सीट के लिए भी सभी शक्तिशाली देश भारत के पाले में हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कूटनीति के कायल पश्चिमी देश और अंतरराष्ट्रीय मंच ही नहीं पी—5 देश भी सुरक्षा परिषद में भारत के स्थायी रूप से आने के बाद उसके और महत्व के होने की बात कहते हैं। अभी सिंगापुर के शीर्ष नेता ने प्रधानमंत्री मोदी को विकास पुरुष बताते हुए देश की प्रगति के प्रति उनका समर्पण सराहा था।
अब वही एक के पूर्व राजनयिक का कहना है कि विश्व के सबसे ताकतवर देशों की बात करें तो उनमें भारत का स्थान तीसरा है। उससे पहले सिर्फ अमेरिका और चीन ही हैं। पूर्व राजनयिक का आगे कहना है कि इस पंक्ति में ब्रिटेन भी कभी हुआ करता था, लेकिन अब वह ताकतवर राष्ट्र नहीं रहा। इसलिए ब्रिटेन बेवजह ही सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट लेकर बैठा है। वह अपनी सीट त्याग दे और तब भारत को वह सीट प्राप्त हो, यह ही आदर्श स्थिति होगी।
संयुक्त राष्ट्र की यह सुरक्षा परिषद सुरक्षा से जुड़े वैश्विक विषयों पर मंथन करके उसके समाधान का प्रयास करती है। भारत के प्रधानमंत्री पिछले दिनों रूस गए थे और अभी हाल में उनकी यूक्रेन यात्रा भी काफी चर्चित रही है। रूस और यूक्रेन के बीच लंबे समय से चले आ रहे युद्ध को लेकर भारत ने बातचीत का समाधान बताया है, उसकी सभी सभ्य देशों ने प्रशंसा की है। सिंगापुर के राजनयिक का भारत का इस मामले में पक्ष लेना साफ समझा जा सकता है।
अमेरिका और फ्रांस के राष्ट्रपति भी कह चुके हैं कि सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी बनती है और वे ऐसा होते देखने के इच्छुक हैं। भारत के प्रति सकारात्मक रुख रखने वाले सिंगापुर के इस पूर्व राजनयिक ने भी माना है कि संयुक्त राष्ट्र में आवश्यक सुधार किए जाने जरूरी हैं।
दरअसल सिंगापुर के यह पूर्व राजनयिक एक बातचीत में संयुक्त राष्ट्र और उसमें बदलावों की बात कर रहे थे। तब भारत का संदर्भ आया और उन्होंने ऐसा कहा। उन्होंने यह भी जानकारी दी कि दसियों साल हो गए ब्रिटेन ने उसे मिली वीटो पावर का प्रयोग नहीं किया। उनके अनुसार, उस देश को भय है कि अगर उसने वीटो शक्ति प्रयोग की तो उसका विरोध किया जाएगा। ऐसे में ब्रिटेन के लिए सही यही रहेगा कि अपनी आज की कम हुई अपनी शक्ति को पहचानते हुए वह अपनी स्थायी सीट छोड़ दे। वह सीट फिर भारत को दे दी जाए।
टिप्पणियाँ