इलाहाबाद उच्च न्यायालय में मथुरा के श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्जिद विवाद के संबंध में दायर 18 मुकदमों की सुनवाई पूरी हो गई। उच्च न्यायालय ने निर्णय सुरक्षित रख लिया है। सभी मुकदमों में यह प्रार्थना की गई है कि मथुरा में कटरा केशव देव मंदिर के साथ 13.37 एकड़ के परिसर से शाही ईदगाह मस्जिद को हटाया जाय। इसके साथ यह भी प्रार्थना की गई है कि मौजूदा ढांचे को गिराया जाए।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने मस्जिद समिति और हिंदू वादियों की बहस को सुनने के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायालय ने इस साल फरवरी में मस्जिद समिति की आपत्तियों पर सुनवाई शुरू की थी। न्यायालय के समक्ष, प्रबंध ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह (मथुरा) की समिति ने मुख्य रूप से तर्क दिया कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित मुकदमों पर उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के अन्तर्गत केस की सुनवाई प्रतिबंधित है। मस्जिद समिति की ओर से कहा गया कि उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित अधिकांश मुकदमों में वादी भूमि के स्वामित्व का अधिकार मांग रहे हैं, जो 1968 में श्री कृष्ण जन्म स्थान सेवा संघ और शाही मस्जिद ईदगाह के प्रबंधन के बीच हुए समझौते का विषय था। जिसके तहत विवादित भूमि को विभाजित किया गया और दोनों समूहों को एक-दूसरे के क्षेत्रों (13.37 एकड़ के परिसर के भीतर) से दूर रहने को कहा गया। हालांकि, ये मुकदमे कानून (उपासना स्थल अधिनियम 1991, परिसीमा अधिनियम 1963 और विशिष्ट राहत अधिनियम 1963) के तहत पोषणीय नहीं है।
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता ने कहा कि वादी ने वाद में 1968 के समझौते को स्वीकार किया है और इस तथ्य को भी स्वीकार किया है कि भूमि (जहां ईदगाह बनी है) का कब्जा मस्जिद प्रबंधन के नियंत्रण में है और इसलिए यह वाद सीमा अधिनियम के साथ-साथ उपासना स्थल अधिनियम द्वारा भी वर्जित होगा।
हिंदू पक्षकारों ने कहा कि शाही ईदगाह के नाम पर कोई संपत्ति सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है और ये लोग उस पर अवैध रूप से काबिज हैं। अगर उक्त संपत्ति वक्फ की संपत्ति है तो वक्फ बोर्ड को बताना चाहिए कि विवादित संपत्ति किसने दान की है। यह भी कहा गया कि इस मामले में उपासना अधिनियम, परिसीमा अधिनियम और वक्फ अधिनियम लागू नहीं होगा। किसी भी संपत्ति पर अतिक्रमण करना, उसकी प्रकृति बदलना और बिना स्वामित्व के उसे वक्फ संपत्ति में परिवर्तित करना वक्फ की प्रकृति है और इस तरह की प्रथा की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह भी तर्क दिया गया है कि इस मामले में वक्फ अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होंगे क्योंकि विवादित संपत्ति , वक्फ संपत्ति नहीं है। यह भी तर्क दिया गया कि प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम 1958 के प्रावधान विवादित संपत्ति के पूरे हिस्से पर लागू होते हैं। इसकी अधिसूचना 26 फरवरी 1920 को जारी की गई थी और अब इस संपत्ति पर वक्फ के प्रावधान लागू नहीं होंगे।
उल्लेखनीय है कि पूरा विवाद मथुरा में मुगल आक्रांता औरंगजेब के समय की शाही ईदगाह मस्जिद से जुड़ा है। जिसके बारे में कहा जाता है कि इसे भगवान कृष्ण के जन्मस्थान पर स्थित मंदिर को तोड़कर बनाया गया था। 1968 में श्री कृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान, जो मंदिर प्रबंधन प्राधिकरण है, और ट्रस्ट शाही मस्जिद ईदगाह के बीच एक ‘समझौता’ हुआ था। जिसके तहत दोनों पूजा स्थलों को एक साथ संचालित करने की अनुमति दी गई थी। मंदिर पक्ष का तर्क है कि समझौता धोखाधड़ी से किया गया था और कानून में अमान्य है। विवादित स्थल पर पूजा करने के अधिकार का दावा करते हुए, उनमें से कई ने शाही ईदगाह मस्जिद को हटाने की मांग की है।
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