पिछले दिनों पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा जिले में एक फिदायीन हमले में चीन के पांच इंजीनियर क्या मारे गए, जिन्ना के कंगाल देश को अफगानिस्तान के तालिबान से कथित हिसाब चुकता करने का मौका मिल गया। पाकिस्तान की सेना ने उस कांड के लिए तालिबान के कथित शागिर्द टीटीपी पर आरोप मढ़ते हुए कहा था कि हमले की साजिश भी अफगानिस्तान में रची गई थी। लेकिन इस आरोप को मूक रहकर झेलने की बजाय जिहादी लड़ाकों के गुट तालिबान ने पाकिस्तान की फौज को जमकर खरी—खोटी सुनाई है।
अब एक तरफ तालिबान है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान की सेना है। पाकिस्तान के बारे में सब जानते हैं कि वह चीन के फैंके टुकड़ों पर पल रहा है। इसलिए उसने उस घटना से अपना पल्ला झाड़कर चीन को संतुष्ट करने के लिए तालिबान पर उंगली उठाने में देर नहीं लगाई। पाकिस्तान की सेना का सीधा आरोप है कि चीन के मारे गए इंजीनियरों पर हमले का षड्यंत्र अफगानिस्तान में ही तैयार किया गया और इसे अंजाम देने वाला भी अफगानी ही था। पाकिस्तान के आरोप पर पलटवार करते हुए तालिबान ने कहा है कि इससे साफ होता है कि पाकिस्तान की सेना कितनी कमजोर है। तालिबान ने यह कहते हुए हमले में उसकी किसी तरह की संलिप्तता से इंकार किया है।
पाकिस्तान ने चीन को संतुष्ट करने के लिए तालिबान पर उंगली उठाने में देर नहीं लगाई। पाकिस्तान की सेना का सीधा आरोप है कि चीन के मारे गए इंजीनियरों पर हमले का षड्यंत्र अफगानिस्तान में ही तैयार किया गया और इसे अंजाम देने वाला भी अफगानी ही था।
पाकिस्तान की सेना की ओर से उसके प्रवक्ता ने बाकायदा बयान देकर अफगानिस्तान के सिर पर ठीकरा फोड़ा है। लेकिन इस पर बौखलाते हुए तालिबान के रक्षा मंत्रालय ने हमले में किसी भी अफगानी व्यक्ति या साजिश से इंकार कर दिया। उसका कहना है कि पाकिस्तान की सेना का आरोप दिखाता है कि उसकी कोशिश है चीन का उस पर से ध्यान भटक जाए।
तालिबान के रक्षा मंत्रालय के प्रवक्ता मुफ्ती इनायतुल्ला का कहना है कि ऐसे किसी हमले में किसी अफगान की संलिप्तता नहीं है। इस प्रकार की घटनाओं का ठीकरा अफगानिस्तान पर फोड़ना बताता है कि पाकिस्तान असल बात से ध्यान कहीं और भटकाना चाह रहा है। सब जानते हैं कि खैबर पख्तूनख्वा जिले में जिस जगह फिदायीन हमला बोलकर चीन के इंजीनियरों की हत्या की गई वहां पर पाकिस्तान की सेना की कड़ी चौकसी रहती है तो क्या इसके ये मायने नहीं हैं कि पाकिस्तानी फौज खुद को कमजोर बता रही है?
विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान ने तालिबान पर ऐसा आरोप इसलिए लगाया है जिससे कि तालिबान की सरकार और चीन में आती जा रही नजदीकी में बाधा आ जाए। चीन इकलौता देश है जिसने तालिबान के राजदूत को मान्य किया हुआ है। दरअसल चीन को अपनी सीपीईसी परियोजना काबुल से होते हुए एशिया के दूसरे देशों तक ले जानी है। इसलिए चीन तालिबान को संतुष्ट रखने की कोशिश में है। लेकिन जिन्ना का देश इसलिए उस तालिबान पर आरोप मढ़ने से भी बाज नहीं आया जिसे उसने ही गुप्त सहायता देकर काबुल में जमाया था।
यहां ध्यान देने की बात यह है कि पिछले कुछ महीनों से पाकिस्तान और तालिबान में गंभीर रूप से ठनी हुई है। दोनों रह—रहकर एक दूसरे पर आरोप लगाते आ रहे हैं। डूंरंड सीमा को लेकर तालिबान ने पाकिस्तान की मुश्कें कसी हुई हैं, उसके कितने ही फौजियों और सुरक्षाकर्मियों को हलाक कर दिया है। तालिबान अंग्रेजों की खींची लकीर को मानने को तैयार नहीं हैं।
उधर जिन्ना का देश तालिबान पर टीटीपी आतंकियों का पोसने के आरोप लगाता आ रहा है। कह रहा है कि तालिबान सरकार उस टीटीपी के विरुद्ध कार्रवाई नहीं कर रही है जो पाकिस्तान की नाक में दम किए हुए है। गत मार्च में पाकिस्तान की वायुसेना ने अफगानिस्तान में घुसकर बम भी बरसाए थे जिससे तालिबान पहले से ही गुस्से में है।
इसके अलावा पाकिस्तान ने अपने यहां से 3 लाख 70 हजार अफगानी शरणार्थियों को देश से निकाल दिया है। ये लोग दसियों साल से पाकिस्तान में बिना कागजात के बसे हुए थे। पाकिस्तान तो सीधे सीधे कहता रहा है कि अफगानी उनके देश में हमले करते आ रहे हैं। लेकिन तालिबान इसे फर्जी आरोप बताते रहे हैं।
पाकिस्तान में चीन के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं और पाकिस्तान में चल रहे चीनी प्रकल्पों में काम कर रहे हैं। एक अंदाजे के अनुसार, इनकी संख्या लगभग 29 हजार है। चीन के इन नागरिकों की हिफाजत की जिम्मेदारी पाकिस्तान के कंधों पर है लेकिन चीन भी जानता है कि वह इस काम में नाकाम रहा है।
पाकिस्तान में चीन के लोग बड़ी संख्या में रहते हैं और पाकिस्तान में चल रहे चीनी प्रकल्पों में काम कर रहे हैं। एक अंदाजे के अनुसार, इनकी संख्या लगभग 29 हजार है। चीन के इन नागरिकों की हिफाजत की जिम्मेदारी पाकिस्तान के कंधों पर है लेकिन चीन भी जानता है कि वह इस काम में नाकाम रहा है।
विशेषज्ञ मानते हैं कि पाकिस्तान ने तालिबान पर ऐसा आरोप इसलिए लगाया है जिससे कि तालिबान की सरकार और चीन में आती जा रही नजदीकी में बाधा आ जाए। चीन इकलौता देश है जिसने तालिबान के राजदूत को मान्य किया हुआ है। दरअसल चीन को अपनी सीपीईसी परियोजना काबुल से होते हुए एशिया के दूसरे देशों तक ले जानी है। इसलिए चीन तालिबान को संतुष्ट रखने की कोशिश में है जिससे उसके 65 अरब डॉलर की उक्त परियोजना में कोई बाधा न खड़ी हो। लेकिन जिन्ना का देश साजिश रचने में माहिर माना जाता है इसलिए उस तालिबान पर आरोप मढ़ने से भी बाज नहीं आया जिसे उसने ही गुप्त सहायता देकर काबुल में जमाया था।
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