केरल में वायनाड में प्रकृति के तांडव के विषय में पूरा देश जानता ही है और साथ ही यह भी संसद में बहस के दौरान पता चला था कि कैसे केरल सरकार ने संबंधित प्राधिकरणों की बात समय पर नहीं मानी और मानवीय उपेक्षा के कारण भी इतनी बड़ी जनहानि हुई। वहीं अब इसे लेकर केरल के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने एक पत्र जारी किया था, जिसमें यह आदेश दिया गया कि “वैज्ञानिक समुदाय को निर्देश दिया जाता है, कि वह मीडिया में अपने विचार और अध्ययन रिपोर्ट को साझा करने से बचें। यदि आपदा प्रभावित क्षेत्र में कोई भी अध्ययन किया जाता है, तो उसके लिए केरल आपदा प्रबंधन प्राधिकरण से इसकी अनुमति लेनी होगी।“
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इस नोट को कई पत्रकारों ने साझा किया है। पत्रकार पल्लवी घोष ने इस आदेश को साझा किया और साथ ही उन्होंने यह भी लिखा कि आखिर वे “सिलेक्टिव गुस्से” से क्यों हैरान नहीं हैं?”
हालांकि सोशल मीडिया पर इसका व्यापक विरोध हुआ। इसे लेकर राजनीतिक विरोध भी हुआ। भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता शहजाद पूनावाला ने एक्स पर लिखा कि केरल सरकार ने तालिबानी फतवा/चुप रहने का आदेश जारी किया, जिसमें वैज्ञानिकों को वायनाड आपदा के स्थानों पर जाने से प्रतिबंधित कर दिया है। और अब दबाव के अंतर्गत उन्होनें वह आदेश वापस ले लिया। उन्होनें प्रश्न किया कि केरल सरकार इस मानव निर्मित आपदा के विषय में क्या नहीं जानने देना चाहती है?
शहजाद पूनावाला ने आगे लिखा कि केरल सरकार ने पहले केंद्र सरकार द्वारा 23, 24,25,26 जुलाई को दी गई चेतावनी को अनदेखा किया।
उस क्षेत्र के पारिस्थितिकी दृष्टि से संवेदनशील होने के बावजूद बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण की अनुमति दी गई। अवैध रिसॉर्ट्स बने और राज्य सरकार और सांसद ने भी इसे होने दिया।
तेजस्वी सूर्या ने भी इस आदेश को एक्स पर साझा किया और लिखा कि आपातकाल और सेंसरशिप कम्युनिस्टों के पास अपने आप आ जाती हैं।
केरल सरकार ने एक परेशान करने वाला आदेश पारित किया है, जिसमें उसने विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थानों को क्षेत्र का दौरा करने और आपदा प्रभावित क्षेत्रों के विवरण और रिपोर्ट साझा करने से रोक दिया गया है। राज्य सरकार को डर है कि इस तरह की गतिविधियों से यह उजागर हो जाएगा कि वायनाड भूस्खलन एक कम्युनिस्ट सरकार द्वारा बनाई गई आपदा है, जो क्षेत्र के परिदृश्य की संवेदनशीलता के बारे में कई एजेंसियों द्वारा दी गई प्रारंभिक चेतावनियों की अनदेखी करने से हुई।
वायनाड़ आपदा को लेकर जहां लोग चर्चा कर रहे हैं कि जो जन हानि हुई है, उसके पीछे मानव निर्मित कारण हैं। वहाँ पर मानव का वनों में प्रवेश बढ़ता जा रहा है और वृक्षों एवं जंगली पशुओं की संख्या भी तेजी से कम होती जा रही है।
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onmanorama के अनुसार केरल राज्य आपदा प्रबंधन के मुख्य सचिव एवं राज्य रिलीफ़ कमिश्नर टिंकू बिसवाल ने इस निर्णय के विषय में कहा था कि यह कदम आपदा प्रबंधन प्रोटोकाल को ध्यान में रखते हुए उठाया गया था। उन्होनें कहा कि बचाव एवं राहत कर्मियों के अतिरिक्त हम आपदा स्थल पर अन्य लोगों को आने को हतोत्साहित kaरते हैं और जहां भी संभव हो, हम उनकी गतिविधियों को प्रतिबंधित करते हैं।
मगर इस आदेश की सोशल मीडिया पर आलोचना होने के कारण इस आदेश को वापस ले लिया गया। केरल के मुख्यमंत्री पिन्नरई विजयन ने मुख्य सचिव वी वेणु से कहा कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण वाला विवादित आदेश वापस ले लिया जाए। गुरुवार रात को विजयंन ने कहा कि राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का यह आदेश कि वैज्ञानिक संस्थान और वैज्ञानिक आपदा प्रभावित क्षेत्रों में न जाएं और अपने विचार न व्यक्त करें, भ्रामक है। उन्होनें कहा कि राज्य की ऐसी कोई नीति नहीं है।
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