बांग्लादेश में छात्रों के कथित आंदोलन के बाद नई बनी अंतरिम सरकार में ढाका यूनिवर्सिटी में एक डीन से इस कारण इस्तीफा ले लिया गया है, क्योंकि उन्होनें “छात्रों” को सार्वजनिक रूप से कुरान नहीं पढ़ने दी थी। इसलिए “छात्रों” ने उनके कार्यालय में जाकर कुरान पढ़ी और उनसे इस्तीफा लिया। एक्टिविस्ट शिहाब अहमद तुहिन ने सोशल मीडिया हैंडल पर वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा कि “यह ढाका यूनिवर्सिटी में एक डीन था, जिसने छात्रों को खुले में कुरान नहीं पढ़ने दी थी, आज छात्रों ने उसके सामने कुरान पढ़ी और उसकी हिदाया के लिए दुआ पढ़ी और उसे इस्तीफे के लिए मजबूर किया।
https://twitter.com/TuhinShihab/status/1825441152511987866?
हालांकि यह समाचार कई पोर्टल्स पर प्रकाशित हुआ, मगर इसे लेकर यह लिखा जा रहा है कि ढाका यूनिवर्सिटी के फ़ैकल्टी ऑफ आर्ट्स डीन ने प्रदर्शन के कारण इस्तीफा दिया। इसे लेकर सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि बेहतर है कि बांग्लादेश के कट्टर इस्लामिस्ट लोगों के हैंडल को सोशल मीडिया पर फॉलो किया जाए, क्योंकि सेक्युलर मीडिया तो कारण बताएगा नहीं। ढाका ट्रिब्यून ने लिखा कि प्रोफेसर अब्दुल बशीर ने ढाका यूनिवर्सिटी में फ़ैकल्टी ऑफ आर्ट्स के डीन के पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने सोमवार को डीन के पद से इस्तीफा दे दिया और इस्तीफे में लिखा कि मैं फ़ैकल्टी ऑफ आर्ट्स के डीन पद से इस्तीफा दे रहा हूं। कृपया इस संबंध में आवश्यक कदम उठाएं।”
इसमें लिखा है कि छात्रों का आरोप था कि अब्दुल छात्रों के दमन में शामिल थे। ऐसा दावा करने वाले में एबी जुबैर शामिल था। जुबैर भेदभाव विरोधी छात्र आंदोलन का समन्वयक है। उसने यह आरोप लगाया कि प्रोफेसर बशीर यूनिवर्सिटी में छात्रों पर हमला करने वालों मे शामिल थे और उन्होनें उन छात्रों को भी सजा दी थी, जिन्होनें रमजान के दौरान कैंपस में कुरान पढ़ने के प्रोग्राम में हिस्सा लिया था।
प्रोफेसर के इस्तीफे के बाद कुरान पढ़ी गई और इस्लामोफोबिया और कुरान के प्रति बढ़ती शत्रुता के प्रति चिंता भी व्यक्त की गई। मगर इस वीडियो को लेकर सोशल मीडिया पर लोगों की प्रतिक्रियाएं भी सामने आने लगी हैं। लोगों ने बीबीसी आदि को भी टैग करके पूछा है कि क्या यही छात्र आंदोलन है और इसका मजहब से कोई लेना-देना नहीं है। लोग प्रश्न कर रहे हैं कि क्या यही छात्र आंदोलन था?
यह प्रश्न उठेगा ही कि क्या यही छात्र आंदोलन था? क्या यूनिवर्सिटी कुरान पढ़ने का स्थान है या यूनिवर्सिटी परिसर को ऐसी मजहबी गतिविधियों से मुक्त रखना चाहिए? इसे लेकर इतिहासकार एस इरफान हबीब ने भी एक्स पर लिखा कि किसी भी यूनिवर्सिटी में किसी भी मजहबी किताब को पढ़ा जाना चाहिए? घर पर मजहबी किताब पढ़ो और यूनिवर्सिटी में आपको जो करना है, वह करो। सोचो और पढ़ो!
https://twitter.com/irfhabib/status/1825564975835799737?
बांग्लादेश से और भी हैरान करने वाले समाचार आ रहे हैं, जिनसे यह बार-बार प्रतीत हो रहा है कि जो भी हो रहा है, वह और कुछ भी हो सकता है, परंतु वह किसी भी प्रकार से छात्र आंदोलन नहीं था और न ही यह आंदोलन केवल शेख हसीना को सत्ता से हटाना ही इसका उद्देश्य था। इसका उद्देश्य कुछ और ही है। या फिर कुछ लोग कह रहे हैं कि छात्र आंदोलन को इस्लामिक ताकतों ने हाईजैक कर लिया है। परंतु यह सच नहीं प्रतीत होता है, क्योंकि छात्र आंदोलन कैसे बिना किसी सहायता के इतना उग्र हो सकता था? यह तो सत्य है कि इसमें शेख हसीना के विरोधियों का हाथ था। कई छात्रों ने भी इस विषय में चिंता व्यक्त की थी कि कहीं कुएं से निकलकर बांग्लादेश खाई में तो नहीं गिर जाएगा? परंतु इसका उत्तर नहीं मिल रहा है, क्योंकि शेख हसीना के समर्थकों पर चुन-चुन कर प्रहार किया जा रहा है। और यदि इसके विषय में भारत में कोई लिख रहा है तो इसे भरत के दक्षिणपंथियों के दिमाग की उपज कहकर एक वर्ग द्वारा खारिज किया जा रहा है। कल ही सुहासिनी हैदर ने वायर का लेख साझा किया, जिसमें यह लिखा है कि बांग्लादेश के प्रति सांप्रदायिक गलत सूचनाएं भारतीय मीडिया ने फैलाईं।
भारत में एक बहुत बड़ा वर्ग ऐसा है जो यह स्वीकार ही नहीं करना चाहता है कि यह आंदोलन छात्र आंदोलन नहीं था, बल्कि केवल शेख हसीना को हटाने का आंदोलन था। यदि यह आंदोलन केवल शेख हसीना को हटाने का आंदोलन होता तो क्यों मुजीबुर्रहमान की मूर्तियाँ तोड़ी जातीं। क्यों कुरान का सार्वजनिक पाठ न कराए जाने पर किसी डीन को हटाया जाता?
हैरिस सुल्तान ने भी लिखा कि ये देशों को इस्लामिक जहन्नुम में बदलते हैं और फिर पश्चिम की ओर जाते हैं। इस्लाम दिमाग को नुकसान पहुंचाता है। कम से कम कम्युनिस्ट अपनी ही कम्युनिस्ट नरक में रहते हैं। बांग्लादेश में शेख हसीना के देश छोड़कर जाने के बाद जिस प्रकार से लोगों को नौकरी छोड़ने के लिए कहा जा रहा है या फिर जिस प्रकार से हिंदुओं पर हमले हुए, उन्हें केवल राजनीतिक विरोध ही कहा गया। ऐसा कहा गया कि हिन्दू चूंकि राजनीतिक रूप से शेख हसीना अर्थात अवामी लीग के समर्थक हैं, इसलिए उनपर हमले हुए। ये राजनीतिक हैं, धार्मिक नहीं।
मगर जो स्वरूप निकलकर आ रहा है, उससे यह राजनीतिक से अलग ही कुछ है, इसे नकारने वाला वर्ग कुछ भी कहे, परंतु यह आंदोलन राजनीतिक नहीं था और कम से काम यह शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से हटाने वाला ही आंदोलन मात्र नहीं था।
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