देश के कई बड़े शिक्षा शास्त्रियों ने नीरा आर्य को देशभर में पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने की माग की है। अ.भा. साहित्य परिषद अलवर और आस्था साहित्य संस्थान अलवर के संयुक्त तत्वावधान में महाकवि बलवीर सिंह करुण की 26वीं कृति बलिदानी नीरा महाकाव्य के लोकार्पण अवसर पर विद्वानों ने क्रांतिकारी एवं आजाद हिंद फौज की प्रथम जासूस नीरा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए यह मांग उठाई।
यह कार्यक्रम राजस्थान के अलवर के निर्वाणा होटल के सभागार में संपन्न हुआ। 22 महाकाव्यों के सृजन के विश्व रिकॉर्डधारी महाकवि आचार्य देवेंद्र देव की अध्यक्षता में हुए इस कार्यक्रम में नीरा आर्य स्मारक एवं पुस्तकालय खेकड़ा उप्र के संस्थापक तेजपालसिंह धामा एवं मधु धामा को सम्मानित भी किया गया है। कार्यक्रम में हिन्दी के प्रसिद्ध साहित्यकार और राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर के डीन प्रो नंदकिशोर पांडेय, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रो डॉ नीलम राठी, गोरखपुर विश्वविद्यालय से संबद्ध प्रो. डॉ चारुशीला सिंह, वीरांगना कविता सामोता जी, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य एवं महाकवि बलवीरसिंह करुण, पृथ्वी सिंह मील, ओज के राष्ट्रीय स्वर विनीत चौहान ने नीरा आर्य को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाए जाने की सरकार से मांग की।
उल्लेखनीय है कि नीरा आर्य आज़ाद हिन्द फ़ौज की स्वतंत्रता सेनानी रही थी और दानवीर सेठ छाजूराम लांबा इनके धर्म पिता थे। कालपानी की सजा से लेकर अनेक घोर यातनाएँ इन्होंने झेली थीं। बलवीर सिंह करुण के महाकाव्य बलिदानी नीरा से इनका व्यक्तित्व हम सबके सामने आ पाया है। दक्षिण भारत में कक्षा 4 की हिन्दी की पुस्तक में नीरा आर्य के जीवन पर एक अध्याय पढ़ाया जाता है, लेकिन विद्वानों ने देशभर में नीरा आर्य के जीवन को छात्रों को पढ़ाने की वकालत की है।
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