विश्व मे चल रहे दो बड़े युद्धों, रूस-यूक्रेन व इज़राइल-फ़िलिस्तीन, के विषय में अमेरिका की दोनों पार्टियाँ डेमोक्रेट और रिपब्लिकन भिन्न मत रखती हैं। हाल ही में ट्रम्प ने फ़िलिस्तीन को चेतावनी दी कि वह उसके राष्ट्रपति बनने से पहले युद्ध समाप्त कर दे, नहीं तो उनको पछताना पड़ेगा। बाइडन (अब कमला हैरिस राष्ट्रपति पद की उम्मीदवार हैं) की पार्टी इज़राइल से नाराज़ लगती है कि इज़राइल युद्ध बन्द करने के प्रयासों में अड़चन डाल रहा है। एक विषय गर्भपात का है, जिसके पक्ष और विरोध में अमेरिकी जनमानस बंटा हुआ है। परिवार में बच्चों का न होना भी मुद्दा बनता जा रहा है।
एक शब्दावली प्रचलित है ‘कैट लेडीज़’, उन महिलायें के लिए जो सम्पन्न हैं और अपना समय और धन बिल्लियों के पालन में लगाती हैं। ट्रम्प के उपराष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जेम्स डेविड वान्स कई बार कह चुके हैं कि अकेली रहने वाली संतानहीन कैंट लेडीज़ के कारण अमेरिकी समाज जीवन में दुख बढ़ रहा है। डेमोक्रेट इस विषय को लेकर ट्रम्प को घेर रहे हैं। डेमोक्रेटिक पार्टी ने दो और मुद्दे बनाए हैं कि ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने से लोकतन्त्र को ख़तरा है और ट्रम्प संविधान को बदल देंगे। पाठकों को इन से भी भारत के लोकसभा के चुनावों से समानता दिख रही होगी। अनेकों स्थानीय व क्षेत्रीय विषय अलग हो सकते हैं परन्तु वर्षों के अनुभव से अमेरिकी मतदाता विवेकशील बन चुका है और लगता है साधारणतया राष्ट्रीय मुद्दों पर ही इस चुनाव में मतदान करेगा।
भारत के संदर्भ में अमेरिका की दोनों पार्टियों में भारत के पक्षधर व घोर विरोधी भी हैं। जब ट्रम्प राष्ट्रपति थे तो भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ उनकी औपचारिक व अनौपचारिक मित्रता सर्वविदित है। बाइडन के कार्यकाल में भी भारत-अमेरिका की मित्रता गहरी हुई है। यह भी तथ्य जग ज़ाहिर है कि डेमोक्रेटिक पार्टी पाकिस्तान को अधिक आश्रय देती है और ट्रम्प ‘अमेरिका फ़र्स्ट’ के जनक व घोर समर्थक हैं। दोनों ही पार्टियां चीन के प्रभाव को सीमित करने के लिए समर्थ व शक्तिशाली भारत बनाने में सहयोग करने के इच्छुक हैं।
भारतीय मूल के अमेरिकी दोनों ही पार्टियों में हैं, और यह भी तय है कि भारतीय मूल के अमेरिकी वहाँ के शीर्ष स्थानों पर हैं और भविष्य में उनका प्रभाव बढ़ना ही है। सारांश में यह कहा जा सकता है कि नवम्बर पाँच 2024 तक खूब प्रचार होगा और दोनों में से कोई भी 2025 से 2029 तक अमेरिका का राष्ट्रपति बन सकता है।
भारत की तैयारी ऐसी है कि कोई भी अमेरिका का राष्ट्रपति बने भारत के हितों की रक्षा होगी ही। अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका व भारत में एक मत हो न हो पर सहयोग व आपसी भाईचारा बढ़ेगा ही। हमारे प्रधानमंत्री व विदेशमन्त्री की जोड़ी यह बार बार सिद्ध कर चुकी है।
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