इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक मुकदमे की सुनवाई करते हुए कहा है कि बिना किसी उचित कारण के जीवन साथी को छोड़ देना और लंबे समय तक साथ नहीं रहना यह क्रूरता की परिधि में आता है। हिंदू विवाह अधिनियम एक संस्कार है, न कि सामाजिक अनुबंध। ऐसी परिस्थितियों में जीवन साथी को बिना किसी पर्याप्त कारण के छोड़ना, संस्कार की आत्मा और भावना को समाप्त करने के जैसा है।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति डी रमेश की पीठ ने एक अपील की सुनवाई करते हुए तलाक को उचित ठहराया। इस मुकदमे में 23 साल से महिला अपने पति से अलग रह रही है। महिला की अपील पर सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने 5 लाख रुपये का स्थायी गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है। बता दें कि झांसी की रहने वाली अभिलाषा का विवाह राजेंद्र प्रसाद के साथ वर्ष 1989 में हुआ था।
शादी के करीब 3 साल बाद वर्ष 1991 में एक बच्चे का जन्म हुआ मगर कुछ वर्ष बाद ही पति-पत्नी अलग हो गए। कुछ समय बाद समझौता हो गया और फिर साथ-साथ रहने लगे। वर्ष 2001 में पति-पत्नी फिर से अलग हो गए। पति की तरफ से पारिवारिक न्यायालय में तलाक के लिए वाद आयोजित किया गया। मानसिक क्रूरता के आधार पर 19 दिसंबर 1996 को परिवार न्यायालय ने तलाक की स्वीकृति दे दी। इस आदेश के खिलाफ पत्नी ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की थी।
अपील की सुनवाई करते हुए उच्च न्यायालय ने पाया कि पति-पत्नी के विवाह संबंध कभी भी ठीक नहीं रहे। दोनों पक्षकार एक दूसरे के खिलाफ कई तरह के आरोप लगा रहे हैं। पति ने पत्नी के खिलाफ क्रूरता का आरोप लगा लगाया है। पति का आरोप है कि क्रूर व्यवहार के चलते पति की मां ने आत्महत्या कर ली थी।
आत्महत्या करने के बाद ही पति-पत्नी अलग रहने लगे थे और 23 साल से अलग रह रहे हैं। उच्च न्यायालय ने कहा कि पति या पत्नी बिना किसी कारण के कई वर्षों से अलग रहते हैं तो यह क्रूरता की परिधि में आता है। परिवार न्यायालय के आदेश को उचित ठहराते हुए उच्च न्यायालय ने 5 लाख रुपये का स्थाई गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया।
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