शिविर में भोजन-पानी का कोई प्रबंध नहीं था। कुछ दिन वहां रहने के बाद हम सबको जबरदस्ती एक रेलगाड़ी में ठूंस दिया गया। उस समय मैं बहुत छोटी थी। हम सब बिना कुछ खाये-पीये बदहाल स्थिति में मेरठ पहुंचे। जगह-जगह रेलगाड़ी पूरे-पूरे दिन रुकी रहती थी।
बीरा बाली
मिग्याना (पाकिस्तान)
मैं अभी प्रह्लाद नगर मेरठ (उत्तर प्रदेश) में रह रही हूं। बंटवारे के समय जहां मेरा घर था, वहां पर हिन्दुओं और मुसलमानों की संख्या लगभग बराबर थी। जब वहां दंगा-फसाद होने लगा तो हम लोगों को अचानक वहां से जाने को कह दिया गया। घर से निकलकर परिवार के सभी लोगों को राहत शिविर में शरण लेनी पड़ी।
शिविर में भोजन-पानी का कोई प्रबंध नहीं था। कुछ दिन वहां रहने के बाद हम सबको जबरदस्ती एक रेलगाड़ी में ठूंस दिया गया। उस समय मैं बहुत छोटी थी। हम सब बिना कुछ खाये-पीये बदहाल स्थिति में मेरठ पहुंचे। जगह-जगह रेलगाड़ी पूरे पूरे दिन रुकी रहती थी।
अपना मकान, जमीन-जायदाद आदि अचानक छोड़कर हम सब को जान बचाकर भागना पड़ा था इसलिए किसी के पास कुछ नहीं था। उस समय वहां की स्थिति ऐसी थी कि जिसको याद कर आज भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हर जगह हिन्दुओं पर अत्याचार हो रहे थे। जब हम लोग यहां मेरठ पहुंचे तो हमारे पास जीवनयापन के लिए कुछ नहीं था।
हमारे बड़े भाई लकड़ी इकट्ठी करके उसे बेचकर रोजी-रोटी का जुगाड़ किया करते थे। यहां पर हमें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिली। हमने मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह जिंदगी आगे बढ़ाई। उस समय तो कभी-कभी एक वक्त का भोजन करके ही सो जाना पड़ता था। हम इतना असहाय महसूस करते थे कि क्या बताऊं।
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