मेरे प्यारे देशवासियो!
इस वर्ष और पिछले कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदा के कारण हम सबकी चिंता बढ़ी है। प्राकृतिक आपदा में अनेक लोगों ने अपने परिवारजन खोए, संपत्ति खोई और राष्ट्र ने भी बारंबार नुकसान भोगा है। मैं आज उन सबके प्रति अपनी संवेदना व्यक्त करता हूं और उन्हें विश्वास दिलाता हूं, देश इस संकट की घड़ी में उन सबके साथ खड़ा है।
‘विकसित भारत 2047’ सिर्फ भाषण नहीं है। इसके लिए कठोर परिश्रम हो रहा है। देश के लोगों के सुझाव लिए जा रहे हैं। किसी ने भारत को दुनिया का ‘स्किल कैपिटल’, किसी ने ‘मैन्युफैक्चरिंग का ग्लोबल हब’, भारतीय विश्वविद्यालयों को ग्लोबल बनाने, किसी ने ग्लोबल मीडिया, स्किल्ड युवा को विश्व की पहली पसंद बनाने तो किसी ने देश को हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने का सुझाव दिया है।
देश में नई व्यवस्थाएं बन रही हैं। 10 साल के भीतर युवाओं के लिए संभावनाओं के द्वार खुले हैं, उनमें आत्मविश्वास की नई चेतना जगी है, जो देश के नए सामर्थ्य के रूप में उभर रहा है। आज विश्वभर में भारत की साख बढ़ी है, भारत के प्रति विश्व का नजरिया बदला है। सर्वोच्च न्यायालय ने बार-बार समान नागरिक संहिता की चर्चा की है। अनेक बार आदेश दिए हैं, क्योंकि देश का एक बहुत बड़ा वर्ग मानता है और इसमें सचाई भी है कि जिस नागरिक संहिता को लेकर हम जी रहे हैं, वह वास्तव में एक प्रकार की साम्प्रादायिक नागरिक संहिता है।
यह भेदभाव करने वाली नागरिक संहिता है। हमने 75 वर्ष इसमें बिताए हैं। संविधान निर्माताओं का सपना था, जिसे पूरा करना हम सबका दायित्व है। इस गंभीर विषय पर देश में व्यापक चर्चा हो। जो कानून मजहब के आधार पर देश को बांटते हैं, ऊंच-नीच का कारण बन जाते हैं, ऐसे कानूनों का समाज में कोई स्थान नहीं हो सकता है। इसलिए अब समय की मांग है कि देश में एक सेकुलर समान नागरिक संहिता हो। अब हमें पंथनिरपेक्ष नागरिक संहिता की ओर जाना होगा, तब जाकर देश में मजहब के आधार पर जो भेदभाव हो रहे हैं, सामान्य नागरिकों को जो दूरी महसूस होती है, उससे मुक्ति मिलेगी।
राजनीति मेें परिवारवाद लोकतंत्र के लिए खतरा है। हम एक लाख ऐसे युवाओं को राजनीति में लाना चाहते हैं, जिनके परिवार का राजनीति से कोई ताल्लुक न हो। ऐसे युवा पंचायत से लेकर संसद तक आएं और राजनीति की धारा को बदलें। हमारी माताओं, बहनों और बेटियों के साथ जो अत्याचार हो रहे हैं उससे देशभर में आक्रोश है। इस देश को, समाज को इसे गंभीरता से लेना होगा।
देशवासी भ्रष्टाचार के दीमक से परेशान हैं। हमने व्यापक रूप से भ्रष्टाचार के खिलाफ जंग छेड़ी है। मैं जानता हूंं इसकी कीमत मुझे और मेरी प्रतिष्ठा को चुकानी पड़ती है, लेकिन मेरी प्रतिष्ठा देश की प्रतिष्ठा से बड़ी नहीं हो सकती। देश के सपनों से मेरा सपना बड़ा नहीं हो सकता।
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