बांग्लादेश में एक बार फिर से हिंसा भड़क गई है और धार्मिक पहचान को लेकर हिंदुओं पर हमले हो रहे हैं। पाकिस्तान से मुक्त होने के बाद बांग्लादेश ने गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर के गीत आमार सोनार बांग्ला को राष्ट्रगान बनाया था। आज (7 अगस्त) गुरुदेव की पुण्यतिथि है। 7 अगस्त 1941 को उन्होंने कोलकाता में अंतिम सांस ली थी। जितना मान उन्हें भारत में मिलता है, उतना ही अभी तक उन्हें बांग्लादेश में मिलता आया है।
भारत और बांग्लादेश को भाषाई अस्मिता भी एक साथ जोड़े रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रही है। इसी आधार पर शेख मुजीबुर्रहमान ने संघर्ष किया था। रवींद्रनाथ टैगोर ने आमार सोनार बांग्ला की रचना वर्ष 1905 में तब की थी जब धर्म के आधार पर अंग्रेजों ने स्वतंत्रता से पहले बंगाल का विभाजन किया था। गुरुदेव ने इसे बंगाल में हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता बनाए रखने के लिए और बंगाल के विभाजन को रोकने के लिए लिखा था।
दरअसल, तत्कालीन संयुक्त बंगाल जिसमें बिहार और ओडिशा भी सम्मिलित थे, वह काफी बड़ा प्रांत था। इसको लेकर अंग्रेजी प्रशासन का कहना था कि इतने बड़े प्रांत का प्रशासन ठीक से नहीं चल सकता है, तो इसे इस प्रकार विभाजित कर दिया जाए कि जिन जिलों की उपेक्षा होती है (पूर्वी बंगाल के जिले), उन्हें अलग कर दिया जाए। यह विभाजन धर्म के आधार पर ही प्रतीत हो रहा था। क्योंकि पूर्वी बंगाल के वे जिले जिनकी उपेक्षा हो रही थी, वे मुस्लिम बहुल थे। उत्तरी और पूर्वी बंगाल के राजशाही, ढाका और चटगांव संभाग में आने वाले 15 जिले असम में मिलाकर अलग कर दिए गए और बिहार और ओडिशा को पुराने बंगाल में रखा गया।
पूर्वी बंगाल वाले हिस्से में जहां मुस्लिम बहुसंख्यक थे तो वहीं ओडिशा, बिहार और पश्चिम बंगाल वाले हिस्से में हिन्दू बहुसंख्यक थे। हालांकि ढाका का नवाब पहले इस विभाजन के खिलाफ था, मगर बाद में जब यह अहसास हुआ कि इस विभाजन से मुस्लिमों को लाभ होगा, तो विरोध उतना मुखर नहीं रह गया था, बल्कि समर्थन ही था। परंतु इस विभाजन के खिलाफ हिन्दू स्वर बहुत मुखर था। एकता के भाव को उत्पन्न करने के लिए रवींद्रनाथ टैगोर ने “आमार सोनार बांग्ला” की रचना की, जिसमें उन्होंने बंगाल की सुंदरता का वर्णन किया है। बंगाल की तुलना सोने के बंगाल से की है। बंगाल की शोभा, बंगाल के स्नेह की बात की है। और यह भी लिखा है कि वह बंगाल के चेहरे पर उदासी नहीं देख सकते हैं।
और यह उदासी इसलिए गुरुदेव ने देखी थी क्योंकि उनकी प्यारी बंगभूमि का विभाजन हो रहा था। मगर दुर्भाग्य की बात यही है कि वर्ष 1905 में जो विभाजन हुआ, वह तो वर्ष 1911 में इन विरोध प्रदर्शनों के बाद वापस हो गया था और बंगाल एक बार पुन: अपने उसी सांस्कृतिक स्वरूप में आ गया था। परंतु क्या वास्तव में ऐसा हुआ था? इस विभाजन को मुस्लिमों के लिए बेहतर माना गया था।
