गरीब बच्चों को शिक्षा देना धर्म और दायित्व है, लेकिन शिक्षा के नाम पर इस्लामी शिक्षा देना और बच्चों के अधिकारों के साथ खिलवाड़ करना अपराध की श्रेणी में आता है। यह मानना है बाल अधिकार संरक्षण आयोग का, जो बार-बार अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय का ध्यान इस ओर आकर्षित कर रहा है। उत्तराखंड में करीब 400 मदरसे अवैध रूप से चल रहे हैं, उन्हें फंडिंग कहां से मिल रही है? क्या इन्हें विदेश से धन मिल रहा है? यहां तालीम लेने वाले बच्चे क्या पढ़ रहे हैं? यहां पढ़ने वाले बच्चे कहां से लाए जाते हैं? क्या इन मदरसों को मिलने वाले चंदे का कोई ऑडिट हो रहा है ? इनके बैंक खाते किसके नाम से चल रहे हैं? इन मदरसों की जमीन भवन का स्टेट्स क्या है ? क्या सरकारी जमीनों पर अतिक्रमण करके बनाए गए हैं? ऐसे कई सवाल सरकार के अल्पसंख्यक मंत्रालय को एकत्र कर उनका उत्तर खोजना है।
दुर्भाग्य से तुष्टिकरण की राजनीति के चलते इन सवालों का उत्तर राज्य बनने के बाद से नहीं खोजा जा सका हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग दोनों ने अपने अपनी सर्वे रिपोर्ट में उत्तराखंड शासन प्रशासन का ध्यान इस ओर आकृष्ट कराया है कि यहां पढ़ने वाले बच्चों के लिए जो गाइडलाइन जारी की हुई है, उसके अनुसार सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष प्रियंक कानूनगो ने हरिद्वार जिले में मदरसों में हिंदू बच्चे के पढ़ने और उनका आरटीई के जरिए एडमिशन कराने का मामला शासन के समक्ष रखते हुए जवाब तलब किया था।
आयोग ने सभी जिला अधिकारियों को भी दिल्ली तलब किया है और उनसे मदरसों की स्थिति के बारे में जानकारी मांगी है। पिछले छह महीने में जो जानकारी सामने आई है कि उत्तराखंड मदरसा बोर्ड में केवल 416 मदरसे पंजीकृत हैं, इनमे बच्चों की सुख सुविधाओं के बारे में क्या जानकारी है, इस पर मदरसा बोर्ड के पास कोई पुख्ता जानकारी नहीं है। बोर्ड के पास अपंजीकृत मदरसों के बारे में भी कोई जानकारी नहीं है। अगर उसके पास कोई जानकारी है भी तो वह उसे साझा नहीं करना चाहता। इन मदरसों की अनुमानित संख्या चार सौ से ज़्यादा बताई जा रही है।
जानकारी के मुताबिक जौनसार बावर जनजाति क्षेत्र में वन गुज्जरों के डेरे में भी देवबंद के मौलवी जाकर मदरसे खोल आए जब स्थानीय रुद्रसेना ने इसका विरोध किया तो ये मदरसे बंद हुए। इसी तरह नैनीताल जिले में भवाली में एक गैर मान्यता प्राप्त मदरसे के खिलाफ डीएम को कार्रवाई करनी पड़ी । तराई क्षेत्र के टांडा के जंगलों में वन गुज्जरों के यहां भी फर्जी मदरसे चलाने वाले मौलवी पहुंच गए और अवैध कब्जे कर लिए, यहां वन विभाग को कार्रवाई करनी पड़ी। देहरादून ने आजाद कॉलोनी का फर्जी मदरसा चलाने वाले मौलवी के खिलाफ देहरादून पुलिस ने एफआईआर दर्ज की है।
रुद्रपुर के मनसा में फर्जी मदरसे में छोटी छोटी बच्चियों के साथ अश्लील हरकते करने वाले मौलवी को उधम सिंह नगर पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेजा है। ऐसे कई मामले इन मदरसों में अपराधिक गतिविधियां के सामने आ रहे है। हल्द्वानी बनभूलपुरा हिंसा के पीछे अतिक्रमण कारियो द्वारा बनाया गया फर्जी मदरसा ही था जिसे बाद में मस्जिद बताते हुए प्रचारित किया गया और इस घटना को सांप्रदायिक रंग दिए जाने लगा।
बड़ा सवाल आखिर ये है कि आखिरकार राज्य का अल्पसंख्यक मंत्रालय इन फर्जी मदरसों के खिलाफ कार्रवाई करने में क्यों संकोच कर रहा है? खास बात ये है कि मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी स्वयं कह चुके हैं कि उत्तराखंड में मदरसों की जांच पड़ताल की जाएगी। मुख्यमंत्री के इस निर्देश पर शासन प्रशासन के अधिकारी कुछ दिनों तक सक्रिय होते हैं और फिर इसे ठंडे बस्ते में डाल देते हैं।
दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और असम जैसे भाजपा शासित राज्यों में सरकार ने गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को बंद कर दिया है, जो मान्यता प्राप्त चल रहे है उनका स्लेबस सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त है। बीजेपी शासित राज्यो में मदरसों के खिलाफ कारवाई के बाद बहुत से नए मदरसे उत्तराखंड में खुल गए, ऐसी जानकारी है कि यूपी से भगाए गए मौलवी अब उत्तराखंड सीमा में आकर अपने मदरसे चला रहे हैं, हरिद्वार उधम सिंह नगर और देहरादून जिलों में ही फर्जी मदरसों की बाढ़ सी आ गई है।
ये मदरसे यहां देव भूमि में कैसे पनप रहे हैं। इसका उदाहरण देहरादून आजाद कॉलोनी का अपंजीकृत मदरसा है, जहां बिहार और झारखंड के 52 बच्चे मिले, जिनका कोई सत्यापन नहीं किया गया। ये बच्चे कल उत्तराखंड के नागरिक बन जाएंगे। सहसपुर का विशाल मदरसा पिछले दिनों, पानी की टंकी और लाउडस्पीकर की वजह से चर्चा में आया। इस मदरसे ने नदी की तरफ सरकारी जमीन पर कब्जा किया हुआ है। इस पर जांच भी हुई लेकिन उसके बाद प्रशासन ने चुप्पी साध ली।
देहरादून जिले में बड़े-बड़े मदरसे बिना सरकारी अनुमति से खड़े हो गए हैं। यदि ये प्राधिकरण या जिला प्रशासन से नक्शा स्वीकृति लेकर अपना निर्माण करवाते तो इनकी पोल पट्टी खुल जानी थी क्योंकि इन मदरसा संचालकों के पास भूमि भवन संबंधी कोई दस्तावेज हैं ही नहीं। ज्यादातर सरकारी जमीनों पर कब्जे करके ही बनाए गए हैं। इन मदरसों में मस्जिदें भी हैं।
सुप्रीम कोर्ट के 2016 का निर्देश है कि बिना जिला प्रशासन की अनुमति से कोई भी नया धार्मिक स्थल नहीं बनेगा जो पुराना है उसका पुनर्निर्माण भी जिला अधिकारी की अनुमति से ही होगा। बावजूद इसके देहरादून हरिद्वार में मदरसे और फिर उनमें मस्जिदों का निर्माण हो रहा है और इस पर कोई रोक नहीं है। बहरहाल देवभूमि उत्तराखंड में अवैध मदरसों की बाढ़ सी आ गई है, इस पर अंकुश लगाने के लिए शासन प्रशासन को सख्त कदम उठाने होंगे, अन्यथा एक दिन ये प्रशासन के लिए ही सिरदर्द साबित होंगे।
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