देहरादून: नदियों के बारे में माना जाता है कि वो अपने पुराने रास्ते कभी नहीं भूलती और एक न एक दिन वो अपना रौद्र रूप धारण किए हुए फिर से अपनी जगह पर लौट आती है। राजधानी देहरादून की रिस्पना और बिंदाल नदियों के बारे में यही कहा जा रहा है।
इस साल की भारी बारिश ने ये संकेत दे दिए हैं जब इन नदियों का पानी रौद्र रूप लेकर मलिन बस्तियों के घरों में घुसने लगा।
ये दोनों बरसाती नदियां देहरादून के बीच शहर से होकर गुजरती है, देहरादून शहर और ग्रामीण क्षेत्र का सारा ड्रेनेज सिस्टम प्राकृतिक रूप से इन्हीं नदियों के साथ जुड़ा हुआ है। इन दोनों नदियों ने इस साल शासन प्रशासन को भी चेता दिया है कि उनके मार्ग में बाधक अवरोध हटाए जाएं।
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दरअसल, रिस्पना और बिंदाल नदियों के दोनों ओर बड़ी संख्या में आबादी ने अवैध रूप से अतिक्रमण किया हुआ है। 2016 से पहले और बाद में हजारों की संख्या में लोग नदी श्रेणी की भूमि पर अवैध रूप से बस गए और वोट बैंक की राजनीति की वजह ये अतिक्रमण अब नासूर बन गया है। देश के पर्यावरण को नियंत्रण करने वाली संस्था राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण (NGT) द्वारा पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड सरकार को बार-बार चेताया जाता रहा है कि उक्त नदियों के 50 से 100 मीटर तक फ्लड जोन है, इस भूमि अतिक्रमण से मुक्त कराई जाए।
शासन प्रशासन कुछ दिन गंभीर होता है इक्का-दुक्का अतिक्रमण हटाया जाता है जो कुछ समय बाद पुनः हो जाता है। NGT ने इस मामले में जिला प्रशासन के अधिकारियों की लापरवाही पर जुर्माना भी डाला था। ये अतिक्रमण जिला प्रशासन, एमडीडीए, नगर निगम, सिंचाई विभाग, वन विभाग के आपसी ताल मेल के अभाव में हटाया जाता है जो कि ज्यों का त्यों बना रहता है।
रिस्पना नदी में, चीड़ोवाला कंडोली मोहिनीरोड पुल, बलबीर रोड पुल, बाली विहार, राम नगर, भगत सिंह कॉलोनी, यानि बाल सुंदरी मंदिर से मोथरोवाला क्षेत्र में अतिक्रमण कर दर्जनों मलिन बस्तियां बन चुकी है इनमें बाहर से आए लोगों ने पहले कच्चे निर्माण किया फिर ये जमीन पच्चास 100 रुपए के स्टांप पेपर पर बिकती चली गई और अब इसने पक्की बस्ती का रूप ले लिया है। इसी तरह बिंदाल नदी को भी मालसी से डकोटा तक अवैध बस्तियों ने घेरा हुआ है।
देहरादून की इन नदियों की भूमि पर अतिमक्रमण का मामला नैनीताल हाई कोर्ट में भी चल रहा है। दरअसल, पिछली कांग्रेस सरकार ने नदी किनारे बन गई इन अवैध बस्तियों को 2016 में रेगुलाइज करने की बात कही थी। इस बारे में एक अध्यादेश भी जारी कर दिया गया था। किंतु बाद बीजेपी सरकार ने एक और अध्यादेश लाकर इस पर रोक लगा दी थी तब से ये मामला कोर्ट में है। इस रोक के पीछे मुख्य वजह एनजीटी ही है जो कि बार-बार सरकार को ये चेतावनी देता आया है कि इन नदियों किनारे घोषित फ्लड जोन को अतिक्रमण मुक्त कराया जाए।
सरकार भी कोर्ट में मामला विचाराधीन होने की वजह से 2016 के बाद बनी मलिन बस्तियों में जाकर अतिक्रमण हटाने का अभियान चलाती है। 2016 से पहले वाली बस्तियों पर कोई करवाई नहीं करती। उधर एनजीटी के निर्देशों से उत्तराखंड शासन भी परेशान है क्योंकि ये बस्तियां राजनीतिक दलों के वोट बैंक का रूप ले चुकी है आए दिन चुनाव होने की वजहों से अतिक्रमण हटाओ अभियान जैसे ही शुरू होता है राजनीतिक दलों के बड़े-बड़े नेताओं की सक्रियता बढ़ जाती है और ये अभियान तस्वीरों तक सीमित रह जाता है।
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बहरहाल, देहरादून की ये दोनों बरसाती नदियों ने इस साल अपनी वापसी के संकेत दे दिए हैं। इस बार एक दिन की भारी बारिश के पानी ने लोगों के घरों को छू लिया है और उन्हे चेता दिया है कि ये मेरा क्षेत्र है इसे खाली करना होगा। इस संकेत को अब अतिक्रमण कारी और शासन प्रशासन के लोग कितनी गंभीरता से लेते है ये तो आने वाला समय ही बताएगा।
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