उन दिनों मैं प्रोफेसर मूर्ति के मार्गदर्शन में भरतपुर में आईएएस की तैयारी कर रहा था। उनके दोनों बेटे भी मेरे साथ थे। हमारा पहला पाठ समाचार पत्रों के संपादकीय पढ़ना होता था।
26 जून, 1975 को आगरा से प्रकाशित एक समाचार पत्र जब सुबह आया तो देखा कि उसका संपादकीय कॉलम खाली था। दोपहर होते-होते पता चला कि विपक्ष के सभी राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रात में ही उठा लिया गया है। हम जैसे युवा राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा विद्यार्थी परिषद से प्रेरित होकर समाज की सेवा के लिए प्रशासनिक सेवा में जाना चाहते थे। अब हमारे सामने प्रश्न था कि इस परिस्थिति में अपनी उपयोगिता व भूमिका कैसे तय कर पाएंगे।
इन बदली परिस्थितियों में मुझे विद्यार्थी परिषद के नगर मंत्री का दायित्व निर्वाह करने के लिए कहा गया। सतीश भारद्वाज जिला मंत्री थे। गुलाब बत्रा हमारे मार्गदर्शक थे तथा प्रमोद जैन, कृष्णा पम्पू, कृष्ण कुमार, अजमेर सिंह आदि की टोली थी। प्रथम श्रेणी प्राप्त विद्यार्थियों को सम्मानित करने के आधार पर स्कूल व कॉलेज विद्यार्थियों के साथ संवाद बनाया तथा परोक्ष रूप से प्रशासन के संज्ञान में लाने के लिए जिलाधिकारी श्री नायर को मुख्य अतिथि बनने का निमंत्रण दिया। स्वीकृति तो होनी ही नहीं थी, पर कार्यक्रम हो गया। उस वर्ष वंदेमातरम् गीत का शताब्दी वर्ष था। क्रांतिकारी श्री कक्कड़ को कार्यक्रम की अध्यक्षता के लिए तैयार किया।
आरडी गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या से मिलकर उनके विद्यालय की बच्चियों को तैयार करने के लिए कहा व स्थान सुभाष चौक, भरतपुर रखा गया। पहले वाली नीति के तहत जिला कलक्टर एवं पुलिस अधीक्षक से क्रमश: मुख्य अतिथि एवं अध्यक्षता के नाते लिखित में प्रार्थनापत्र देकर निवेदन किया। आने की सहमति तो मिलनी ही नहीं थी लेकिन वंदेमातरम् गीत, जिसे गाकर हजारों स्वतंत्रता सेनानी फांसी के फंदे पर झूल गए थे, की शताब्दी मनाने को वे मना भी नहीं कर पाए। आयोजन प्रारंभ हुआ तो छात्र नेताओं ने पुलिस बुला ली। हमें जब कार्यक्रम रोकने के लिए कहा, तो मैंने कहा कि हमने प्रशासन से सहमति ले ली है। आप चाहें तो अधिकारियों से हमारी बात करा सकते हैं।
मैं कार्यक्रम जारी रखने का इशारा करके पुलिस के साथ निकट के पोस्ट आफिस में चला गया। संयोग से फोन पर एसपी व कलक्टर उपलब्ध नहीं हो पाए, तो अतिरिक्त कलक्टर से बात हुई और उन्हें मैंने दोनों अधिकारियों से हुई बात का ब्योरा दिया। इसी बीच में वह संक्षिप्त सार्वजनिक कार्यक्रम पूर्ण हो गया।
अगले चरण में संघ की ओर से यह तय किया गया था कि जनजागृति के लिए साहित्य प्रकाशन कर उसका वितरण गुप्त रूप से अंधेरे में दुकानों के दरवाजों / शटर के नीचे से डाल दिया जाए। इसका दायित्व ज्ञानदेव आहुजा, जिन्होंने कम्पोजिंग करने का काम रामखिलाड़ी रावत को दिया था, हाथ वाली छोटी प्रेस कमरे में ही लगाई थी। वितरण हेतु मुझे यह सामग्री बयाना, गंगापुर सिटी, हिन्डौन सिटी, सवाई माधोपुर के निर्देशित स्थानों तक पहुंचानी होती थी।
इसी बीच में एक दुर्घटना भी हो गई। बयाना में कैला प्रसाद के अवयस्क पुत्र धन्ना, जो पर्चे डालते पकड़ा गया, को पुलिस ने पर्चे का स्रोत बताने के लिए बहुत मारा व प्लास से उसके नाखूनों को इतना दबाया कि उसकी उंगलियां लंबे समय तक काली बनी रहीं। इस घटना का रोष बयाना में बहुत हुआ।
संघ द्वारा सत्याग्रह चलाया गया, जिसमें अनेक कार्यकर्ताओं ने सत्याग्रह कर क्रमानुसार प्रतिदिन कुम्हेर गेट से माला पहन कर यात्रा प्रारंभ की और लक्ष्मण मंदिर तक आकर गिरफ्तारी दी। सत्याग्रह से लोगों का डर धीरे-धीरे निकलने लगा। जब आपातकाल उठाया गया तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा लोकतांत्रिक युवा मोर्चा बनाया गया। इसमें सरनासिंह संधू को अध्यक्ष, काशमीर अरोड़ा को मंत्री व मुझे संगठन मंत्री का दायित्व दिया।
मुझे वैर, भुसावर, बयाना व रूपवास का दायित्व मिला। हम अपने कॉलेज के विद्यार्थियों से संपर्क कर हर कस्बे में बैठक करते थे तथा चादर बिछाकर धन संग्रह भी करते थे जिससे हमारे कार्यक्रम सफल भी हुए व जागरण भी हुआ। चुनावों की घोषणा बाद में हुई।
(लेखक राष्ट्रीय सिख संगत के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं)
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