लोकसभा चुनाव परिणामों में पंजाब ने इस बार भी देश को चौंकाया है। राज्य के लोगों ने आम आदमी पार्टी के नेतृत्व वाली भगवंत मान सरकार को नकार दिया है। भाजपा पंजाब में शून्य पर है परन्तु राज्य में पहली बार 13 सीटों पर चुनाव लड़ने के कारण वोट प्रतिशत आशानुरूप बढ़ा है। आज चाहे इंडी गठजोड़ में आम आदमी पार्टी व कांग्रेस केंद्र में गलबहियां डाले दिखाई दे रहे हैं परंतु भविष्य में पंजाब से दोनों में राजनीतिक टकराव और बढ़ेगा।
दिल्ली, हरियाणा व चंडीगढ़ में कांग्रेस व आम आदमी पार्टी के बीच गठजोड़ होने के बावजूद पंजाब में दोनों दल एकदूसरे के खिलाफ चुनाव लड़े। कांग्रेस यहां से सत्ताविरोधी मतों को अपनी झोली में डालना चाहती थी जिसमें वह सफल भी हुई परन्तु आम आदमी पार्टी की सरकार मात्र सवा दो साल के कार्यकाल में ही धड़ाम होती दिखाई दी। 2022 के विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 42 प्रतिशत मतों के साथ राज्य की 117 में से 92 सीटों पर जीत मिली थी। मात्र सवा दो साल में पार्टी का मत प्रतिशत गिर कर 26 प्रतिशत पर आ टिका और राज्य में 13-0 का नारा देने वाली आप को केवल 3 सीटों पर संतोष करना पड़ा है। यह हालत तब है जब मुख्यमंत्री भगवंत मान ने अपने पांच मंत्रियों व इतने ही विधायकों को चुनाव मैदान में उतारा। इनमें से केवल एक मंत्री और एक विधायक ही जीत दर्ज कर पाए हैं। इसका अर्थ लगाया जा रहा है कि मुफ्त बिजली, कथिततौर पर बेहतर स्वास्थ्य व शिक्षा सेवाएं देने के बावजूद राज्य की जनता ने मुफ्तखोरी की राजनीति को नकार दिया है। कांग्रेस ने चाहे इन चुनावों में मत प्रतिशत की दृष्टि से आप के जितने ही वोट (26.3 प्रतिशत) वोट हासिल किए हैं परंतु बहुकोणीय मुकाबले के चलते 7 सीटों पर जीत हासिल की, जो पिछले लोकसभा चुनावों के मुकाबले एक सीट कम है।
इस बार लोकसभा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (बादल) को एक सीट पर जीत हासिल हुई है परन्तु उसका मत प्रतिशत पिछली बार के 27.45 प्रतिशत के मुकाबले घट कर 13.42 प्रतिशत रह गया है। इसी कारण दस सीटों पर शिअद अपनी जमानत भी नहीं बचा पाया है। भाजपा पहले गठबंधन कोटे से 3 सीटों पर चुनाव लड़ती रही है और इसका विगत लोकसभा चुनाव में मत प्रतिशत 9.63 से बढ़ कर 18.56 प्रतिशत हो गया है। भाजपा इस बार अपना खाता भी नहीं खोल पाई जबकि 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने गुरदासपुर व होशियारपुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों से जीत हासिल की थी।
पंजाब से लोकसभा चुनाव में चाहे भाजपा के हाथ खाली रहे हैं परंतु पार्टी के लिए भविष्य के द्वार खुलते दिखाई दे रहे हैं। भाजपा ने जालंधर, गुरदासपुर व लुधियाना में कांग्रेस को सीधी-सीधी टक्कर दी है और छह सीटों पर तीसरे नंबर पर रही है। पार्टी ने औसतन हर सीट पर लगभग दो लाख वोट हासिल किए हैं। भाजपा को इस चुनाव में पंजाब से 2500877 वोट मिले हैं जो अकाली दल बादल से 692040 अधिक हैं। अकाली दल को दस सीटों पर अपनी जमानत गंवानी पड़ी, जबकि भाजपा के 9 प्रत्याशी अपनी जमानत बचा पाए और तीन पर तो उनका सीधा-सीधा मुकाबला विजेता प्रत्याशियों से रहा। छह सीटों पर भाजपा तीसरे, एक सीट पर चौथे व तीन सीटों पर पांचवें स्थान पर रही।
भाजपा का यह प्रदर्शन उस समय रहा जब किसानों ने भाजपा प्रत्याशियों को गांवों में घुसने नहीं दिया और प्रचार के दौरान व्यवधान डालते रहे। पटियाला से पार्टी की प्रत्याशी परनीत कौर, फरीदकोट से हंसराज हंस, जालंधर से सुशील कुमार रिंकू, बठिंडा से परमपाल कौर, अमृतसर से तरनजीत सिंह संधू सहित लगभग हर प्रत्याशी को गांवों में प्रचार करने से रोका गया। इन परिस्थितियों में पार्टी के बूथ लगने या पोलिंग एजेंट होने की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती थी।
भाजपा की धीमी गति से बढ़ रही स्वीकार्यर्ता के चलते पंजाब में 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव में इसे तीसरे विकल्प के रूप में देखा जाने लगा है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अगर इस चुनाव में अकाली दल बादल और भाजपा का गठजोड़ हो जाता तो चुनाव परिणाम आश्चर्यजनक होते क्योंकि वर्तमान चुनाव परिणामों के अनुसार अगर लुधियाना, फिरोजपुर, पटियाला, अमृतसर में अकाली दल बादल और भारतीय जनता पार्टी को मिले वोटों को जोड़ दिया जाता है तो वह विजेता उम्मीदवार से अधिक हो जाते हैं। गठजोड़ होने पर न केवल इन चार सीटों का लाभ होता बल्कि इसका असर अन्य सीटों पर भी पड़ सकता था।
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