‘वाल्मीकि रामायण’ के अनुसार श्रीराम के जन्म के सात वर्ष एक माह बाद वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को इस धरा पर माँ जानकी का अवतरण हुआ था। शास्त्रीय कथानक के अनुसार मिथिला को भीषण अकाल से बचाने के लिए पुष्य नक्षत्र में जब महाराजा जनक यज्ञ भूमि को हल से जोत रहे थे, उसी समय भूमि से निकले मिट्टी के एक कलश में माता सीता उन्हें शिशु अवस्था में प्राप्त हुई थीं। चूंकि हल की नोक को ‘सीत’ कहा जाता है, इसलिए राजा जनक ने उस बालिका का नाम ‘सीता’ रख दिया। चूँकि माँ सीता का प्राकट्य भारत की पवित्र मिट्टी से हुआ था, इसलिए वे ‘भूमिजा’ व ‘भूमिसुता’ भी कहलाती हैं। विदेहराज जनक की अतिशय दुलारी होने के कारण वे ‘जानकी’ व ‘जनकनंदिनी’ तथा मिथिलावासियों को अकाल की विभीषिका से मुक्ति दिलाने के कारण ‘मिथिलेशकुमारी’ के नाम से भी लोकविख्यात हुईं।
मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम तथा माता जानकी के अनन्य भक्त तुलसीदास ‘रामचरितमानस’ के बालकांड के प्रारंभिक श्लोक में सीता जी को ब्रह्म की तीनों क्रियाओं उद्भव, स्थिति व संहार की संचालक शक्ति कहकर उनकी वंदना करते हैं-
उद्भव स्थिति संहारकारिणीं हारिणीम्।
सर्वश्रेयस्करीं सीतां नतोऽहं रामवल्लभाम्॥
वैदिक मनीषा कहती है कि माता सीता प्रकृति की क्रिया-शक्ति, इच्छा-शक्ति और ज्ञान-शक्ति तीनों के समन्वित स्वरूप में धराधाम में अवतरित हुई थीं। मां सीताजी ने ही हनुमानजी को उनकी सेवा-भक्ति से प्रसन्न होकर अष्ट सिद्धि तथा नव निधियों का स्वामी बनाया था। रामकथा के आदि सर्जक ऋषि वाल्मीकि ने भी माँ सीता जी की उत्पत्ति, पालन और संहार करने वाली तथा समस्त क्लेशों को हरने वाली एवं जगत का कल्याण करने वाली ‘रामवल्लभा’ कहकर पूजन किया है। माता सीता की जीवनयात्रा एक आदर्श नारी, पतिव्रता पत्नी, संस्कार संपन्न मातृत्व एवं अनूठे प्रेम व बलिदान की महागाथा है।
पुनौरा धाम में मनाया जाता है माता सीता का प्राकट्योत्सव
बिहार के सीतामढ़ी जिले के पुनौरा गांव में मां जानकी जन्मभूमि मंदिर में नवमी तिथि को माता सीता का प्राकट्योत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। इसे पुनौरा धाम के नाम से भी जाना जाता है। मिथिला में भीषण अकाल की स्थिति में राजपुरोहित के परामर्श पर राजा जनक ने यहीं हल चलाया था। पुनौरा तीर्थ के आस-पास मौजूद सीता माता एवं राजा जनक से जुड़े कई प्राचीन मंदिर उस पुरा इतिहास के साक्षी हैं। कहा जाता है कि राजा जनक ने खेत में हल जोतना प्रारंभ करने से पूर्व जहां महादेव का पूजन किया था। आज उस शिवालय को ‘हलेश्वर महादेव मंदिर’ के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि एक समय पर विदेहराज ने इस शिव मंदिर का निर्माण पुत्रेष्टि यज्ञ के लिए करवाया था। पुनौरा धाम में मंदिर के पीछे जानकी कुंड के नाम से एक सरोवर है। इस सरोवर को लेकर जन आस्था है कि इसमें स्नान करने से निसंतान दम्पतियों को संतान सुख की प्राप्ति होती है। जानकी नवमी के दिन सुहागिन स्त्रियां माँ सीता का विधि विधान से व्रत पूजन करती हैं। इसके पीछे उनकी मान्यता है कि चूंकि सीता माता लक्ष्मी जी का अवतार हैं, इस कारण उनके व्रत पूजन से घर में श्री सम्पन्नता नहीं और सुख-शांति बनी रहती है। धर्मशास्त्रों के अनुसार इस पावन पर्व पर जो भी भगवान राम सहित मां जानकी का व्रत-पूजन करता है, उसे पृथ्वी दान का फल एवं समस्त तीर्थ भ्रमण का फल स्वतः ही प्राप्त हो जाता है एवं उसके समस्त प्रकार के दुखों, रोगों व संतापों से सहज ही मुक्ति मिल जाती है। इस दिन वैष्णव संप्रदाय के भक्त माता सीता के निमित्त व्रत रखते हैं और पूजन करते हैं।
अयोध्या में भी है सीतामढ़ी
सीतामढ़ी का नाम सुनते ही बिहार का सीतामढ़ी ध्यान आता है पर अयोध्या में भी एक सीतामढ़ी है, जहां सीता माता का एक प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर को भी अब भव्य बनाया जा रहा है, जिसमें माता जानकी के नौ स्वरूपों को विग्रह रूप में स्थापित किया जाएगा। रामजन्मभूमि अयोध्या में माता सीता परमेश्वरी के रूप में प्रतिष्ठापित हैं। रामनगरी के हजारों मंदिरों में भगवान श्रीराम के साथ माता जानकी का भी विग्रह स्थापित है। मान्यता है कि रामनगरी की प्रसिद्ध शक्तिपीठ छोटी देवकाली मंदिर में माता पार्वती विराजती हैं। इसी तरह मणिरामदास जी की छावनी में स्थापित आराध्य को जानकीरमण के नाम से जाना जाता है।
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