लोकसभा चुनाव के दौरान कोलकाता उच्च न्यायालय ने एक ऐसा फैसला दिया है, जिससे पश्चिम बंगाल की राजनीति में भूचाल आ गया है। भाजपा ने मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से इस्तीफे की मांग कर दी है। उच्च न्यायालय ने साफ कहा है कि 2016 में हुई शिक्षक भर्ती अमान्य है और इसे रद्द किया जाता है। इससे 25,757 शिक्षकों और गैर-शिक्षकों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी। इसके साथ ही न्यायालय ने कहा कि जिन शिक्षकों की नियुक्ति 2016 के नियुक्ति पैनल की समय-सीमा की समाप्ति के बाद हुई है, उन्हें 12 प्रतिशत ब्याज के साथ वेतन के रूप में ली गई राशि चार हफ्ते में सरकार को लौटानी होगी।
न्यायालय ने केवल एक शिक्षिका सोमा दास की नौकरी बहाल रखी है। सोमा कैंसर से पीड़ित हैं। हालांकि राज्य सरकार ने इस फैसले से असहमति जताई है और उसने 24 अप्रैल को सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है। अब सर्वोच्च न्यायालय इस पर क्या निर्णय देता है, उस पर शिक्षकों का भविष्य निर्भर करेगा।
बता दें कि 2014 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग ने 24,000 स्कूल शिक्षकों के साथ ही ग्रुप सी और ग्रुप डी के कर्मियों की नियुक्ति के लिए परीक्षा आयोजित की थी। आयोग ने सफल अभ्यर्थियों की सूची पश्चिम बंगाल बोर्ड आफ सेकेंड्री एजुकेशन को भेज दी। बोर्ड ने इन अभ्यर्थियों को नियुक्ति पत्र भेजा और इन्हें राज्य के विभिन्न विद्यालयों में नियुक्त किया गया।
ऐसे हुआ घोटाला
आरोप है कि इन शिक्षकों के साथ ही गैर-कानूनी तरीके से 1,753 लोगों को भी नियुक्त कर लिया गया। स्कूल आयोग ने अपनी वेबसाइट पर अंक-तालिका अपलोड की, लेकिन नियुक्ति उन अभ्यर्थियों की हुई, जिनकी ‘रैंक’ कम थी। जैसे कि एक अभ्यर्थी को 100 में 70 अंक मिले, लेकिन बोर्ड ने 50 अंक पाए अभ्यर्थी को नियुक्ति पत्र जारी कर दिया। जांच से पता चला कि जिन अभ्यर्थियों ने पहले ही रिश्वत दी थी, उनके लिए स्कूल आयोग ने अलग ‘रास्ता’ निकाला। इन लोगों ने परीक्षा में अपनी उत्तर पुस्तिका में केवल नाम, पंजीकरण संख्या और हस्ताक्षर करने के अलावा उस पर कुछ नहीं लिखा। यानी इन लोगों ने खाली उत्तर पुस्तिका जमा करा दी थी, लेकिन ऐसे सभी अभ्यर्थी परीक्षा में सफल पाए गए।
अवैध रूप से नियुक्त होने वालों में नेताओं के रिश्तेदार भी शामिल हैं। राज्य के पूर्व शिक्षा राज्य मंत्री परेश अधिकारी की बेटी अंकिता अधिकारी की नियुक्ति ऐसे ही गैर-कानूनी तरीके से हुई थी। प्रतियोगिता परीक्षा में कम अंक पाने के बाद भी अंकिता को शिक्षक बना दिया गया। बाद में न्यायालय ने अंकिता की नियुक्ति को अवैध बताते हुए रद्द कर दिया। यही नहीं, न्यायालय ने अंकिता को 2 वर्ष का वेतन भी वापस का करने आदेश दिया। इसके बाद शिक्षक भर्ती घोटाले की जांच सीबीआई को सौंपी गई।
अदालत ने स्कूल आयोग और राज्य सरकार को कई बार कहा कि उत्तर पुस्तिका और सफल अभ्यर्थियों की सूची उलपब्ध कराएं, लेकिन आज तक ऐसा नहीं किया गया है। दूसरी ओर यह साक्ष्य सामने आया है कि पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग ने उत्तर पुस्तिका की जांच का कार्य एक निजी कंपनी ‘नीसा’ को दिया था, जबकि यह कार्य आयोग का है। मजेदार बात यह है कि ‘नीसा’ ने भी यह कार्य खुद नहीं किया।
शिक्षक भर्ती घोटाले में राज्य सरकार के मंत्री पार्थ चटर्जी के अलावा 2 विधायक मानिक भट्टाचार्य, जीवनकृष्ण साहा, तृणमूल कांग्रेस के नेता कुंतल घोष और सुजोयकृष्ण भद्र को भी गिरफ्तार किया गया है। घोटाले के मुख्य सरगना पार्थ चटर्जी हैं।
इनके इशारे पर ही पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग और पश्चिम बंगाल बोर्ड आफ सेकेंडरी एजुकेशन ने नियुक्ति में गड़बड़ी की। कोलकाता के सुमन कर्मकार कहते हैं कि नियुक्ति के लिए दरें तय थीं। एक-एक अभ्यर्थी से 15 से 20 लाख रु. तक की रिश्वत ली गई। पार्थ चटर्जी की महिला मित्र अर्पिता मुखर्जी के विभिन्न ठिकानों से 50 करोड़ रुपए नगद, 4.30 करोड़ रु. का सोना, विदेशी मुद्रा व अन्य कीमती सामान जब्त किया गया था। अब इस घोटाले की जांच की आंच से ममता बनर्जी परेशान हैं। न्यायालय का रुख जिस तरह दिख रहा है, उससे लग रहा है कि अभी ममता की परेशानी कम नहीं होने वाली है।
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