मुस्लिम लीग की स्थापना में बंगाल विभाजन का ही सबसे बड़ा योगदान था। क्योंकि पूर्वी बंगाल के अलग होने पर मुस्लिम समुदाय को लाभ पता चले थे और वर्ष 1906 में ढाका के नबाव ख्वाजा सलीमुल्लाह ने अखिल भारतीय मुस्लिम शिक्षा सम्मेलन की सालाना बैठक में यह प्रस्ताव दिया कि मुस्लिमों की एक पार्टी का गठन होना चाहिए, जो ब्रिटिश भारत में मुस्लिमों के हितों की रक्षा करे। और फिर लाहौर के एक प्रभावी मुस्लिम नेता सर मियां मुहम्मद शफी ने सुझाव दिया कि राजनीतिक दल का नाम ‘ऑल इंडिया मुस्लिम लीग’ रखा जाए। प्रस्ताव को सम्मेलन ने सर्वसम्मति से पारित कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप ढाका में ऑल इंडिया मुस्लिम लीग का आधिकारिक गठन हुआ। यह भी कहा जाता है कि मुस्लिमों के एक बड़े वर्ग ने बंगाल विभाजन के विरोध में चल रहे आंदोलन में भाग नहीं लिया था और वर्ष 1907 में बंगाल में भयानक दंगे हुए और उसके बाद अंग्रेजों ने वर्ष 1909 में हिन्दू और मुस्लिमों के लिए पृथक निर्वाचन की व्यवस्था कर दी।
जहां एक तरफ सांस्कृतिक रूप से हिन्दू बंकिम चंद्र चटर्जी के वंदे मातरम् और गुरुदेव रवींद्र नाथ टैगोर के “आमार सोनार बांग्ला” के माध्यम से सांस्कृतिक रूप से लोगों को जोड़ रहे थे तो वहीं उसी दौरान बंगाल ही क्या देश के विभाजन के भी बीज बोए जा रहे थे।
हालांकि बंगाल का विभाजन 1911 मे रद्द हो गया और फिर भाषाई आधार पर प्रांतीय इकाइयों का गठन हो गया, परंतु विभाजन के रद्द होने से पूर्वी बंगाल अर्थात वर्तमान बांग्लादेश के वे लोग प्रसन्न नहीं थे जिन्हें इस विभाजन का लाभ मिला था।
अंतत: बंगाल का विभाजन एक बार फिर हुआ। वर्ष 1947 में पाकिस्तान के रूप में भारत से मुस्लिम बहुल प्रांत जब अलग होकर नया देश बना तो बंगाल का विभाजन फिर हुआ और विडंबना ही इसे कह सकते हैं कि विभाजन विरोधी एक गीत उस देश का राष्ट्रगान बना, जो एक और विभाजन के बाद भाषाई आधार पर बना। अर्थात पाकिस्तान से टूटकर बांग्लादेश बना।
गुरुदेव को यह अनुमान नहीं रहा होगा कि जिस गीत को वह अपने प्रिय बंगाल के विभाजन को रोकने के लिए लिख रहे हैं, जिस भूमि के विभाजन को रोकने के लिए वे हिन्दू और मुस्लिमों के बीच राखी बँधवा रहे थे, वही भूमि एक बार नहीं, बार-बार विभाजित होगी। कभी धर्म के नाम पर, कभी भाषा के नाम पर और आज फिर वह भूमि रो रही है। भूमि इसलिए रो रही है क्योंकि जिनके मध्य परस्पर एकता के लिए राखी बँधवाई थी गुरुदेव ने, वही अब शिकारी और शिकार की भूमिका में सामने खड़े हैं।
अल्पसंख्यक मुट्ठी भर हिन्दू बहुसंख्यक मुस्लिमों की दया पर निर्भर हैं। नहीं पता कि आज के समय में गुरुदेव कैसे कह पाते “आमार सोनार बांग्ला”! सोने जैसा बंगाल 1905 के विभाजन को निरस्त करने के बाद कभी भी जुड़ नहीं पाया।
उन्होंने लिखा था कि मेरी माँ, यदि उदासी तुम्हारे चेहरे पर आती है, तो मेरे नयन भी आंसुओं से भर जाते हैं।
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